खेल प्रमाण-पत्रों का डिजिटल वेरिफिकेशन अनिवार्य किया जाना चाहिए।
राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल भर्ती-2025 के तहत उत्कृष्ट खिलाड़ी कोटे में हुआ खुलासा खेल जगत ही नहीं, पूरी भर्ती प्रणाली पर सवाल खड़ा करने वाला है। प्रदेश के होनहार खिलाड़ियों को सम्मान, उन्हें कॅरियर में अवसर और खेल भावना को प्रोत्साहन देना खेल कोटे का मूल उद्देश्य था लेकिन जब खेल कोटे में ही ‘खेल’ होने लगे, तो यह न केवल व्यवस्था की कमजोरी, बल्कि समाज में बढ़ती ‘शॉर्टकट मानसिकता’ का भी प्रमाण है।
ताजा जांच रिपोर्ट में प्रदेशभर से 298 अभ्यर्थियों के आवेदन फर्जी या अपात्र दस्तावेजों के कारण निरस्त किए गए। यह रिपोर्ट बताती है कि फर्जी प्रमाण-पत्रों का इस्तेमाल कर सरकारी नौकरी पाने की प्रवृत्ति कितनी गहरी और संगठित हो चुकी है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इनमें 100 से अधिक महिला अभ्यर्थी भी शामिल हैं।
खेल कोटे के नाम पर सामने आया यह गड़बड़झाला कई स्तरों पर गंभीर है। तीरंदाजी से लेकर बॉक्सिंग, कबड्डी, फुटबॉल, जूडो, वॉलीबॉल… लगभग हर खेल में ऐसे आवेदन मिले, जो ‘फर्जीवाड़े’ की श्रेणी में आते हैं। यहां सिर्फ अभ्यर्थियों पर अंगुली उठाना ही पर्याप्त नहीं है। प्रश्न यह भी उठता है कि इतने समय तक ऐसे प्रमाण-पत्र बिना सत्यापन के कैसे बनते और चलते रहे? क्या संबंधित खेल संघों और प्रमाण जारी करने वाली संस्थाओं का भी ऑडिट नहीं होना चाहिए? क्योंकि फर्जी प्रमाण-पत्र तभी बनते हैं, जब सिस्टम में कहीं न कहीं ढील या मिलीभगत रहती है।
जब फर्जी प्रमाण-पत्रों के आधार पर कोई व्यक्ति उसी कतार में खड़ा हो जाता है, तो असली प्रतिभा का हक छिनता है। यह घटना एक चेतावनी है, व्यवस्था के लिए भी और समाज के लिए भी। योग्यता को आगे बढ़ाने वाले तंत्र को मजबूत और साफ-सुथरा बनाना होगा। भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न बने, इसके लिए प्रक्रिया में ठोस सुधार किए जाएं। खेल प्रमाण-पत्रों का डिजिटल वेरिफिकेशन अनिवार्य किया जाना चाहिए। खेल संघों की जवाबदेही तय हो। इसके अलावा भर्ती प्रक्रिया में दस्तावेज सत्यापन को प्रारंभिक चरण में ही कठोर बनाया जाए।