रूस इस नई प्रणाली का आकर्षण भारत के सामने 2021 से रख रहा है, पर फिलहाल उसकी प्राथमिकता अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना है।
विनय कौड़ा, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का 4-5 दिसंबर का नई दिल्ली आगमन उस ऐतिहासिक धारा की पुकार है, जिसमें दो महाद्वीपीय शक्तियां समय की आंधी में एक-दूसरे को स्थिर रखने की चेष्टा कर रही हैं। 2021 की शीतकालीन यात्रा के बाद यह पहला अवसर है, जब पुतिन फिर से यमुना तट पर कदम रख रहे हैं, लेकिन इस बार वैश्विक संदर्भ कहीं व्यापक हैं और रणनीतिक परतें कहीं अधिक गहरी। दुनिया के भू-राजनीतिक क्षितिज पर उठते तूफानों के बीच भारत और रूस यह भली भांति समझ चुके हैं कि अब साझेदारी को पुराने तौर-तरीकों से नहीं, बल्कि नए औजारों, नए मार्गों और नए संकल्पों से दिशा देनी होगी।
ऊर्जा वह धुरी है, जिसने 2022 के बाद दोनों देशों को अभूतपूर्व निकटता में बांधा। वार्ता के केंद्र में ऊर्जा से जुड़े प्रश्न प्रमुखता से उठेंगे। पश्चिमी प्रतिबंधों ने रूस की ऊर्जा-आपूर्ति को कोहरे में ढकने की कोशिश अवश्य की, लेकिन भारत ने अपने हितों की लौ को बुझने नहीं दिया। रूस आज भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है और यह बात दुनिया की कई महाशक्तियों की नींद हराम करती है। इतना अवश्य है कि पिछले महीने नए अमरीकी प्रतिबंधों ने आपूर्ति-शृंखला में दरारें पैदा की हैं। हो सकता है कि 2026 तक भारत अपने खुले तेल लेनदेन में कुछ संयम भी लाए। परंतु रूस अपनी पुरानी रणनीतिक प्रवृत्ति के अनुरूप कठिन समय के लिए विकल्पों की किलेबंदी पहले ही कर रहा है- छूट बढ़ाना, नई कंपनियां खड़ी करना, मध्यस्थ तंत्र को सुदृढ़ करना और वैकल्पिक भुगतान संरचनाएं बनाना। मॉस्को जानता है कि भारत जैसा बड़ा और स्थिर ग्राहक उसे चीन की अत्यधिक निर्भरता से राहत दिला सकता है। भारत भी यह समझता है कि वैश्विक ऊर्जा बाजार का उतार-चढ़ाव तभी काबू में रहता है जब पुरानी और विश्वसनीय साझेदारियां दम भरती रहें।
परमाणु सहयोग में रूस अपने कदम और गहरे करना चाहता है। कुडनकुलम की अगली दो इकाइयों के आगे एक और विशाल परियोजना का प्रस्ताव लंबित है। दरअसल वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में 'न्यूक्लियर एनर्जी मिशन' की घोषणा के बाद रूस चाह रहा है कि कुडनकुलम के अतिरिक्त दूसरी साइट पर वह एक और विशाल परमाणु ऊर्जा केंद्र विकसित करे। रूस छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों पर भी विशेष जोर दे रहा है। विशेषकर उन क्षेत्रों के लिए जहां ग्रिड ढांचा अब भी भारत की विकास परियोजना का अधूरा अध्याय है। भारत निस्संदेह अमरीकी और फ्रांसीसी प्रस्तावों पर भी समान गहराई से विचार कर रहा है, पर रूस की तकनीकी निरंतरता और लागत-प्रभावशीलता उसे अलग खड़ा करती है। रक्षा सहयोग, जिस पर पश्चिमी विश्लेषकों ने अक्सर प्रश्नचिह्न लगाए, अब फिर अपनी पुरानी लय में लौट रहा है। एस-400 प्रणाली की बेजोड़ क्षमता को भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' में वास्तविक परिप्रेक्ष्य में परख भी लिया है। चूंकि रूस ने भारत को आश्वस्त किया है कि लंबित एस-400 की आपूर्ति 2026-27 में पूर्ण कर दी जाएंगी, तो इस पर चर्चा हो सकती है। इस प्रणाली के लिए भारत 120 से 380 किमी तक की लंबी दूरी की और मिसाइलें खरीदने पर पहले ही सहमति जता चुका है।
एस-500 और एस-57 पर बातचीत भले ही प्रारंभिक हो, लेकिन एक नई दिशा का संकेत करती है। एस-500 प्रणाली उन्नत है और 600 किलोमीटर तक की दूरी पर आने वाली मिसाइलों को रोकने में सक्षम है। रूस इस नई प्रणाली का आकर्षण भारत के सामने 2021 से रख रहा है, पर फिलहाल उसकी प्राथमिकता अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना है। एस-57 लड़ाकू विमानों की कहानी थोड़ी पेचीदा है। 2018 में भारत ने तकनीकी कमियों का हवाला देकर एस-57 से हाथ खींच लिया था, परंतु आज परिदृश्य बदला हुआ है। पाकिस्तानी आक्रामकता और चीन की विस्तारवादी आकांक्षाएं उस दक्षिण एशियाई आकाश को फिर अशांत कर रही हैं, जिसे भारत बरसों से स्थिर रखने को तत्पर है। ऐसे में रूस ने अवसर भांपकर इस परियोजना में तकनीक-हस्तांतरण, भारत में उत्पादन और शर्तों में लचीलापन दिखाया है। यदि भारत इस दिशा में बढ़ता भी है, तो यह एक लंबी और धैर्यशील यात्रा होगी। व्यापार और वित्तीय तंत्र पर भी चर्चा होगी। रूसी बैंक भारत में अपने पैर पसार रहे हैं और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार एक नए युग की आहट दे रहा है। रूस का केंद्रीय बैंक भी भारत में अपना एक प्रतिनिधि कार्यालय खोलने को अग्रसर है। इस वर्ष क्वाड नेताओं का शिखर सम्मेलन भारत में होना तय था, परंतु अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अचानक यात्रा स्थगित कर देने से वह बैठक टल गई। पुतिन इस परिस्थिति को भी अपने ढंग से रेखांकित करना चाहते हैं- मानो कह रहे हों, 'देखो, जब अमरीकी नेतृत्व अपने ही संकल्पों पर डगमगाने लगा है, तब रूस, पुराना मित्र, अब भी अपने वचन पर अडिग खड़ा है।' यह केवल मित्रता की पुनर्पुष्टि नहीं, बल्कि एक सूक्ष्म भू-राजनीतिक संदेश भी है कि सच्चे संबंध वही हैं, जिनकी जड़ें समय की मनमानी हवाओं में नहीं हिलतीं।
रूस की दृष्टि में भारत कोई साधारण ग्राहक या अस्थायी साझेदार नहीं, वह एक ऐसी स्थिर शक्ति है जो मॉस्को को बीजिंग के गुरुत्वाकर्षण में विलीन होने से बचाती है। भारत के लिए भी यह रिश्ता केवल अतीत की स्मृतियों का स्मारक नहीं, बल्कि दूरदर्शी व व्यावहारिक रणनीतिक गणित है।