डॉ. मिलिंद कुमार शर्मा प्रोफेसर, एमबीएम विश्वविद्यालय, जोधपुर
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध वैश्विक राजनीति के सबसे महत्त्वपूर्ण आयामों में से एक माने जाते हैं। दोनों देशों के मध्य यह साझेदारी न केवल व्यापार, तकनीक, विज्ञान और सामरिक हितों तक सीमित है, अपितु यह दीर्घकालिक लोकतांत्रिक मूल्यों और वैश्विक व्यवस्था के भविष्य से भी गहराई से जुड़ी हुई है। निसंदेह अमेरिका द्वारा हाल ही भारत पर टैरिफ लगाए जाने से आर्थिक संबंधों में तनाव उत्पन्न प्रतीत होता अवश्य दिखा है, परंतु अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई जन्मदिन की शुभकामनाएं और उस पर गर्मजोशी से किया गया प्रत्युत्तर इस बात का संकेत है कि नेतृत्व स्तर पर संवाद और व्यक्तिगत मित्रता रिश्तों की खटास को कम करने में सक्षम है। दोनों राष्ट्राध्यक्षों के सोशल मीडिया पोस्ट न मात्र एक-दूसरे के प्रति परस्पर सम्मान को दिखा रहे हैं अपितु दोनों का रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की प्रतिबद्धता दोनों राष्ट्रों के अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयासों को भी बल देती है।
कूटनीति में प्राय: व्यक्तिगत समीपता कठिन दौर को सहज बना देती है और यह माना जा सकता है कि दोनों नेताओं के मध्य दूरभाष वार्ता भविष्य में बर्फ पिघलाने वाली सिद्ध हो सकती है। टैरिफ प्रकरण निश्चित ही भारत के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है। अमेरिका का यह कदम संरक्षणवादी रुख को दर्शाता है, जबकि भारत इसे अनुचित दबाव मानता रहा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और रूस के साथ उसकी निकटता इस बात को स्पष्ट करती है कि वर्तमान में लोकतांत्रिक मूल्य-आधारित साझेदारी का महत्त्व पहले से कहीं अधिक है। सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत और सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका परस्पर सहयोग से न केवल अपने-अपने हित सुरक्षित रख सकते हैं, अपितु वैश्विक व्यवस्था को भी स्थिर और संतुलित बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता रखते हैं। दोनों देशों का गठबंधन व्यावहारिक होने के साथ-साथ वैचारिक रूप से भी एक स्वाभाविक साझेदारी है।
यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि भारत ने हाल ही चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय दिया। उसने रूस और चीन जैसे देशों के साथ मंच साझा करते हुए भी आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया और बहुध्रुवीय व्यवस्था का समर्थन किया। भारत का यह संतुलनकारी दृष्टिकोण इस बात को द्योतक है कि वह किसी एक ध्रुव के दबाव में नहीं आना चाहता, अपितु स्वहितों की रक्षा करते हुए वैश्विक स्तर पर संतुलन साधने का पक्षधर है। इस संतुलित नीति का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि भारत रूस और चीन जैसे देशों से संवाद व व्यापारिक संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका और पश्चिमी देशों से भी गहरे रणनीतिक मधुर संबंध बनाए रख सकता है। नि:संदेह इस बहुस्तरीय कूटनीति से भारत को एक वैश्विक निर्णायक शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा मिल रही है। भारत-अमेरिका संबंधों का महत्त्व इसीलिए भी है कि यह साझेदारी वैश्विक लोकतांत्रिक शक्तियों को एक साझा मंच प्रदान करती है। जब चीन जैसे देश दक्षिण चीन सागर से लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार तक आक्रामक रुख दिखाते हैं और रूस पारंपरिक शक्ति राजनीति को पुनर्जीवित करने का प्रयास करता है, तब भारत और अमेरिका का सहयोग स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों पर आधारित विश्व व्यवस्था को बचाए रखने के लिए आवश्यक हो जाता है।
यह साझेदारी दीर्घकाल में न केवल द्विपक्षीय संबंधों को ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व को स्थिर और न्यायपूर्ण बनाने में सहायक हो सकती है। किंतु भविष्य की दिशा इस पर निर्भर करेगी कि दोनों देश व्यापारिक तनाव को किस प्रकार संभालते हैं। यदि टैरिफ विवाद वार्ता और समझौते से हल होता है और नेतृत्व स्तर पर विश्वास बना रहता है, तो यह संबंध और अधिक दृढ़ बन सकता है। भारत की विशाल युवा जनसंख्या और अमेरिका की आधुनिक तकनीकी कौशल क्षमता परस्पर सहयोग कर न केवल आर्थिक सहयोग का नया मॉडल बना सकती है, अपितु विश्वभर में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था को भी सुदृढ़ कर सकती है। यही कारण है कि ट्रंप और मोदी के बीच हुआ जन्मदिन संवाद प्रतीकात्मक होते हुए भी गहरी राजनीतिक और कूटनीतिक संभावना समेटे हुए है।