Indian soldiers memorial Bangladesh ashuganj: बांग्लादेश के आशुगंज में भारत के 1,600 शहीद सैनिकों की याद में एक भव्य स्मारक निर्माणाधीन है। यह स्थल 1971 के युद्ध में भारतीय बलिदान और भारत-बांग्लादेश मित्रता का प्रतीक बन रहा है।
Indian soldiers memorial Bangladesh: भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ और उससे एक दिन पहले देश विभाजन से 14 अगस्त 1947 को एक नया देश पाकिस्तान बना, लेकिन वहां नागरिकों के दमन के नतीजे में स्वतंत्रता आंदोलन के बाद 26 मार्च 1971 (Bangladesh war 1971) को पाकिस्तान के विभाजन से एक और देश बना, जिसे आज बांग्लादेश कहा जाता है। भारत ने बांग्लादेश के निर्माण में अहम भूमिका (Indo-Bangladesh friendship)निभाई थी। बांग्लादेश में छात्र आंदोलन के बाद शेख हसीना 5 अगस्त 2024 तारीख को किसी और देश में न जा कर भारत ही आईं और उसके बाद तख्तापलट होने पर नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस की 6 अगस्त 2024 तारीख को अंतरिम सरकार बनी। यह सरकार बनने के बाद रविंद्रनाथ टैगोर की यादगार (Indian soldiers memorial) खतरे में आ गई। ऐसे में दूसरी यादगारों के बारे में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।
भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक रिश्ते हमेशा से गहरे रहे हैं। भारतीय सेना और स्वतंत्रता सेनानियों की सन 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय भूमिका निर्णायक रही है। यही कारण है कि आज भी बांग्लादेश में ऐसे कई स्थल हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और सैनिकों की शहादत की याद दिलाते हैं। आइए जानते हैं इन स्मारकों और उनसे जुड़ी शख्सियतों के बारे में विस्तार से।
बांग्लादेश के ब्रह्मणबाड़िया जिले के आशुगंज क्षेत्र में भारत के उन वीर सैनिकों की याद में एक विशेष स्मारक बनाया जा रहा है, जिन्होंने 1971 की लड़ाई में अपना बलिदान दिया। यह स्मारक लगभग 1,600 भारतीय सैनिकों के नाम के साथ स्थापित किया जा रहा है। इसकी नींव 2021 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने संयुक्त रूप से रखी थी। यह स्मारक अब निर्माण के अंतिम चरण में है और इसे दोनों देशों के मजबूत सहयोग का प्रतीक माना जा रहा है।
ढाका के पास स्थित यह स्मारक बांग्लादेश की आज़ादी के लिए लड़े गए संघर्षों का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि यह मुख्य रूप से बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए समर्पित है, पर इसमें भारतीय बलिदान की गूंज भी शामिल है। इसे सैयद मैनुल हुसैन ने डिज़ाइन किया था। यह सात त्रिकोणीय स्तंभों का प्रतीकात्मक ढांचा है, जो 1952 से 1971 तक की सात ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाता है।
सन 1952 के भाषा आंदोलन में शहीद हुए युवाओं की याद में स्थापित शहीद मिनार, बांग्लादेश की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन चुका है। हालांकि यह स्वतंत्रता संग्राम का स्मारक नहीं है, लेकिन यह आज़ादी की लड़ाई की एक अहम नींव थी। यह स्थल भारत और बांग्लादेश दोनों की भाषाई एकता का संदेश देता है।
पूर्व में रामना रेसकोर्स मैदान के नाम से जाना जाने वाला यह स्थल बांग्लादेश की मुक्ति का सबसे निर्णायक स्थल है। यहीं 7 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने आज़ादी का ऐतिहासिक भाषण दिया था और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने भारतीय और बांग्लादेशी संयुक्त बल के सामने आत्मसमर्पण किया था। यहां स्वतंत्रता स्तंभ (Independence Monument) और शिखा चिरंतन (Eternal Flame) जैसी संरचनाएं शहीदों की स्मृति को जीवित रखती हैं।
कुश्तिया जिले के चौरहास चौराहे पर बना यह स्मारक उन भारतीय और बांग्लादेशी मित्र बलों को समर्पित है, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना से लोहा लिया। इसका उद्घाटन 10 दिसंबर 2015 को हुआ था और यह स्मारक आज भी भारतीय बलिदान की अहमियत का प्रतीक बना हुआ है।
बहरहाल इन स्मारकों के माध्यम से भारत और बांग्लादेश के ऐतिहासिक रिश्तों को समझा जा सकता है। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और सैनिकों की स्मृति में बनाए गए ये स्थल आज भी दोनों देशों की मित्रता, बलिदान और साझा संघर्ष की अमर गाथा सुनाते हैं। ये न केवल इतिहास के पन्नों को जीवंत रखते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा भी देते हैं।