बिहार की सियासत में एक बार फिर आरोप-प्रत्यारोप की गर्मी तेज हो गई है। एक ओर प्रशांत किशोर भाजपा नेता पर हमलावर हैं, तो दूसरी ओर अब भाजपा ने प्रशांत किशोर की पार्टी के नेता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बिहार की राजनीति में बयानबाज़ी का स्तर दिन-प्रतिदिन और दिलचस्प होता जा रहा है। कभी भ्रष्टाचार, कभी अपराध तो कभी विकास की बहस, लेकिन अब यह जंग पहुंच चुकी है एक बिल्कुल नए मोड़ पर, जो है उम्र का घोटाला। जी हां, बिहार की राजनीति इस समय सबसे अहम सवाल से जूझ रही है, राज्य का सबसे बड़ा उम्र चोर कौन है?
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि सम्राट चौधरी ने 1995 के एक हत्या मामले में मुकदमे से बचने के लिए अपनी उम्र के आंकड़े से छेड़छाड़ की थी। पीके के मुताबिक, सम्राट ने दस्तावेज़ों में अलग-अलग डेट ऑफ बर्थ दिखाईं और खुद को नाबालिग साबित कर कोर्ट में ट्रायल से राहत पा ली।
किशोर ने अपने बयान में साग कहा था, “जो नेता आज बिहार का चेहरा बनने का दावा कर रहे हैं, उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ही उम्र चुराकर की थी।”
पीके के हमले के अगले ही दिन भाजपा की तरफ़ से कड़ा पलटवार आया। पार्टी के मीडिया प्रमुख दानिश इकबाल ने भी प्रशांत किशोर पर ही सवाल खड़े कर दिए। दानिश ने कहा, “सम्राट चौधरी पर अंगुली उठाने वाले प्रशांत किशोर को पहले अपने दामन में झाँकना चाहिए। उनके बगल में बैठा उदय सिंह उर्फ पप्पू असली उम्र चोर है।” उन्होंने फ़ेसबुक पर पोस्ट कर सबूत के साथ उदाहरण भी गिनाए। दानिश के अनुसार, उदय सिंह ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अपनी उम्र 44 साल बताई थी, लेकिन 2009 में जब चुनाव लड़े तो अचानक 57 साल के हो गए। सवाल सीधा है, पाँच साल में 13 साल कैसे बढ़ गए?
बीजेपी ने यहाँ तक कह दिया कि चुनाव आयोग को इस पूरे मामले पर गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए। दानिश इकबाल ने मांग की कि अगर किसी उम्मीदवार ने अपनी जन्मतिथि में गड़बड़ी की है तो यह सीधे तौर पर चुनावी अपराध है। उनका तंज था – “इतना बड़ा उम्र घोटाला करने के बाद भी अगर कोई बच सकता है, तो यह लोकतंत्र के साथ मजाक है।”
बिहार की जनता, जो रोज़ाना जाति समीकरण, विकास वादों और गठबंधन की उठापटक सुनते-सुनते थक चुकी थी, अब इस नई जंग को लेकर खूब मजे ले रही है। सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आ गई है – “उम्र चोर ऑफ द ईयर” से लेकर “बिहार का एज फैक्टर” तक लोग नए-नए शीर्षक गढ़ रहे हैं।
हालांकि, राजनीति के जानकार इसे जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाने की चाल बता रहे हैं। बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम सवाल पीछे छूट गए हैं और अब पूरा विमर्श इस पर है कि किस नेता ने जन्मतिथि बदलकर क्या फायदा उठाया। लेकिन राजनीति का खेल ही यही है कि जहाँ विपक्ष हमला करे, वहीं सत्तापक्ष पलटवार ढूँढ ले। इस बार शिकार बने हैं नेताओं की जन्मतिथियाँ।
बिहार की सियासत में अब अगला सवाल यही है कि आखिरकार सबसे बड़ा “उम्र चोर” कौन निकलेगा? क्या यह मामला केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहेगा या सचमुच चुनाव आयोग के दरवाजे तक पहुँचेगा? फिलहाल, इतना तय है कि आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में उम्र का हिसाब उतना ही चर्चा में रहेगा जितना चुनावी वादों का।