बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य की नियुक्ति कर महागठबंधन के ईबीसी कार्ड पर बड़ा दांव लगाया है।
Bihar Elections 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कार्ड खेलकर नया रणनीतिक दांव चला है। केशव मौर्य को पार्टी ने हाल में बिहार चुनाव का सह-प्रभारी नियुक्त किया है। राजनीतिक पंडितों की राय है कि पहली नजर में यह कदम संगठनात्मक जिम्मेदारी का विस्तार लगता है, लेकिन इसके पीछे गहरी राजनीतिक गणित छिपा है। महागठबंधन के Extrememly Backward Class (EBC) कार्ड खेलने के बाद केशव प्रसाद मौर्य का बिहार की सियासत में सक्रिय होना, बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें गैर यादव-ओबीसी (Other Backward Classes) वोट बैंक को अपनी ओर मिलाया जा सके।
राजनीति विश्लेषक बताते हैं कि बिहार की राजनीति में यादव और मुसलमान मिलकर महागठबंधन की रीढ़ माने जाते हैं। ऐसे में बीजेपी को चुनावी बैलेंस साधने के लिए गैर यादव-ओबीसी का भरोसा जीतना जरूरी है। केशव प्रसाद मौर्य ने 2017 में यूपी में जिस तरह ओबीसी वोटों का बहाव बीजेपी के पक्ष में किया था, उसी अनुभव को अब बिहार में दोहराने की उम्मीद पार्टी कर रही है। 2017 के यूपीचुनाव में बीजेपी ने 324 सीटें जीतकर अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी, जिसमें केशव प्रसाद मौर्य की संगठनात्मक पकड़ अहम थी।
केशव प्रसाद मौर्य की नई भूमिका की घोषणा से पहले ही इसके संकेत मिलने शुरू हो गए थे। एक बार गृहमंत्री अमित शाह ने लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य को सार्वजनिक मंच से 'मेरा मित्र' कहकर संबोधित किया था। यह संकेत था कि मौर्य न केवल यूपी बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अहम कड़ी बन सकते हैं। शाह और केशव की नजदीकी, बिहार चुनाव में संगठनात्मक मजबूती का भी संकेत देती है।
भौगोलिक दृष्टि से बिहार और यूपी एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। केशव प्रसाद मौर्य खुद यूपी के कौशांबी जिले से आते हैं और उनकी छवि एक ऐसे नेता की है, जो जमीनी राजनीति से उठकर ऊपर तक पहुंचे हैं। यह इमेज बिहार के ग्रामीण और पिछड़े तबके में भी अपील करती है। बीजेपी इस जमीनी स्तर के नेता वाली छवि का इस्तेमाल बिहार में करने जा रही है।
केशव प्रसाद 2012 में विधायक बने। इसके बाद 2014 में फुलपुर से लोकसभा का चुनाव जीता और 2016 में यूपी बीजेपी अध्यक्ष बनाए गए। हालांकि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में वे अपनी सीट हार गए थे, लेकिन बीजेपी ने उन्हें फिर से डिप्टी सीएम बनाए रखा। यह बताता है कि पार्टी उनके महत्व को सिर्फ चुनावी जीत-हार से नहीं आंकती। हालांकि 2024 कके लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी के गिरते ग्राफ ने पार्टी को नए समीकरण तलाशने पर मजबूर किया है। केशव मौर्य ने उस समय खुलकर संगठन को सरकार से बड़ा बताया था, जो उनकी स्वतंत्र सोच का उदाहरण है।