पटना

Bihar SIR : 43 सीटों पर सबसे ज्यादा कटे महिला वोटरों के नाम, 0.5% घट गई संख्या

15% या उससे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले जिलों में वोटर संख्या में गिरावट बड़ी है। मसलन मधुबनी, भागलपुर और पूर्वी चंपारण में।

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Oct 03, 2025
बिहार में फाइनल वोटर लिस्ट जारी हो चुकी है। (फोटो : ANI)

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जारी विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) के आंकड़े राज्य की राजनीतिक तस्वीर को नया आयाम दे रहे हैं। चुनाव आयोग (ECI) ने जो फाइनल वोटर रोल जारी किया, जिसमें 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 सीटों पर महिला मतदाताओं के नाम सबसे ज्यादा कटे हैं। यह स्थिति खासतौर पर तब चिंताजनक है जब हाल के वर्षों में महिला वोटरों की भूमिका चुनाव नतीजों में निर्णायक रही है।

महिला वोटरों की संख्या में गिरावट

चुनाव आयोग ने इससे पहले 1 अगस्त को ड्राफ्ट रोल जारी किया था। उसके मुकाबले 30 सितंबर के फाइनल रोल में महिला मतदाताओं का अनुपात 47.7% से घटकर 47.2% पर आ गया है। यानी कुल मतदाताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी आधा प्रतिशत कम हो गई। राजपुर सीट पर यह गिरावट सबसे ज्यादा 69% दर्ज की गई, जबकि कैमूर जिले की ब्रह्मपुर सीट पर 63% महिला नाम सूची से हट गए। समग्र तौर पर देखें तो कैमूर जिले में 64% महिलाओं के नाम कटे और बक्सर में 63% के।

आंकड़े क्या कहते हैं?

चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार कुल 47 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं। संशोधित सूची में 7.42 करोड़ नाम दर्ज हैं, जो जून 24 की सूची से कम है। हालांकि इस दौरान नए पात्र वोटरों के नाम जोड़े भी गए हैं। राज्य के सभी 38 जिलों में मतदाताओं की संख्या घटी है। इनमें गोपालगंज, किशनगंज और पूर्णिया सबसे आगे हैं। दिलचस्प यह है कि ड्राफ्ट रोल और फाइनल रोल के बीच कई जगहों पर संख्या में हल्की वृद्धि भी हुई है। लेकिन हटाए गए वोटरों में यह साफ दिख रहा है कि नागरिकता साबित न कर पाने के आधार पर कोई बड़ी कटौती नहीं हुई, जबकि SIR प्रक्रिया का फोकस 'अवैध प्रवासियों' को हटाने पर था। अब विपक्ष इस मुद्दे को बड़ा राजनीतिक सवाल बना सकता है।

सीमांचल और नेपाल बॉर्डर के जिलों पर असर

जिन जिलों में वोटर घटे हैं, उनमें सीमांचल और नेपाल सीमा से लगे इलाके प्रमुख हैं। किशनगंज, अररिया और पूर्णिया -ये सभी न सिर्फ मुस्लिम बहुल हैं बल्कि पश्चिम बंगाल और नेपाल की सीमा से सटे हैं। ड्राफ्ट रोल के आंकड़ों में गोपालगंज में मतदाताओं की संख्या 15.1% घटी थी, लेकिन फाइनल लिस्ट में 3.49% की हल्की बढ़ोतरी दर्ज हुई। किशनगंज, जहां मुस्लिम आबादी 68% है, वहां के अलावा चौथी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले पूर्णिया में भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बड़ी मात्रा में घटी है। अररिया और कटिहार जैसे जिलों में भी वोटरों के नाम में भारी कटौती की गई है। नेपाल सीमा से लगे अन्य 7 जिलों -मधुबनी, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, सुपौल और पश्चिमी चंपारण में भी मतदाता सूची 5% से ज्यादा घटी है।

मुस्लिम बहुल जिलों पर सीधी चोट

इंडियन एक्सप्रेस के विश्लेषण के मुताबिक 15% या उससे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले जिलों में वोटर संख्या में गिरावट ज्यादा है। मसलन मधुबनी, भागलपुर और पूर्वी चंपारण जैसे जिलों में 7 से 8% की कमी आई है। वहीं मुजफ्फरपुर में 5.59% और पूर्वी चंपारण में 7.08% की गिरावट आई है। केवल 10 जिले ऐसे हैं जहां कटौती 5% से कम रही है, इनमें पटना भी शामिल है। स्क्रॉल की रिपोर्ट कहती है कि बिहार के 10 मुस्लिम बहुल जिलों में से 5 जिलों में सबसे ज्यादा नाम कटे हैं।

महिलाओं और मुसलमानों पर फोकस क्यों?

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि ये आंकड़े चुनावी राजनीति को दो मोर्चों पर प्रभावित कर सकते हैं:

  1. महिला वोटर : 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव हों या 2019 का लोकसभा चुनाव, महिलाओं की भारी भागीदारी ने एनडीए और महागठबंधन दोनों को अलग-अलग चरणों में फायदा पहुंचाया। उनकी कटौती किसी भी दल के लिए बड़ी चुनौती होगी।
  2. मुस्लिम वोटर : सीमांचल और नेपाल बॉर्डर इलाकों में मुस्लिम वोटर चुनावी गणित में निर्णायक रहते हैं। यहां बड़ी संख्या में नाम कटने से राजनीतिक दलों के सामने नया समीकरण बन गया है।
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