MP News: मध्य प्रदेश की राजनीति गरमाई, बीजेपी मंत्रियों और नेताओं को झेलने पड़ा विपक्ष से लेकर महिला समूहों का विरोध, नेताओं की मानसिकता पर उठे सवाल, जब बिगड़े इन मंत्रियों नेताओं के बोल... जानें किस राजनेता ने गिराई बीजेपी की साख...
MP News: 2025 मध्य प्रदेश की राजनीति के लिए केवल फैसले वाला साबित नहीं हुआ, बल्कि मंत्रियों और नेताओं के बयान विकास योजनाओं से ज्यादा सुर्खियों में रहे। यह वह दौर था, जब एक-एक टिप्पणी और एक-एक शब्द ने मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार की छवि से लेकर सामाजिक माहौल तक को झकझोर कर रख दिया। सत्ता के शीर्ष नेताओं में कुंवर विजय शाह, कैलाश विजयवर्गीय, रामेश्वर शर्मा समेत पार्टी के नेतृत्व तक पर तरह-तरह के विवादों ने न सिर्फ राजनीतिक बहस को गर्मा दिया, बल्कि सरकार की जवाबदेही को भी कटघरे में ला खड़ा किया।
साल का सबसे बड़ा और संवेदनशील राजनीतिक विवाद मंत्री कुंवर विजय शाह के बयान से शुरू हुआ। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर ऐसी टिप्पणी की, जिसे देशभर में असम्मानजनक और अपमानजनक कहा गया। कर्नल सोफिया को 'आतंकियों की बहन' जैसा उनका बयान राजनीति की भाषा से कहीं ज्यादा एक संवेदनशील संस्था को चोट पहुंचाने वाला था। पूरे राष्ट्र को शर्मसार कर देने वाला था।
मामला यहीं नहीं रुका। हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और FIR दर्ज करने के आदेश दिए। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब शाह ने सफाई दी और माफी मांगी। तब सुप्रीम कोर्ट ने 'crocodile tears' जैसी गंभीर टिप्पणी करते हुए शाह को जमकर फटकार लगाई थी। ये शायद पहला ऐसा मौका था, जब किसी मंत्री की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट को सीधे टिप्पणी करनी पड़ी।
नतीजा- मंत्री सार्वजनिक जीवन से लगभग गायब, कैबिनेट बैठकों से दूरी, सरकार पर दबाव बना कि वह शाह पर कार्रवाई करे। ये ऐसा मुद्दा था जिसने स्पष्ट कर दिया कि सेना के सम्मान से जुड़े मुद्दों पर किसी भी तरह की राजनीतिक चूक बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बता दें कि इससे पहले भी शाह कई बार विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रह चुके हैं।
बता दें कि वर्तमान में विजय शाह एक वरिष्ठ मंत्री, राज्य सरकार में प्रमुख मंत्रालयों के प्रभारी, आदिवासी कल्याण जैसे संवेदनशील विभाग संभालते हैं। उनका नाम राजनीति में लंबे समय से है, इसलिए इनके ऐसे विवादित बयानों से पूरा मंत्रालय और सरकार प्रभावित होती है।
जून 2025 में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने एक मंच से महिलाओं के पहनावे पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि उन्हें, ''छोटी या पश्चिमी ड्रेस में लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं को गॉडेस की तरह देखा जाना चाहिए।' उन्होंने आगे कहा कि 'कई लड़कियां मेरे पास सेल्फी खिंचाने आती हैं तो मैं कहता हूं बेटा पहले अच्छे कपड़े पहन के आना फिर खिंचाना और मैं मना कर देता हूं।' उनका कहना था कि,'विदेशों में कम कपड़े पहनने वाली लड़की को अच्छा मानते हैं, लेकिन हमारे यहां अच्छे कपड़े, श्रृंगार और गहने पहनने वाली लड़की को सुंदर माना जाता है।'
नतीजा- उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तुरंत वायरल हो गया। देशभर में बहस छिड़ गई कि क्या मंत्री महिलाओं के पहनावे पर नियंत्रण की मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं? विपक्ष ने भी मंत्री के इस बयान को आड़े हाथों लिया। कांग्रेस ने इसे नैतिक ठेकेदारी का नाम दिया। महिला संगठनों ने कैलाश विजयवर्गीय के इस बयान को निजी स्वतंत्रता पर हमला बताया। वहीं कई बीजेपी नेताओं ने इस बयान को लेकर दूरी बनाई।
2025 में ही जब इंदौर में ऑस्ट्रेलियन महिला क्रिकेटरों के साथ छेड़छाड़ की घटना सामने आई थी। तब भी कैलाश विजयवर्गीय अपने विवादित बयान को लेकर चर्चा में थे। उन्होंने कहा था कि एक सुरक्षा चूक जरूर हुई है, लेकिन उन खिलाड़ियों को भी सतर्क रहना चाहिए था। उन्हें बताकर जाना चाहिए था।' उनका यह बयान पीड़ित महिलाओं के पक्ष में बोलने के बजाय उनकी सादधानी पर सवाल खड़ा कर रहा था।
नतीजा- उनके इस बयान ने तूल पकड़ा, विपक्ष से लेकर महिला समूह तक ने इसे शर्मनाक बताया और कहा कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है।
यही नहीं एमपी के शाजापुर में एक सभा को संबोधित करते हुए 25 सितंबर को उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की संयुक्त रैली पर टिप्पणी करते हुए कहा था, 'हम पुरानी संस्कृति के लोग हैं, पुराने जमाने में लोग अपनी बहनों के गांव का पानी तक नहीं पीते थे, लेकिन आज के हमारे प्रतिपक्ष नेता ऐसे हैं कि अपनी बहन का चौराहे पर चुंबन कर लेते हैं। उन्होंने इसे संस्कारों का अभाव माना और कहा था कि ये विदेश के संस्कार हैं।'
नतीजा- उनके इस बयान की कांग्रेस समेत कई लोगों ने आलोचना की थी और इसे महिला विरोधी बयान करार दिया था। आलोचना के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था, 'मैं किसी रिश्ते की पवित्रता पर सवाल नहीं उठा रहा हूं। सभी रिश्ते पवित्र होते हैं, हालांकि हर रिश्ते की एक सीमा होती है और मैं उसी का जिक्र कर रहा था। मैंने ये कहा था कि विदेशों में ऐसा होता है, लेकिन यहां यानी भारत में ऐसा नहीं होता।'
अप्रैल 2023 में हनुमान जयंती और महावीर जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कैलाश विजयवर्गीय की बयानबाजी फिर विवादों में आ गई। तब उन्होंने कहा था, 'मैं रात को जब पढ़े लिखे नौजवानों को झूमते हुए देखता हूं तो इच्छा होती है कि उतर के उन्हें पांच सात खींच के दे दूं... तो इनका नशा उतर जाए। लड़कियां भी इतने गंदे कपड़े पहनकर निकलती हैं कि उनमें देवी का स्वरूप नहीं दिखता। वो शूर्पणखा लगती हैं।'
नतीजा- उनके इस बयान की देशभर में तीखी आलोचना हुई। विजयवर्गीय उस वक्त पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के प्रभारी थे। तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने उनके इस बयान पर तुंरत प्रतिक्रिया दी और कहा था, 'आपकी सोच गंदी है। आपकी नजर गंदी है। हमारे कपड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता।'
अगस्त 2022 में जब नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़कर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तब, कैलाश विजयवर्गीय ने उन पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी मिलकर चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन अगस्त 2022 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाई थी। तब बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय की एक टिप्पणी पर हड़कंप मच गया था।
उन्होंने कहा था, 'जिस दिन बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ मैं विदेश में था। तब एक ने कहा कि हमारे यहां जैसे लड़कियां बॉयफ्रेंड बदलती हैं वैसे बिहार की राजनीति है। बिहार के मुख्यमंत्री की भी वही पोजीशन है।'
नतीजा- विवाद बढ़ता देख कैलाश विजयवर्गीय को सफाई देनी पड़ी। उन्होंने कहा था 'मैंने अपने मित्र के बयान को कोट किया था। नारी हमारे लिए पूजनीय है। नारी के लिए, कम से कम भारतीय नारी के लिए हम सबका बहुत सम्मान है।'
जनवरी 2013 में भी रेप की लगातार बढ़ती घटनाओं पर टिप्पणी करते हुए कैलाश विजयवर्गीय सुर्खियों में रह चुके हैं। तब भी उनका बयान ही विवाद का कारण बना था। लगातार होती आलोचनाओं के बाद बीजेपी को इस पर खुद सफाई देनी पड़ी थी।
तब मीडिया से बात करते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था, 'एक ही शब्द है मर्यादा। मर्यादा का उल्लंघन होता है, तो सीता हरण हो जाता है। लक्ष्मण रेखा हर व्यक्ति की खींची गई है। उस लक्ष्मण रेखा को कोई भी पार करेगा, तो रावण सामने बैठा है, वह सीता हरण करके ले जाएगा।'
नतीजा- उनकी इस आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद विवाद बढ़ता देख तत्कालीन बीजेपी प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद ने कहा था, 'पार्टी इस बयान से खुद को दूर रखती है और उन्होंने कैलाश से ये बयान वापस लेने को कहा है।' इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि, 'उनका मक़सद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था'
विधानसभा हो या सड़क रामेश्वर शर्मा भी अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे। उन्होंने कई मौकों पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पर उग्रवादियों के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगाया। हिंदुत्व पर तीखे बयान दिए और कहा कि जो लोग धर्म पर हमला करेंगे उन्हें नहीं कब्रिस्तान पहुंचाया जाएगा।'
नतीजा- उनके हिंदुत्व वाले बयानों ने राजनीतिक माहौल को लगातार धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर धकेला। विपक्ष ने इसे सांप्रदायिक राजनीति कहा, जबकि उनके समर्थकों ने इसे स्पष्ट विचारधारा का नाम दिया।
प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वीडी शर्मा कई विवादों के बीच संकटकालीन मैनेजर के रूप में डटे रहे। कुंवर विजय शाह के बयान पर उनका बयान सामने आया पार्टी ने उन्हें तुरंत चेतावनी दी है। लेकिन कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं की गई। इससे सवाल उठे कि क्या पार्टी नेतृत्व सिर्फ शब्दों तक ही सीमित है?
विपक्ष ने इसे वीडी शर्मा का ढुलमुल रवैया बताया। जबकि उनके समर्थक कहते रहे कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक कार्रवाई नहीं की जा सकती। लेकिन तब तक पार्टी को राजनीतिक नुकसान तो झेलना ही पड़ा।
ये बयान और जनता का विरोध सीधा-सीधा संदेश बने कि सिर्फ काम नहीं, भाषा भी जवाबदेही में आएगी। 2025 में जनता और न्यायपालिका दोनों ने नेताओं को उनकी जिम्मेदारी को नई तरह से परिभाषित किया। प्रदेशभर में राजनीति बदल रही है। मतदाता अब सिर्फ विकास नहीं, बल्कि नेताओं की भाषा, सोच और संवेदनशीलता पर भी पूरा फोकस कर रहा है।
मार्च 2025 में प्रह्लाद पटेल का बयान सुर्खियों में रहा। उन्होंने कहा था लोगों को भीख मांगने की आदत। उनका यह बयान कई लोगों की समस्याओं और योजनाओं की मांग पर टिप्पणी था। विकास, योजनाओं या सरकारी मदद मांगने वाले गरीब, ग्रामीणों और लोगों की स्थिति बेहद संवेदनशील होती है। पटेल के इस बयान पर जमकर विवाद हुआ।
नतीजा- उनका ये बयान राजनीतिक रूप से बड़ी परेशानी की वजह बना। विपक्ष के साथ ही सामाजिक, जनहित समूहों ने इसे जनता का अपमान बताया। प्रदर्शन किए गए। कुछ ने उनके माफी मांगने से लेकर इस्तीफा तक देने की मांग की। वहीं पार्टी के ज्यादातर नेता उनके इस बयान से दूरी बनाते नजर आए।
2025 में हाल ही में भाजपा नेता और रोड ठेकेदार रायसेन के स्थानीय नेता का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। जिसमें वे आरक्षण पाने वाले SC ST और OBC वर्ग के लोगों को मवाद खाने वाला बता रहे हैं। उनके इस बयान की कड़ी आलोचना हुई, लोगों ने इसे समाज में विभाजन पैदा करने वाला बताया। जिसके बाद दलित/पिछड़े वर्गों में आक्रोश दिखा। विरोध प्रदर्शन किए गए। FIR की मांग की गई। पुलिस ने शुक्ला के खिलाफ मामला भी दर्ज किया। चर्चा होती रही कि संवैधानिक आरक्षण पर इतनी अपमानजनक भाषा का प्रयोग कोई कैसे कर सकता है।
नतीजा- निचले स्तर का नेता होते हुए भी इस तरह की बयानबाजी ने सामाजिक-साम्प्रदायिक मतभेद को हवा दी। मामला अभी भी चर्चा में है और यह स्पष्ट करता है कि राजनीतिक जिम्मेदारी सिर्फ पद तक सीमित नहीं रहती।
बीजेपी विधायक संजय पाठक का बयानबाजी से भले ही लेना-देना नहीं रहा हो, लेकिन वे अवैध खनन और वसूली का आरोप झेल रहे हैं। अदालत में हस्तक्षेप के प्रयास और जज से संपर्क के आरोप उन पर लगे। जिसके बाद एमपी हाईकोर्ट के जज ने आदेश सुनाते हुए उनके मामले में सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया। उन्होंने कहा था कि विधायक ने उनसे फोन पर कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की। आदिवासियों की जमीनों से जुड़े कई मामले में वे आरोपी हैं बैगा जाति के आदिवासियों की जमीनें उनके नाम पर बदली गईं। जिनका खरीद-बेच विवाद जारी है।
संजय पाठन पर आरोप लगा कि 15 अगस्त को उन्होंने विजयराघवगढ़ स्थित किले में राष्ट्रीय ध्वज को उल्टा फहराया और सलामी दी थी। इस मामले में भी जांच के आदेश दिए गए थे।
नतीजा- उन पर लगे ये सभी आरोप गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। बार-बार निर्वाचित होने वाले विधायक पर ऐसे आरोप से केवल उनकी नहीं बल्कि पार्टी की छवि धूमिल हो रही है।