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बड़ी खुशखबरी: हाथियों को रास आ रहे मध्यप्रदेश के जंगल, बन रहा नया ठिकाना

MP News: आप भी चौंक गए…? लेकिन ये जानना वाकई रोचक है कि हाथी अब अपने पुराने घर मध्यप्रदेश लौट रहे हैं… मुगलकाल, ब्रिटिशकाल से लेकर वर्तमान तक… patrika.com ने स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट के मयंक मकरंद वर्मा से की सीधी बात… आप भी पढ़ें हैरान कर देगी ये रिपोर्ट

5 min read
Sep 27, 2025
MP News Elephants in MP Interesting Facts(फोटो: सोशल मीडिया)

MP News: संजना कुमार@patrika.com: इतिहास में दर्ज है कि मध्य प्रदेश कभी ऐसे राज्यों में शामिल था, जहां के जंगलों में हाथियों की भरमार थी, लेकिन शिकार, माइनिंग और वनों की कटाई ने इन्हें दूसरे घर ढूंढ़ने को मजबूर कर दिया। लेकिन एक बार फिर हाथियों को एमपी के जंगल पसंद आ रहे हैं। बड़ी रोचक है हाथियों एमपी में हाथियों की वापसी की कहानी… आप भी जरूर पढ़ें SFRI जबलपुर की 'Habitat and Mitigation Measure Project Report (हाथी आवास एवं शमन प्रमुख परियोजना)' पर आधारित patrika.com की एक्सक्लूसिव स्टोरी...

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एमपी की वाइल्ड लाइफ सबसे बेस्ट

दुनियाभर के वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स मान चुके हैं कि एमपी के जंगल वाइल्डलाइफ के लिए सबसे बेस्ट हैं। एमपी के जंगलों में वन्यप्राणियों की बसाहट और उनकी बढ़ती संख्या भी इसका उदाहरण हैं कि एमपी के जंगल उनके आवास के लिए सुरक्षित और मुफीद हैं। फिर बात टाइगर की हो, वल्चर की हो, वुल्फ की हो, लेपर्ड की या फिर अब चीतों की, इन सभी वाइल्ड एनिमल्स और बर्ड्स को एमपी के जंगल रास आ रहे हैं। यही कारण है कि इन सभी एनिमल्स की संख्या को लेकर एमपी पहले पायदान पर है। टाइगर स्टेट, वुल्फ स्टेट, लेपर्ड स्टेट, वल्चर स्टेट, चीता स्टेट का तमगा पा चुके एमपी में अब हाथियों की संख्या भी बढ़ने लगी है।

MP news Elephants in MP forests and tiger reserves(फोटो : सोशल मीडिया)

आते और लौट जाते थे, अब हाथियों का घर बन रहा एमपी


हाथी आवास एवं शमन प्रमुख परियोजना पर काम कर अंतरिम रिपोर्ट तैयार करने वाले मयंक मकरंद वर्मा कहते हैं कि 2005-2008 के बीच का दौर ऐसा रहा, जब हाथियों ने एक बार फिर से एमपी (MP News) में आना शुरू किया था। ये झारखंड और छत्तीसगढ़ के जंगलों से एमपी के पश्चिमी क्षेत्रों में आते थे।

चार से पांच महीने यहां रुकते और फिर लौट जाते थे। जनवरी में वे यहां आते हैं और मार्च-अप्रैल तक लौट जाते हैं। लेकिन 2018 की बात करते हुए वे कहते हैं कि अनूपपुर से जो हाथी आए, वो बांधवगढ़ में सेट हो गए यानी वे लौटे नहीं। अब एमपी के जंगलों में बड़ी संख्या में हाथी आ रहे हैं। इसी तरह संजय टाइगर रिजर्व और ब्यौहारी वन परिक्षेत्र में आ रहे हैं। ये तीनों क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हाथियों की संख्या अब करीब 100 हो चुकी है।

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MP News Elephant is an Environment Engineer Animal(फोटो: सोशल मीडिया)

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एमपी क्यों लौट रहे हाथी?

नर्मदा नदी के आसपास और ईस्टर्न हिस्से में हाथियों का नया ठिकाना क्यों बन रहा? इस सवाल पर मयंक का कहना है कि 2018 के बाद इन इलाकों में हजारों प्वॉइंट्स की मॉडलिंग की गई, कि आखिर हाथियों को यहां ऐसा क्या पसंद आ रहा है… इसके लिए झारखंड और छत्तीसगढ़ के जंगलों को भी शामिल किया। इस मॉडलिंग रिपोर्ट में सामने आया कि हाथियों को एमपी के इन जंगलों में यहां का एन्वायरमेंट्ल बैरियर रास आ रहा है। मयंक कहते हैं कि, हाथियों को सर्दियों का मौसम या कम टेम्प्रेचर पसंद नहीं आता। इसलिए वे अमरकंटक के निचले इलाकों से आगे नहीं बढ़ते। ऊपरी इलाकों में पड़ने वाली ठंड के कारण वे यहीं तक सीमित हो गए हैं।

इन इलाकों में आए लेकिन, रुके नहीं हाथी

मयंक कहते हैं कि जब उन्होंने ऐसे इलाकों में रिसर्च की जहां हाथी आते हैं, लेकिन रुकते नहीं हैं। रिसर्च में सामने आया कि जिन इलाकों में माइनिंग बड़े स्तर पर की जा रही है, वहीं जहां पॉपुलेशन डेंसिटी ज्यादा है, हाथी उन जगहों से लौट रहे हैं। ये जगह उन्हें सूट नहीं कर रहें। मयंक के मुताबिक हाथियों के लिए सूटेबल एरिया, अनसूटेबल एरिया और उनके कॉरिडोर को लेकर उन्होंने बाकायदा एक नक्शा (MAP) तैयार किया है। इस मैप में उन्होंने उन क्षेत्रों को भी शामिल किया है, जहां हाथी भविष्य में अपना ठिकाना बना सकते हैं, क्योंकि वे उनके लिए अनुकूल हैं।

MP News Good news for MP Wildlife(फोटो: सोशल मीडिया)

141 गांवों में किया सर्वे, तो खुली पोल

मयंक के मुताबिक बांधवगढ़, संजय टाइगर रिजर्व और ब्यौहारी के कॉरिडोर जैसे अनूपपुर शहडोल में ऐसे संवेदनशील गांवों (जहां हाथियों के झुंड तीन बार से ज्यादा आए हों) में हमने सर्वे किया। लोगों से बातचीत के इस सर्वे में सामने आया कि हाथियों के सहअस्तित्व की संभावना सिंगरौली के आसपास के गांवों में ज्यादा दिखी जबकि, बांधवगढ़ के आसपास के गांवों में यह काफी कम थी। इसका अंतर हम ऐसे समझ सकते हैं कि जहां हाथियों के साथ मानव का रहना संभव है या नहीं… इस सर्वे में सिंगरौली वाले एरिया जहां अभी इकोनॉमिक ग्रोथ कम है, वहां ज्यादा, वहीं बांधवगढ़ के हिस्से में इकोनॉमिक ग्रोथ ज्यादा थी, तो लोग जंगली जानवरों का साथ स्वीकारना ही नहीं चाहते।

अंतरिम रिपोर्ट सौंपी

मयंक बताते हैं कि अभी प्रोजेक्ट की अंतरिम रिपोर्ट तैयार कर वन विभाग को सौंपी गई है। लेकिन फाइनल रिपोर्ट में सतपुड़़ा टाइगर रिजर्व के साथ ही मंडला और बालाघाट के अभी कुछ और स्थानों की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं, उसे एड करते हुए फाइनल रिपोर्ट वन विभाग को दी जाएगी। इसेम 6 महीने से लेकर 1 साल का समय लग सकता है।

MP News- Elephant in MP(फोटो: पत्रिका)

फैक्ट फाइल

वन्यजीव जनगणना और पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी आबादी है। देशभर में इनकी संख्या 30 हजार से भी ज्यादा है। इनमें सबसे ज्यादा हाथी दक्षिण भारत नॉर्थ ईस्ट राज्यों में पाए जाते हैं।

Top 5 State of India Elephants Home(फोटो: सोशल मीडिया)
Historic Facts of Elephant in MP(फोटो: सोशल मीडिया)

बड़ी खुशखबरी है...

लेकिन धीरे-धीरे शिकार, जंगलों की कटाई और खनन के चलते हाथियों की संख्या लगातार घटती चली गई। बड़ी खुशखबरी यही है कि मुगलकालीन और ब्रिटिशकालीन हाथियों के किस्से आज एक बार फिर सच हो रहे हैं। एमपी (MP News) में एक बार फिर हाथी लौट रहे हैं। आज एक बार फिर से उनकी आबादी यहां तेजी से बढ़ रही है। ज्यादातर अमरकंटक और सतपुड़ा बेल्ट के जंगलों में देखे जा सकते हैं। एमपी की वाइल्ड लाइफ के लिए बेहद सुखद खबर है... आप क्या कहते हैं...?

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Updated on:
29 Sept 2025 04:41 pm
Published on:
27 Sept 2025 05:10 pm
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