बिहार में रिकवरी एजेंटों की मनमानी से एक बच्ची की जान चली गई। जानिए क्या हैं ऐसी स्थिति से बचने के लिए RBI के नियम
बिहार में एक पिता अपनी बीमार बेटी को अस्पताल ले जा रहा था, लेकिन रास्ते में 3 रिकवरी एजेंटों ने उसकी बाइक जब्त कर ली। इलाज में हुई देरी के कारण बच्ची की मौत हो गई। बाइक एक फाइनेंस कंपनी से लोन पर खरीदी गई थी और कुछ ईएमआई बाकी थीं। एजेंटों ने कर्ज बकाया बताकर बाइक जबरन जब्त कर ली। पिता ने बच्ची की हालत का हवाला दिया और गिड़गिड़ाया, लेकिन एजेंटों ने एक नहीं सुनी। इलाज में हुई देरी से 12 साल की अंशु वहीं बेहोश होकर गिर गई और उसकी मौत हो गई। इस दर्दनाक घटना से गुस्साए ग्रामीणों ने NH-107 जाम कर दिया और न्याय की मांग की। RBI ने बीते दिनों रिकवरी एजेंटों की मनमानी रोकने के लिए सख्त नियम बनाए हैं। वे कर्ज की वसूली के दौरान किसी तरह की जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकते।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ऐसे हालात से बचने के लिए रिकवरी एजेंटों और बैंकों के लिए सख्त दिशा-निर्देश बनाए हैं। कर्जदारों को यह जानना जरूरी है कि उनके भी अधिकार हैं और वे मनमाने व्यवहार को सहने के लिए बाध्य नहीं हैं।
किसी भी रिकवरी एजेंट से उसका बैंक/NBFC द्वारा जारी आईडी कार्ड मांगना कर्जधारक अधिकार है। आईडी कार्ड पर एजेंट का नाम, कर्मचारी संख्या और संस्थान की जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए। आप बैंक से एजेंट की पुष्टि कर सकते हैं।
रिकवरी एजेंट आपका कर्ज सार्वजनिक जगहों, रिश्तेदारों या पड़ोसियों के सामने उजागर नहीं कर सकते। आपके कर्ज की जानकारी सिर्फ आप और बैंक/NBFC के बीच गोपनीय रहनी चाहिए। इस अधिकार के उल्लंघन पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
एजेंट आपसे सभ्य, मर्यादित और उचित तरीके से पेश आने के लिए बाध्य हैं। वे सुबह 7 बजे से पहले और शाम 7 बजे के बाद आपसे संपर्क नहीं कर सकते। गाली-गलौच, धमकी या शारीरिक हिंसा कानूनन अपराध है।
किसी भी एजेंट की मनमानी की स्थिति में आप सीधे बैंक/NBFC में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। अगर बैंक कार्रवाई नहीं करता तो आप RBI या लोकपाल तक मामला ले जा सकते हैं।
लोन डिफॉल्ट होना किसी की मजबूरी भी हो सकती है। नौकरी छूटने, बीमारी या किसी अन्य संकट की वजह से कई बार लोग किस्तें समय पर नहीं चुका पाते। ऐसी स्थिति में कुछ विकल्प मौजूद हैं :
a) बैंक से बात करें : अपनी आर्थिक स्थिति ईमानदारी से बैंक को बताएं। इससे यह साबित होगा कि आप समस्या हल करने के लिए गंभीर हैं। कई बार बैंक किस्तों में राहत या समय बढ़ाने का विकल्प देता है।
b) Loan Restructuring : अगर ईएमआई भरना मुश्किल हो रहा है तो बैंक से Loan Restructuring की डिमांड करें। इसमें ईएमआई का नया शेड्यूल बन सकता है और भुगतान आसान हो सकता है।
c) वन-टाइम सेटलमेंट (OTS) : अगर लोन चुकाना संभव नहीं है तो बैंक से समझौते का विकल्प भी होता है। इसमें एकमुश्त रकम देकर मामला निपटाया जा सकता है। हालांकि, इससे क्रेडिट स्कोर पर निगेटिव असर पड़ता है।