Patrika Special News

सरफरोशी की तमन्ना…: देश में आजादी की लौ जलाने वाले अमर शहीद बिस्मिल पर विशेष

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है..." ये लफ्ज़ सिर्फ एक शेर नहीं थे, ये उस दौर के हर नौजवान के दिल में धधकती एक चिंगारी थे और उस चिंगारी को हवा देने वाले थे भारत मां के वीर सपूत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल। आइए जानते हैं देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले वीर की कुछ अहम योगदान।

2 min read

Ram Prasad bismil: 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे राम प्रसाद बिस्मिल, केवल कलम के सिपाही नहीं थे, बल्कि उन्होंने बंदूक थामकर अंग्रेजी हुकूमत को खुली चुनौती दी थी। उनके पिता मुरलीधर और मां मूलमती भी शायद नहीं जानते थे कि उनका बेटा एक दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नायक बनेगा।

काकोरी: सिर्फ डकैती नहीं, ब्रिटिश सत्ता को खुली चुनौती

9 अगस्त 1925 की ये तारीख अंग्रेजी हुकूमत के रोंगटे खड़े कर गई थी। लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' (HRA) के क्रांतिकारियों ने एक चलती ट्रेन को रोककर ब्रिटिश खजाना लूट लिया। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हुए इस साहसिक अभियान में चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी समेत कई नौजवान शामिल थे। जिनकी वीरता की गाथा को आज भी नमन किया जाता है।

इस लूट का मकसद निजी स्वार्थ नहीं था। यह धन हथियारों की खरीद और आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए था। काकोरी कांड सिर्फ एक आर्थिक वार नहीं था, यह ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला देने वाला क्रांतिकारी संदेश था।

HRA: विचार से संगठन तक का सफर

राम प्रसाद बिस्मिल ने 1924 में सचिंद्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ मिलकर 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' की नींव रखी थी।
वह केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक विचारक और कवि भी थे। उन्होंने संगठन का संविधान लिखा, कविताओं और लेखों के माध्यम से युवाओं को जोड़ा। उनकी किताबें "क्रांतिकारी जीवन" और "बोल्शेविकों की करतूत" उस समय के युवाओं के बीच गुप्त रूप से लोकप्रिय हो गईं। उनका साहित्य किसी हथियार से कम नहीं था। इन्हीं की सीख से युवाओं में क्रन्तिकारी सोच का संचार तेज हुआ।

अंग्रेजों की नजर में सबसे बड़ा खतरा

ब्रिटिश हुकूमत को सबसे ज्यादा डर राम प्रसाद बिस्मिल की सोच और उनकी रणनीति से था। काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने जब उन्हें गिरफ्तार किया, तो उनके लेखों, कविताओं और पुस्तकों को जब्त कर लिया गया। उनकी 'सरफरोशी की तमन्ना' उस वक्त हुकूमत के लिए क्रांतिकारी बिगुल बन चुकी थी।

तीस की उम्र में शहादत, पर अमर हो गया नाम

19 दिसंबर 1927, गोरखपुर जेल, समय सुबह सिर्फ तीस वर्ष की उम्र में राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी पर लटका दिया गया। लेकिन उनका नाम, उनका विचार और उनके शब्द आज भी हर आज़ादी पसंद भारतीय के दिल में जीवित हैं।

आज की पीढ़ी के लिए सबक

बिस्मिल का जीवन सिर्फ इतिहास नहीं, एक प्रेरणा का स्रोत है। जहां आज भी युवाओं को दिशा की तलाश है, वहां उनका साहस, उनकी संगठन क्षमता, और उनकी लेखनी एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती है।

Also Read
View All

अगली खबर