Sheikh Hasina Delhi Residence: बांग्लादेश कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जुलाई विद्रोह में मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई है।
Sheikh Hasina Delhi Residence: बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने आज पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) वाजेद को मौत की सजा सुनाई, तब वह ( शेख हसीना) ढाका से दूर नई दिल्ली के एक अज्ञात स्थान पर थीं। सुरक्षा कारणों से उनके आवास की जानकारी गुप्त रखी गई है। वो अपने देश में पिछले साल हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद आनन-फानन में नई दिल्ली आ गई थीं। वो इस बार अकेले ही ही भारत आईं हैं। दिल्ली उनके लिए दूसरे घर की तरह है, क्योंकि 1975 से 1981 तक छह साल उन्होंने यहीं निर्वासन में बिताए थे।
उन दिनों शेख हसीना पंडारा पार्क के सी ब्लॉक के एक फ्लैट में रहती थीं। उनके पति डॉ. एम.ए. वाजेद मियां (परमाणु वैज्ञानिक) और दोनों बच्चे भी साथ थे। कुछ हफ्ते वे लाजपत नगर पार्ट थ्री के 56 नंबर के बंगले में भी रही थीं। इसके पीछे वाले एक बंगले में मशहूर चित्रकार सतीश गुजराल का घर था। बहरहाल, यहां से बाद में बांग्लादेश हाई कमीशन कई सालों तक चलता रहा है। अब हाई कमीशन चाणक्यपुरी में है।
दरअसल 15 अगस्त 1975 को ढाका के धानमंडी स्थित घर में उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान, मां और तीन भाइयों की हत्या कर दी गई थी। उस वक्त शेख हसीना अपने पति और बच्चों के साथ जर्मनी में थीं, इसलिए बच गईं। परिवार के नरसंहार से वे पूरी तरह टूट चुकी थीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण दी। इंदिरा गांधी और मुजीबुर रहमान के बीच गहरे व्यक्तिगत संबंध थे।
दिल्ली में उनके सबसे करीबी दोस्त प्रणब मुखर्जी और उनकी पत्नी शुभ्रा मुखर्जी थे। दोनों परिवार लगातार मिलते-जुलते थे। तालकटोरा रोड स्थित प्रणव मुखर्जी के घर हसीना अपने बच्चों के साथ अक्सर जाती थीं। दोनों परिवारों के बच्चे भी अच्छे दोस्त बन गए थे। प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने एक बार बताया था, “मम्मी और हसीना आंटी घंटों कला, संगीत और बांग्ला साहित्य पर बातें करते थे। जब 18 अगस्त 2015 को मम्मी का निधन हुआ तो हसीना आंटी अपनी बेटी पुतुल के साथ श्रद्धांजलि देने आई थीं। पुतुल और मैं इंडिया गेट पर गुड़ियों से साथ खेलते थे।”
समय काटने के लिए शेख हसीना ने आकाशवाणी की बांग्ला सेवा में काम करना भी शुरू कर दिया था। वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा याद करते हैं, “ शेख हसीना उस दौर में नियमित रूप से संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी भवन में आया करती थीं।”
बांग्लादेश में हालात सुधरे तो शेख हसीना 1981 में स्वदेश लौट गईं, लेकिन मुखर्जी परिवार से रिश्ता कभी नहीं टूटा। दिल्ली आने पर वे जरूर शुभ्रा और प्रणब मुखर्जी से मिलती थीं। अवामी लीग के नेता लगातार दिल्ली आकर उनसे बांग्लादेश लौटने और सक्रिय राजनीति करने की गुजारिश करते थे। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने 1981 में वापसी का फैसला किया। वो 2024 से दिल्ली में हैं, लेकिन अब न शुभ्रा मुखर्जी हैं, न पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी। दोनों इस दुनिया में नहीं रहे। यह मुमकिन है कि प्रणव कुमार मुखर्जी के परिवार के सदस्य उनसे मिलते-जुलते हों।
हां,अब राजधानी के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के पास वाली सड़क उनके पिता के नाम पर है – शेख मुजीबुर रहमान मार्ग। सन 2017 तक इसे पार्क स्ट्रीट कहा जाता था। मुजीब 10 जनवरी 1972 को जब दिल्ली आए थे तो पालम हवाई अड्डे पर इंदिरा गांधी और पूरा मंत्रिमंडल उन्हें लेने के लिए एयरपोर्ट पहुंचा था। कड़ाके की ठंड में हजारों दिल्लीवासी सड़कों पर उनका स्वागत करने के लिए खड़े थे। दोनों देशों के राष्ट्रगान बजे थे।
आज, जब वो फिर से नई दिल्ली में हैं, तो यह इतिहास का एक विडंबनापूर्ण दोहराव लगता है। सन 2024 का वह काला साल था जब बांग्लादेश की सड़कों पर छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा। जुलाई 2024 में शुरू हुए आंदोलन ने जल्द ही पूरे देश को जकड़ लिया। सरकार ने सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण को बनाए रखने का फैसला किया था, जो स्वतंत्रता संग्राम के वीरों के परिजनों के लिए था। छात्रों ने इसे अन्यायपूर्ण बताते हुए विरोध शुरू किया। लेकिन हसीना सरकार ने इसका दमनकारी जवाब दिया। पुलिस और सशस्त्र बलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 300 से अधिक लोग मारे गए, जबकि मानवाधिकार संगठनों का अनुमान 1,000 से ऊपर है। यह हिंसा हसीना के 15 वर्षों के शासन का अंतिम अध्याय साबित हुई।
अगस्त 2024 में, सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने हस्तक्षेप किया और हसीना को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। हसीना ने हेलीकॉप्टर से भागते हुए भारत का रुख किया। नई दिल्ली पहुंच कर उन्होंने कहा, "मैं हमेशा भारत की कृतज्ञ हूं।" भारत ने उन्हें शरण दी, लेकिन यह निर्णय विवादास्पद रहा। बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार, जिसका नेतृत्व नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस कर रहे हैं, उन्होंने हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। लेकिन भारत ने इसे संप्रभुता और मानवीय आधार पर अस्वीकार कर दिया । हसीना के भारत में रहने से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।
आज की सजा उसी हिंसा का परिणाम है। ढाका की अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने हसीना को 'जनसंहार' और 'मानवता के खिलाफ अपराधों' का दोषी ठहराया। ट्रिब्यूनल ने पाया कि हसीना ने जानबूझ कर आदेश दिए थे, जिसमें प्रदर्शनकारियों को 'आतंकवादी' घोषित करना और घातक बल का उपयोग करना शामिल था। मुकदमे में 78 गवाहों की गवाही हुई, जिसमें छात्र नेता अबू सयेद का नाम प्रमुख था, जिसकी आंख पर गोली मार कर हत्या की गई थी। हसीना के पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी मौत की सजा सुनाई गई। ट्रिब्यूनल के न्यायाधीश अबुल कासेम ने फैसले में कहा, "यह न्याय पीड़ितों के लिए है, न कि राजनीतिक प्रतिशोध के लिए।" लेकिन विपक्षी दलों ने इसे 'राजनीतिक बदला' ही करार दिया है।
शेख हसीना ने बीते दिनों भारत के कुछ खास अखबारों को इंटरव्यू देते हुए अपने देश की सरकार की निंदा भी की थी। उन्हें भले ही सजा सुना दी गई है, पर शेख हसीना भारत की राजधानी नई दिल्ली में सुरक्षित हैं। फिलहाल तो उनके अपने देश में वापस जाने की कोई संभावना भी नहीं है।