CG News: रायपुर में 660 करोड़ रुपए के रीएजेंट व मेडिकल उपकरण खरीदी घोटाले में आईएएस अफसरों पर आंच तक नहीं आई है, जबकि घोटाले में इनकी भूमिका भी संदिग्ध रही है।
CG News: छत्तीसगढ़ के रायपुर में 660 करोड़ रुपए के रीएजेंट व मेडिकल उपकरण खरीदी घोटाले में आईएएस अफसरों पर आंच तक नहीं आई है, जबकि घोटाले में इनकी भूमिका भी संदिग्ध रही है। आईएएस अफसरों में तत्कालीन हैल्थ डायरेक्टर, सीजीएमएससी व एनएचएम के एमडी रहे हैं। उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
दरअसल, हैल्थ डायरेक्टर स्वास्थ्य विभाग के मुखिया होते हैं। वे गैरजरूरी रीएजेंट की डिमांड भेजने की जिमेदारी से बच नहीं सकते। वैसे ही सीजीएमएससी के एमडी ने बिना वेरिफाई कैसे मोक्षित कॉर्पोरेशन को खरीदी के ऑर्डर दे दिए? वहीं, एनएमएच के एमडी ने फंड उपलब्ध कराया था। बताया जाता है कि तब वे हैल्थ डायरेक्टर के पद पर रहे हैं और उन्होंने ही रीएजेंट की मांग सीजीएमएससी के पास भेजी थी।
जानकारों के अनुसार, तीनों ही आईएएस अधिकारी रीएजेंट खरीदी मामले में पाक साफ नहीं माने जा सकते। प्रथम दृष्टया उनकी लापरवाही सामने आई है। जरूरत न होते हुए भी इतना बड़ा ऑर्डर जानबूझकर दिए या दबाव में, ये जांच का विषय है। आईएएस अफसरों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर इस बात की चर्चा है कि कई उन्हें नौकरशाह होने के नाते बचाया तो नहीं जा रहा है। तत्कालीन हैल्थ डायरेक्टर व सीजीएमएससी के एमडी से ईओडब्ल्यू पहले ही पूछताछ कर चुकी है।
दरअसल, इन दोनों अधिकारियों की भूमिका इसलिए संदिग्ध है, क्योंकि हैल्थ डायरेक्टर की अनुमति के बिना सीजीएमएससी एक रुपए की दवा या मेडिकल उपकरण नहीं खरीद सकता। हैल्थ डायरेक्टर जिलों से आई मांग के अनुसार सीजीएमएससी भेजता है। इसके बाद फंड ट्रांसफर भी करता है। इस मामले में मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा समेत सीजीएमएससी के 6 अधिकारी अभी जेल में है।
राज्य शासन ने 5 अगस्त को सीजीएमएससी के एमडी को हटा दिया था। बताया जाता है कि उन्हें रीएजेंट घोटाले के मुय आरोपी मोक्षित कॉर्पोरेशन को भुगतान करना भारी पड़ गया। बताया जाता है कि ईडी की जांच में विभागीय मंत्री के कहने पर भुगतान करने की बात सामने आई है। कांग्रेस स्वास्थ्य मंत्री पर इस तरह का आरोप भी लगा रही थी।
मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा।
बसंत कुमार कौशिक जीएम उपकरण एवं डिप्टी मैनेजर क्रय।
डॉ. अनिल परसाई, स्टोर प्रभारी व डिप्टी डायरेक्टर डीएचएस।
छिरोद रौतिया, बायो मेडिकल इंजीनियर।
कमलकांत पाटनवार, डिप्टी मैनेजर उपकरण।
दीपक कुमार बंधे, बायो मेडिकल इंजीनियर।
वर्तमान में 700 से ज्यादा ब्लड जांचने वाली मशीन बंद भी है। इनमें कई मशीनें डिब्बा बंद होने के कारण खराब भी हो चुकी हैं।मशीन बंद होने का कारण बारकोड है, जो मोक्षित कॉर्पोरेशन ने लगाया था, ताकि सीजीएमएससी से उन्हीें से रीएजेंट खरीद सके।
प्रोपराइटीज आइटम होने के कारण ज्यादातर मशीनों में उन्हीें का रीएजेंट लगता है। चूंकि घोटाले का पूरा मामला पिछली यानी कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान का है, लेकिन मोक्षित कॉर्पोरेशन को नई सरकार ने भुगतान कर दिया। स्वास्थ्य महकमे में चर्चा है कि पेंडेंसी भुगतान में भी करोड़ों की कमीशनखोरी की गई।
सीजीएमएससी एमडी के आदेश के बिना सीजीएमएससी कोई खरीदी नहीं कर सकती। एमडी के आदेश के बाद ही रीएजेंट की पूरी खरीदी मोक्षित कॉर्पोरेशन से गई। डीएचएस व सीजीएमएससी के अधिकारियों ने जरूरत न होते हुए भी रीएजेंट व मेडिकल उपकरण खरीद लिए।
रीएजेंट को पीएचसी तक में डंप कर दिया गया, जहां ब्लड जांचने की कोई मशीन ही नहीं है। यहां तक कि अस्पताल स्टाफ ने यह कहते हुए मना भी किया कि मशीन नहीं है, फिर भी रीएजेंट डंप करते रहे। आज की तारीख में करोड़ों का रीएजेंट खराब हो चुका है।