Chhattisgarh Medical College: वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ, तब प्रदेश में एमबीबीएस की 100 सीटें थीं। तब एकमात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज रायपुर में था। अब सीटों की संख्या बढ़कर 2455 हो गई हैं।
Chhattisgarh Medical College: वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ, तब प्रदेश में एमबीबीएस की 100 सीटें थीं। तब एकमात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज रायपुर में था। अब सीटों की संख्या बढ़कर 2455 हो गई हैं। मेडिकल कॉलेज की संया भी एक से बढ़कर 16 तक पहुंच गई है। अगले साल 200 सीटें और बढ़कर 2530 होने की संभावना है। गौर करने वाली बात ये भी है कि 9 साल पहले एमबीबीएस की 700 सीटें थीं। नौ सालों में ही एमबीबीएस सीटें तीन गुना बढ़ी हैं।
पिछले 25 सालों में प्रदेश में मेडिकल एजुकेशन सेक्टर में जमकर उछाल आया। एमबीबीएस की सीटें 23 गुना से ज्यादा बढ़ गई। वहीं डेंटल कॉलेज की संया भी शून्य से बढ़कर 7 हो गई। नर्सिंग कॉलेज की संया भी 145 पहुंच चुकी है। मेडिकल कॉलेज व सीटें बढ़ने का असर ये हो रहा है कि कट ऑफ भी अच्छा खासा गिरा है। छात्रों को दूसरे राज्यों के मेडिकल कॉलेजों की ओर पलायन नहीं करना पड़ रहा है।
वर्ष 2000 में राजधानी में एकमात्र पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज का संचालन हो रहा था। तब पीएमटी में कड़ी प्रतिस्पर्धा होती थी। मुश्किल से इस कॉलेज में एडमिशन होता था। ज्यादातर छात्रों को दूसरे राज्य या मध्यप्रदेश के कॉलेजों में प्रवेश लेने का मौका मिलता था।
2016 में केवल 5 सरकारी व एक निजी मेडिकल कॉलेज था। रायपुर के अलावा बिलासपुर, रायगढ़, राजनांदगांव व जगदलपुर में ही सरकारी कॉलेज थे। दुर्ग का निजी कॉलेज अधिग्रहण के बाद अब सरकारी बन गया है। वहां एमबीबीएस की 200 सीटें हैं। जबकि 5 निजी कॉलेज चल रहे हैं।
राज्य निर्माण के दौरान प्रदेश में एक भी डेंटल कॉलेज नहीं था। 2009 में सरकारी डेंटल कॉलेज आयुर्वेद कॉलेज परिसर में शुरू हुआ, जो अब आंबेडकर अस्पताल के पास चला गया है। यहां बीडीएस की 100 सीटें हैं। बाद में 5 निजी कॉलेज खुल गए। वहां 500 सीटें हैं। इस साल एक नया डेंटल कॉलेज भी खुला। अब इसे मिलाकर 7 कॉलेज और सीटों की संया 700 पहुंच गई है। यानी छोटे से प्रदेश में इतने डेंटल कॉलेज होना सुखद आश्चर्य भी है।
नर्सिंग कॉलेजों की संख्या भी शून्य से बढ़कर 145 से ज्यादा पहुंच चुकी है। सरकारी नर्सिंग कॉलेज की स्थापना रायपुर में 2003 में हुई। तब यह टिकरापारा में संचालित होता था। 12 अगस्त 2012 से नेहरू मेडिकल कॉलेज कैंपस में चल रहा है। नर्सिंग के साथ जीएनएम कॉलेज भी है, जिसे अपग्रेड कर बीएससी कोर्स में तब्दील किया जा रहा है। हालांकि जानकारों के अनुसार कॉलेजों की संया तो बढ़ी है, लेकिन क्वालिटी से काफी समझौता किया जा रहा है।
मेडिकल एजुकेशन में प्रदेश का कोई सानी नहीं है। एमबीबीएस की पढ़ाई सबसे सस्ती में हो रही है। छात्र अब दूसरे राज्यों में जाने के बजाय प्रदेश में ही पढ़ाई कर रहे हैं। इससे न केवल रहने-खाने का बल्कि आने-जाने का खर्च भी बचा है। मेडिकल कॉलेज और बढ़ेंगे। इससे कट ऑफ भी गिरेगा।
पिछले 25 सालों में प्रदेश ने मेडिकल एजुकेशन में जबरदस्त छलांग लगाई है। नए मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं। डेंटल कॉलेज भी बढ़े हैं। नर्सिंग कॉलेजों में असामान्य तरीके से वृद्धि हुई है। इस बात पर भी फोकस करना होगा कि क्वांटिटी बढ़ने के साथ क्वालिटी के साथ कोई समझौता न हो।
एस में मेडिकल कॉलेज की शुरुआत 2012 में हुई। तब एमबीबीएस की 100 सीटें थीं। अब सीटें बढ़कर 125 हो चुकी हैं। यहां देशभर के छात्र डॉक्टर बनने आ रहे हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि देश में एस में एमबीबीएस की पढ़ाई सबसे सस्ती है। छात्रों को साढ़े 4 साल के कोर्स के लिए केवल 5814 रुपए फीस देनी होती है। इसमें होस्टल का किराया भी शामिल है। क्वालिटी बेस्ड पढ़ाई होने के कारण यह छात्रों की पहली पसंद बनी हुई है।
कॉलेज सीटें-रायपुर 230, दुर्ग 200, सिस बिलासपुर 150, रायगढ़ 100, कोरबा 125, अंबिकापुर 125, महासमुंद 125 , राजनांदगांव 125, कांकेर 125, जगदलपुर 125, बालाजी रायपुर 250, रिस रायपुर 150, शंकराचार्य भिलाई 250, अभिषेक भिलाई 150, रिस 100
मेडिकल एजुकेशन में ऐसी छलांग