शैलेन्द्र वी गाड़े ने कहा किमुझे लगता है स्टूडेंट्स और रियल वर्ल्ड के बीच कनेक्टिविटी का काम हम एलुमिनाई का है। उनके मुताबिक स्पेस साइंस, डीआरडीओ और सीएसआईआर जैसे संस्थान आने वाले वर्षों में भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की क्षमता रखते हैं
ताबीर हुसैन. एनआईटी में आयोजित एलुमिनी मीट के दौरान डीआरडीओ के पूर्व डायरेक्टर जनरल (आर्मामेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग क्लस्टर) शैलेन्द्र वी गाड़े ने भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी ताकत पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि भारत में टैलेंट की कोई कमी नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ सही दिशा, कनेक्टिविटी और प्लेटफॉर्म की।
मुझे लगता है स्टूडेंट्स और रियल वर्ल्ड के बीच कनेक्टिविटी का काम हम एलुमिनाई का है। उनके मुताबिक स्पेस साइंस, डीआरडीओ और सीएसआईआर जैसे संस्थान आने वाले वर्षों में भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की क्षमता रखते हैं। अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए गाड़े ने कहा कि उस समय छात्र इस बात पर ज्यादा चर्चा करते थे कि परीक्षा में क्या आएगा। लेकिन वे किताब खोलने के बाद पूरा विषय समझने पर ध्यान देते थे।
उनका मानना है कि कॉलेज में पढ़ाया गया कोई भी सब्जेक्ट बेकार नहीं जाता, हर ज्ञान का जीवन में कहीं न कहीं उपयोग होता है। युवाओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि सबसे जरूरी है एक स्पष्ट विजन होना। आज नॉलेज हर जगह उपलब्ध है, लेकिन अपने इंटरेस्ट को पहचानना और उसी दिशा में आगे बढऩा जरूरी है। उन्होंने इनोवेटिवनेस और क्रिएटिविटी पर जोर देते हुए कहा कि युवाओं को रिसर्च एंड डेवलपमेंट में ज्यादा रुचि लेनी चाहिए।
1985 बैच के पूर्व छात्र शैलेन्द्र वी गाडे ने बातचीत की शुरुआत अपने छात्र जीवन और प्रोफेशनल सफर से की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने डीआरडीओ जॉइन किया और देश के कई महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स पर काम किया। उन्होंने मल्टी बैरेल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम पिनाका, विभिन्न स्मॉल आम्र्स प्रोजेक्ट्स जैसे ग्रेनेड लॉन्चर, कार्बाइन राइफल, लाइट मशीन गन पर काम किया। उन्होंने कहा कि उनके कॅरियर का सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट एडवांस्ड टोएड आर्टिलरी गन सिस्टम रहा, जिसमें वे 155 मिलीमीटर गन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे।
उन्होंने कहा कि यह डीआरडीओ का बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था और इसमें ऐसी गन बनाई गई जो दुनिया की बेहतरीन गनों में शामिल है। यह सभी परीक्षणों में सफल रही और इंडियन आर्मी ने इसे इंडक्ट कर लिया है। गाड़े के अनुसार इस गन में एक्सपोर्ट की भी बड़ी संभावना है और कई देशों ने इसमें रुचि दिखाई है। आर्मेनिया को इसका एक्सपोर्ट भी हो चुका है। वे व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट अहमदनगर के डायरेक्टर रहे। अंत में आर्मामेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग क्लस्टर के डायरेक्टर जनरल बने, जहां उन्होंने नौ अहम लैब्स का नेतृत्व किया।