रायपुर

कोस-कोस पर बदले पानी… आगे की लाइन भूल गए MLA पुरंदर, दर्शकों ने लगाए जोरदार ठहाके, जानें पूरी कहावत का अर्थ

Chhattisgarh Rajbhasha Diwas 2025: राजभाषा दिवस समारोह के मंच पर उस समय माहौल हल्का-फुल्का हो गया, जब विधायक पुरंदर मिश्रा भाषण देते हुए मशहूर कहावत “कोस-कोस पर बदले पानी…” के आगे की लाइन भूल गए। मुस्कुराते हुए उन्होंने खुद ही कहा- “अधूरा रह गया, अगले साल पूरा करके सुनाऊंगा।” उनके इस अंदाज़ पर पूरा ऑडिटोरियम ठहाकों से गूंज उठा।

2 min read
Nov 28, 2025
संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में राज भाषा दिवस (फोटो सोर्स- पत्रिका)

ताबीर हुसैन। CG News: संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में आयोजित राजभाषा दिवस समारोह में विधायक पुरंदर मिश्रा मंच पर पहुंचे और भाषण के दौरान एक कहावत बीच में भूल जाने पर स्वयं ही मुस्कुराते हुए बोले- अधूरा रह गया, अगले साल पूरा करके सुनाऊंगा। दरअसल, वे छत्तीसगढ़ी के अलग-अलग स्वरूप पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि कोस-कोस पर बदले पानी। आगे की लाइन वे मंच संचालक अमित मिश्रा से पूछने लगे। वे नहीं बता पाए तो सामने बैठे साहित्यकारों से पूछा। जवाब नहीं आने पर कहने लगे अगले साल इसी कार्यक्रम में बताऊंगा। इतना सुनते ही ऑडिटोरियम में ठहाके लगने लगे। कार्यक्रम में संस्कृति मंत्री राजेश अग्रवाल, विधायक अनुज शर्मा, छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष शशांक शर्मा, फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष मोना सेन और संस्कृति संचालक विवेक आचार्य मौजूद थे।

ये भी पढ़ें

पूजा-पाठ के बीच खून की उल्टी का नाटक कर कहा- गड़बड़ हो गई, खजाना नहीं मिलेगा… जीजा-साले ने उड़ाए 7 लाख, जानें कैसे रची गई ठगी की चाल

CG News: जानिए पूरी कहावत और उसका अर्थ

कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी

कोस: दूरी मापने की एक पारंपरिक इकाई है, जो लगभग 3 किलोमीटर के बराबर होती है।
पानी: यहां पानी का स्वाद और उसकी गुणवत्ता के बदलते स्वरूप को दर्शाता है।
वाणी: यहां भाषा और बोली के क्षेत्रीय रूप को दर्शाता है।

व्याख्या: यह कहावत भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है कि कैसे भौगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं के कारण लोगों की भाषा, बोली, खान-पान और यहां तक कि पानी भी बदल जाता है।

जवानी पर है राजभाषा

मिश्रा ने कहा कि छत्तीसगढ़ की राजभाषा 18 साल की हो चुकी है और अब वह जवानी में है, इसे आगे बढ़ाने का यही सही समय है। मिश्रा ने साफ कहा कि भाषा, संस्कृति और पहचान को एक साथ लेकर चलना जरूरी है, क्योंकि छत्तीसगढ़ की भाषा और संस्कृति ही इस प्रदेश को जीवित और मजबूत रखती है। उन्होंने मंच से सभी साहित्यकारों, कलाकारों और भाषासेवियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनकी मेहनत के कारण छत्तीसगढ़ी आज भी जिंदा, जागृत और सम्मानित है।

ये भी पढ़ें

CGPSC 2024: सीजीपीएससी तैयारी में कैसे करें स्मार्ट स्टडी? रैंकर्स ने बताए शॉर्टकट और ट्रिक्स, जानें

Published on:
28 Nov 2025 04:41 pm
Also Read
View All

अगली खबर