बारिश की बूंदें जब उम्मीदों की धाराएं बन जाएं और नदियों के माध्यम से धरती को तृप्त करने लगें, तो जीवन अपने सबसे सुंदर रूप में दिखाई देता है
राजसमंद. बारिश की बूंदें जब उम्मीदों की धाराएं बन जाएं और नदियों के माध्यम से धरती को तृप्त करने लगें, तो जीवन अपने सबसे सुंदर रूप में दिखाई देता है। कुछ ऐसा ही दृश्य राजसमंद जिले के खमनोर क्षेत्र में रविवार तड़के देखने को मिला, जब बनास नदी पर बना बहुप्रतीक्षितबाघेरी नाका बांध छलक गया। सुबह 4:30 बजे जैसे ही बांध छलका, चादर के रूप में गिरते पानी ने मानो लोगों के मन में न केवल जल की आस्था भरी, बल्कि एक नई ऊर्जा का संचार भी कर दिया। फतेहपुर और मचींद के बीच बने इस बांध को छलकते देखने के लिए रविवार का अवकाश भी वरदान बन गया और लोग परिवारों के साथ इस अद्भुत दृश्य का साक्षी बनने पहुंचे।
2006 में पहली बार छलकने के बाद, यह बांध लगातार 16 वर्षों से बारिश की मेहरबानी का गवाह बनता आ रहा है। इस साल रविवार 6 जुलाई को सुबह-सुबह जब पानी दो इंच की महीन चादर के रूप में बहा, तो दृश्य अत्यंत मनोहारी था। पिछले दिनों कुंभलगढ़ और गोगुंदा की पहाड़ियों में हुई वर्षा से बनास नदी में तेज़ बहाव शुरू हो गया था, जिससे पानी धीरे-धीरे बाघेरी तक पहुंचा और शनिवार को ही बांध लबालब भर गया।
रविवार को जैसे ही बांध छलका, इलाके में खुशियों की लहर दौड़ गई। आसपास के ग्रामीणों और शहरवासियों ने इस क्षण को यादगार बनाने के लिए अपने परिवार और मित्रों के साथ पिकनिक मनाई। लोग चादर में नहाने, सेल्फी लेने और मौज-मस्ती में डूब गए। हरे-भरे पहाड़ों के बीच स्थित बाघेरी नाका, हर वर्ष इस मौसम में न केवल जल संसाधन का केंद्र बनता है बल्कि एक सुंदर पर्यटन स्थल के रूप में भी अपनी पहचान बना चुका है।
वर्ष छलकने की तारीख
बांध की भराव क्षमता 311.68 एमसीएफटी है और यह वर्तमान मानसून में पूरी तरह भर गया है।
बाघेरी नाका छलकने के साथ ही बनास नदी का जल खमनोर की ओर तेजी से बह रहा है। स्थानीय लोग और किसान आशान्वित हैं कि यही जल आगे जाकर नंदसमंद बांध तक पहुंचेगा और वहां भी जल्द चादर बहेगी। नंदसमंद जिले का एक और प्रमुख जलस्रोत है जो बाघेरी से जुड़ी प्रणाली का हिस्सा है। यदि यह भी भर जाता है, तो खरीफ की फसल, पशुओं के लिए पानी और ग्रामीणों की दिनचर्या—तीनों ही स्तर पर बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
बाघेरी अब केवल ग्रामीणों का जल स्रोत नहीं, बल्कि राजसमंद का पर्यटन केंद्र बनता जा रहा है।
जिले के पर्यटन विभाग को यहां इको-टूरिज्म की संभावना तलाशनी चाहिए, जिससे ग्रामीण रोजगार भी बढ़े और यह स्थल अधिक सुरक्षित व संरचित रूप में पर्यटकों को मिले।
जल संसाधन विशेषज्ञों के अनुसार, यदि बाघेरी नाका ऐसे ही वर्ष दर वर्ष छलकता रहा, तो राजसमंद-उदयपुर क्षेत्र में पेयजल संकट पर नियंत्रण संभव है। लेकिन इसके लिए जरूरी है