राजसमंद जिल के चारभुजा में रावण और मेघनाथ का दहन आग से नहीं किया जाता, बल्कि बंदूकों की गोलियों और पत्थरों से रावण का वध कर जमींदोज किया जाता है।
राजसमंद। जिले के चारभुजा कस्बे में दशहरे का उत्सव इस बार भी अपनी अनूठी परंपरा के साथ मनाया गया। यहां वर्षों से रावण और मेघनाथ का दहन आग से नहीं किया जाता, बल्कि बंदूकों की गोलियों और पत्थरों से रावण का वध कर जमींदोज किया जाता है। इस परंपरा को देखने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण और आमजन उपस्थित रहे।
स्थानीय सरगरा समाज के मांगीलाल सरगरा ने इस अवसर पर जवाहर सागर मैदान की पहाड़ी पर पत्थरों से रावण और मेघनाथ की विशाल प्रतिमाएं तैयार कीं। प्रतिमाओं को सजाने के बाद शाम 4:30 बजे मंदिर में विशेष आरती और भोग की रस्म पूरी की गई। इसके उपरांत पुजारी रामचंद्र गुर्जर के नेतृत्व में शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा नगाड़ों, शंख-घंटियों और जयकारों की गूंज के बीच रवाना हुई, जिसमें इमली वाले अखाड़ा रामद्वारा से भगवान राम की प्रतिमा को धनुष-बाण के साथ विराजमान कर शस्त्र पूजन और बलिदान की परंपरा निभाई गई।
ढोल-नगाड़ों और गीत-संगीत के बीच राम सेना और ग्रामीण जन विजय घोष करते हुए मैदान पहुंचे। यहां देवस्थान के सिपाहियों ने रावण पर फायरिंग शुरू की। परंपरा के मुताबिक पांचवें राउंड में अर्जुन प्रजापत ने रावण के पेट को छलनी किया, जबकि ललित सिंह सोलंकी ने उसका मस्तक उड़ा दिया। इसके बाद राम सेना और ग्रामीणों ने पत्थरों से रावण और मेघनाथ की मूर्तियों को तोड़कर जमींदोज कर दिया। इस अनोखे दहन के साथ विजयादशमी का पर्व उत्साह और उल्लास के बीच संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का समापन भगवान राम की प्रतिमा को पुनः अखाड़ा लाकर गर्भगृह में विराजमान करने के साथ किया गया। अंतिम चरण में आरती और प्रसाद वितरण हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने हिस्सा लिया। दशहरे की इस अनोखी परंपरा को देखने दूर-दूर से लोग पहुंचे और राम-रावण युद्ध की ऐतिहासिक झलक का अनुभव किया।