Diwali Lakshmi And Kali Puja 2025: साल 2025 में दिवाली और काली पूजा की तारीख को लेकर असमंजस था, लेकिन ज्योतिषों के अनुसार यह शुभ पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। जानें क्यों की जाती है काली पूजा अमावस्या की रात और क्या है इसका धार्मिक महत्व।
Diwali Lakshmi And Kali Puja 2025: पूरे देश में इन दिनों दिवाली की तैयारी जोरों पर है। जहां उत्तर भारत में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है, वहीं पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में लोग इसी दिन मां काली की आराधना करते हैं। हालांकि, साल 2025 में दिवाली और काली पूजा की तारीख को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ कैलेंडरों में दिवाली 20 अक्टूबर को बताई जा रही है, जबकि कुछ जगह 21 अक्टूबर को काली पूजा का उल्लेख है। आइए जानते हैं, आखिर दिवाली और काली पूजा कब मनाई जाएगी और इस दिन का क्या धार्मिक महत्व है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 2025 में दिवाली की तिथि को लेकर असमंजस ग्रहों की स्थिति और अमावस्या तिथि के समय के कारण बना है। दरअसल, इस वर्ष अमावस्या तिथि दो दिनों में पड़ रही है। इसकी शुरुआत 20 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 44 मिनट से होगी और समाप्ति 21 अक्टूबर शाम 5 बजकर 54 मिनट पर।
शास्त्रों के अनुसार, दिवाली प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को मनाई जाती है। यानी वह अमावस्या जो प्रदोष काल (शाम का समय) तक रहे, वही दिवाली के लिए शुभ मानी जाती है। इसलिए इस बार प्रदोष काल 20 अक्टूबर को अमावस्या तिथि में ही रहेगा, जबकि 21 अक्टूबर को प्रदोष काल अमावस्या से मुक्त होगा। इसी कारण, लक्ष्मी पूजन और काली पूजा दोनों ही 20 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएंगी।
दिवाली की रात कार्तिक अमावस्या की होती है, जो अंधकार और शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। इस रात मां महाकाली की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वे अंधकार पर विजय की देवी हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब मां काली ने असुरों का वध किया तो उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। तब भगवान शिव उनके सामने लेट गए। भगवान के स्पर्श मात्र से ही मां काली का रौद्र रूप शांत हो गया।
इस घटना को अंधकार पर नियंत्रण और ऊर्जा के संतुलन का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, बंगाल, उड़ीसा और असम जैसे राज्यों में दिवाली की रात मां काली के रौद्र स्वरूप की पूजा की जाती है, जबकि उत्तर भारत में मां लक्ष्मी के शांत स्वरूप की आराधना होती है।
काली पूजा यह दर्शाती है कि जब जीवन में अंधकार छा जाए, तो शक्ति की आराधना से रोशनी पाई जा सकती है। वहीं, लक्ष्मी पूजा समृद्धि और शांति का प्रतीक है। इसलिए दिवाली की रात शक्ति और समृद्धि दोनों का संगम मानी जाती है।