श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस पर कथा वाचक रसराज ने क्रोध ना करने का दृष्टांत सुनाया। उन्होंने कहा कि क्रोध से केवल जीवन में नुकसान होता है। क्रोध आने पर मन को शांति रखना चाहिए।
श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस पर क्रोध ना करने का दृष्टांत सुनाया।
सागर. श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस पर कथा वाचक रसराज ने क्रोध ना करने का दृष्टांत सुनाया। उन्होंने कहा कि क्रोध से केवल जीवन में नुकसान होता है। क्रोध आने पर मन को शांति रखना चाहिए। मित्रता निभाने के लिए सुदामा चरित्र वर्णन किया। महाराज ने कहा कि आज कल मित्रता स्वार्थ की रह गई है। जब तक स्वार्थ तब तक मित्रता, स्वार्थ खत्म मित्रता खत्म। उन्हें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से शिक्षा लेने की बात कही। उन्होंने कहा भगवान श्री कृष्ण का जीवन ही संघर्ष पूर्ण रहा उन्होंने जन्म से लेकर जीवन पर्यंत कठिन समस्याओं का सामना किया। कथा श्रवण कर श्रोता भाव विभोर हो गए। कथा के समापन के पूर्व भगवान की आरती की गई। कथा में डॉ. नरेंद्र श्रीधर ने भी विचार रखे।