सतना

कैसे होगा चित्रकूट का विकास: कागजों में हजारों हेक्टेयर जमीन, मौके पर नहीं

विधानसभा के लिए तैयार की गई जानकारी से खुलासा वन विभाग का दावा, राजस्व की जानकारी गलत

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Jul 01, 2024

सतना। प्रदेश सरकार चित्रकूट का विकास अयोध्या की तर्ज पर करने का संकल्प ले चुकी हैं। इस दिशा में प्लान तैयार करने अधिकारियों को निर्देश भी दिए जा चुके हैं। चित्रकूट विकास प्राधिकरण का गठन भी हो चुका है, लेकिन विकास कार्य के लिए यहां जितनी जमीन चाहिए उतनी जमीन है नहीं। लिहाजा जिला प्रशासन ने लगभग 250 हेक्टेयर जमीन वन विभाग से चाही है। वहीं इसके उलट विधानसभा में लगाए गए एक प्रश्न का जो जवाब राजस्व विभाग ने तैयार किया है, वह जमीन की कुछ और कहानी कह रहा है। इस जानकारी को अगर सही मानें तो यहां के विकास के लिए जितनी जमीन जिला प्रशासन को चाहिए, उसकी 10 गुना सरकारी राजस्व जमीन राजस्व अभिलेखों के अनुसार मौजूद है। ऐसे में सवाल खड़े हो गए हैं कि राजस्व रिकार्डों में दर्ज यह जमीन वास्तव में है कहां?

यह है मामला

चित्रकूट के समग्र विकास का विस्तृत प्लान तैयार किया जाना है। इसके लिए बड़े पैमाने पर जमीन की आवश्यकता होनी है, लेकिन प्राथमिक तौर पर पाया गया कि चित्रकूट क्षेत्र ( जो कामता, नयागांव, चौबेपुर पटवारी हल्के के अंतर्गत आता है) में आवश्यकतानुसार जमीन उपलब्ध ही नहीं है। हाल ही में मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक के पश्चात चित्रकूट के समग्र विकास के लिए लगभग 250 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता महसूस की गई। लिहाजा जिला प्रशासन इतनी जमीन वन विभाग से लेने की प्रक्रिया प्रारंभ कर चुका है। इतनी जमीन लेने के बाद वन विभाग को कहीं और इतनी ही राजस्व भूमि सौंपी जाएगी।

राजस्व रिकार्ड में मौजूद जमीनें

विधानसभा के मानसून सत्र में चित्रकूट विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार ने इन पटवारी हल्कों में वर्ष 1958-59 में शासकीय जमीनों की उपलब्धता और वर्तमान में उपलब्ध शासकीय जमीनों की जानकारी चाही है। इस प्रश्न को लेकर राजस्व विभाग ने जो जानकारी जुटाई है उसके अनुसार वर्ष 1958-59 में इन पटवारी हल्कों में कुल 6916 हेक्टेयर शासकीय भूमि थी। इस जमीन में से 2914 हेक्टेयर जमीन का आवंटन व व्यवस्थापन किया गया। इसके बाद आज की स्थिति में यहां 4001 हेक्टेयर जमीन राजस्व अभिलेखों में शेष है।

यह है गड़बड़झाला

राजस्व रिकार्डों में दर्ज शासकीय जमीनों को वन विभाग पूरी तरह से गड़बड़ बताता है। वन विभाग की मानें तो 1968 में भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा (3) के तहत चित्रकूट क्षेत्र में राजस्व भूमि का बहुत बड़ा भू-भाग वन विभाग को आवंटित करते हुए इसे संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया। इस संरक्षित वन क्षेत्र में जो जमीन वन विभाग को दी गई इसका म.प्र. राजपत्र में संरक्षित वन के रूप में प्रकाशन भी किया गया। राजपत्र में प्रकाशन के बाद नियमानुसार राजस्व अमले को इन भूमि को अपने खसरों में राजस्व भूमि से हटा कर वन भूमि दर्ज करना चाहिए था, जो न तो तत्समय के राजस्व अधिकारियों ने किया और न ही आज के अधिकारी ऐसा कर रहे हैं, जबकि इस संबंध में वन विभाग कई पत्राचार कर चुका है।

यह है वन विभाग का दावा

वन विभाग के अनुसार 1968 में म.प्र. राजपत्र प्रकाशन के अनुसार चौबेपुर पटवारी हल्का जो वन विभाग के गुप्त गोदावरी वन क्षेत्र में आता है यहां पर 774 एकड़ जमीन वन विभाग को दी गई है। इसी तरह कामता वन क्षेत्र अंतर्गत कामता पटवारी हल्के की 175 एकड़ जमीन वन विभाग को दी गई है। हनुमानधारा वन क्षेत्र में आने वाले नयागांव और इससे लगे पटवारी हल्के की लगभग 2398 एकड़ जमीन वन विभाग को दी गई है। इसी तरह से पुखरवार और मोहकमगढ़ की क्रमश: 113 और 990 एकड़ राजस्व भूमि वन विभाग को दी गई है जो गजट नोटिफिकेशन के बाद संरक्षित वन घोषित हो चुकी है। लेकिन राजस्व विभाग ने इन जमीनों को अपने खसरे से नहीं काटा है।

इस तरह सामने आई खामी

दौरी सागर बांध जल संसाधन विभाग को मझगवां तहसील में बनाना है। इस बांध के डूब क्षेत्र में लगभग 370 हेक्टेयर वन भूमि आ रही है। इस आवश्यक जमीन के लिए वन विभाग को इतनी ही राजस्व जमीन दी जानी है। इसके लिए राजस्व विभाग ने लैंड पूल से लगभग 2000 हेक्टेयर जमीन की सूची वन विभाग को इसका परीक्षण करने सौंपी। जब वन विभाग ने इस जमीन की जांच की तो पाया कि सौंपी गई सूची में सिर्फ 100 हेक्टेयर राजस्व भूमि है। शेष जमीन पहले ही वन विभाग को दी जा चुकी है, लेकिन राजस्व विभाग अभी तक अपने राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर रखा है। लिहाजा भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हो सकी है।

'' राजस्व विभागों के शासकीय अभिलेखों में अभी भी वन विभाग को दी जा चुकी जमीनें राजस्व भूमि के रूप में दर्ज हैं। जबकि खसरा सुधार कर इन्हें नियमानुसार वन भूमि दर्ज करना चाहिए। इस संबंध में कई बार पत्राचार और आवेदन आधिकारिक तौर पर आवेदन दिया जा चुका है, लेकिन सुधार नहीं हो सका है। इस वजह से वन विभाग को दी जा चुकी जमीनें कई बार राजस्व विभाग खसरा सुधार न करने की वजह से बंटन में भी दे देता है। इससे विवाद की स्थितियां भी बनती हैं।''- अभिषेक तिवारी, एसडीओ वन

'' मेरी जानकारी में यह नहीं है। अगर ऐसा है तो वन विभाग हमें संबंधित जमीनों का ब्योरा, राजपत्र की कॉपी और आवश्यक अभिलेखों के साथ आवेदन प्रस्तुत करे। हम नियमानुसार कार्रवाई कर खसरा सुधार कराएंगे।'' - जीतेन्द्र वर्मा, एसडीएम मझगवां

Published on:
01 Jul 2024 10:28 am
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