जिस वर्ष अधिक बारिश उस वर्ष भूजल स्तर में हुआ सुधार, पानी सहेजें तो संकट से हो सकते हैं दूर
उज्जैन. संसाधनों के कुप्रबंधन से उभरे जलसंकट के बीच एक अच्छी खबर है। उज्जैन में पांच वर्ष के दौरान आबादी बढऩे के बावजूद भूजल स्तर में आशातीत बढ़ोतरी हुई है। 2019 में जहां 12.5 मीटर की गहराई में पानी मिल पाता था, वहीं 2023 में 10.54 मीटर गहराई पर ही पानी निकल पा रहा है। हालांकि बीच के वर्षों में भूजल स्तर कम-ज्यादा होता रहा, लेकिन जिले की स्थिति पिछले वर्ष से बेहतर है। भूजलविदों का कहना है, जलवायु के मिश्रित प्रभाव से जमीन में नमी बनी रही, जिससे ज्यादा दोहन के बावजूद भूजल स्तर में सुधार आया है। इसके पीछे प्रशासन की सख्ती और लोगों की जागरूकता भी बड़ा कारण है। 2001 की जनसंख्या के साथ प्रतिशत वृद्धि के आंकड़ों के मुताबिक जिले की आबादी 24,72,271 हो गई है। इसी अनुरूप नलकूप, बोरवेल खनन भी बढ़ा लेकिन भूजल स्तर में सुधार आया है।
वर्षा ने किया सहयोग
जलवायु के मिश्रित प्रभाव में वर्षा का मापदंड अहम होता है। पांच वर्षों में जिले की वर्षा का आंकड़ा देखें तो बहुत सुधार दिखता है। हालांकि 2020 में अतिवर्षा से जिलेभर में नुकसान हुआ, लेकिन वर्षों से वर्षा का मिजाज मददगार ही रहा है। इससे जमीन में पानी का लेवल बना रहा और भूजल स्तर बढ़ गया।
पांच वर्षों का भूजल स्तर
वर्ष भूजल स्तर ( मीटर में) वर्षा (मिमी में)
2019 12.50 मीटर 815.2
2020 10.01 मीटर 1738.1
2021 8.87 मीटर 1199.0
2022 11.12 मीटर 1131.2
2023 10.54 मीटर 1217.5
इन आंकड़ों को देखने पर एक बात तो स्पष्ट है कि जब-जब बारिश अधिक होती है, भूजल स्तर में सुधार होता है। यदि आसमान से बरसने वाले अमृत को हम लोग सहेजना शुरू कर दें, तो वर्तमान दौर में उपस्थित संसाधनों के कुप्रबंधन के जल संकट से निपटा जा सकता है।
जनसंख्या के सरकारी आंकड़े
(प्रति वर्ष 1.61 प्रतिशत वृद्धि के अनुसार अनुमानित जनसंख्या)
2019 में 2309249
2020 में 2348968
2021 में 2389370
2022 में 2430467
2023 में 24,72271
पांच वर्षों में वर्षा का मापदंड
भूअभिलेख कार्यालय के मुताबिक वर्ष 2019 में जिले की औसत वर्षा 815.2 मिमी थी, जो 2020 में बढकऱ 1738.1 मिमी हो गई। इधर 2021 में कम वर्षा से 1199.0 मिमी रह गई, जो 2022 में 1131.2 मिमी तथा 2023 में 30 अप्रेल तक 1217.5 मिमी वर्षा हुई है।
लोगों में जागरूकता आई
नर्मदा के जल से हमारे पानी का बजट मजबूत हुआ है। नर्मदा का पानी लाकर हमने एडिशनल सोर्स ऑफ वाटर पैदा कर लिया है। इस वजह से हमारी गंभीर के जल पर डिपेंडेंसी घट गई। दूसरी बात यह कि लोगों में पानी के प्रति जागरूकता आई है। पानी का अनावश्यक खर्च रुका तो पानी की बचत हो रही है। सौ टके की बात यह कि नर्मदा के पानी से हमारा वाटर बजट अच्छा हो गया, जिससे भूजल स्तर कम नहीं हो रहा है।
- प्रो. पीके वर्मा, भूगर्भ शास्त्री, विक्रम विवि उज्जैन
एक्सपर्ट व्यू
बदलता रहता है भूजल स्तर
छोटे एरिया में मालागार की परतें पाई जाती है। इनमें पानी स्टोर रहता है। इस एरिया में जो फ्रेक्चर जोन है, जहां से हमें पानी ज्यादा मिलता है, वह फ्रेक्चर जोन 300 फीट के नीचे है। कुल मिलाकर पानी फ्रेक्चर्स के अंदर छिपा है। यदि आपने बोरिंग की है और वह फ्रेक्चर के पास से निकली है, तो आपको पर्याप्त पानी मिल जाएगा। इस लेयर की उज्जैन में 75 से 150 मीटर मोटाई है। ऊपर वाले हिस्से के लिए जहां मालागार की लेयर है, फ्रेक्चर और जल आपूर्ति से ऊपर-नीचे होती है। इस वजह से भूजल स्तर में बदलाव आता रहता है।
-काशीनाथ सिंह, भू-गर्भशास्त्री, विक्रम विवि उज्जैन