1991 से 2024 तक लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बमुश्किल 1 से 5 सीटों तक सीमित रहा। विधानसभा चुनावों में तो स्थिति और खराब रही।
Congress Voter Adhikar Yatra 14 दिन बाद 1 सितंबर 2025 को पूरी हो चुकी है। बिहार की जिन 110 विधानसभा सीटों से होकर यह यात्रा गुजरी, वहां के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का जोश चरम पर है। पर क्या यह जोश कांग्रेस को बिहार की 1990 के दशक वाली पार्टी बना पाएगा, जब पार्टी ने 71 विधानसभा सीटें जीती थीं और साल 2020 आते-आते यह सीटें सिमटकर 19 पर आ गईं?
आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस का बिहार में दशकों से लगातार पतन हुआ है। 1991 से 2024 तक लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बमुश्किल 1 से 5 सीटों तक सीमित रहा। विधानसभा चुनावों में तो स्थिति और खराब रही। यह गिरावट बिहार की राजनीति में कांग्रेस के हाशिये पर चले जाने की गवाही देती है। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान पार्टी ने दावा किया कि उसने 25 जिलों की 110 विधानसभा सीटों को कवर किया। कांग्रेस ने इस यात्रा का सहारा अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाने के लिए किया। राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा और दूसरे बड़े नेताओं ने यात्रा को केवल एक रैली या जुलूस नहीं समझकर पार्टी की खोई ताकत को पुनर्जीवित करने की कोशिश की।
दिलचस्प बात यह है कि 110 विस सीटों में 7 ऐसी सीटें भी शामिल रहीं, जहां कांग्रेस के वर्तमान विधायक मौजूद हैं। मसलन औरंगाबाद, कटुंबा, जमालपुर, कदवा, अररिया, भागलपुर और मुजफ्फरपुर। इसके मायने हैं कि यात्रा के जरिए कांग्रेस ने न सिर्फ अपनी पारंपरिक सीटों को मजबूत करने की कोशिश की बल्कि व्यापक पैमाने पर उपस्थिति दर्ज कराई।
| साल | चुनाव | कांग्रेस | राजद |
| 1998 | लोकसभा | 4 | 17 |
| 1999 | लोकसभा | 2 | 7 |
| 2,004 | लोकसभा | 3 | 22 |
| अक्टूबर 2005 | विधानसभा | 9 | 54 |
| 2014 | लोकसभा | 2 | 4 |
| 2015 | विधानसभा | 27 | 80 |
| 2019 | लोकसभा | 1 | 0 |
| 2020 | विधानसभा | 19 | 75 |
राजनीतिक विश्लेषक चंद्रभूषण बताते हैं कि वास्तविकता यह है कि बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों, क्षेत्रीय दलों और गठबंधन की मजबूरी पर टिकी हुई है। 2020 के चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीट जीत पाई। उसका स्ट्राइक रेट करीब 27% रहा था। जबकि उसी चुनाव में आरजेडी ने 75, वाम दलों ने 16 सीटें जीतकर INDIA गठबंधन को कुल 110 के आंकड़े तक पहुंचाया था। बहुमत के लिए 243 में से 122 सीटें चाहिए थीं। यानी कांग्रेस, गठबंधन की राजनीति में महज जूनियर पार्टनर रही।
चंद्रभूषण के मुताबिक कांग्रेस के सामने चुनौती यही है कि उसकी यात्रा और भाषण जमीनी हकीकत में वोटों में तब्दील होंगे या नहीं। बिहार में कांग्रेस का कोई ठोस वोट बैंक अब नहीं बचा है। मुसलमान और यादव वोट बैंक लगभग पूरी तरह आरजेडी की तरफ झुके हैं, वहीं सवर्ण वोट बीजेपी की ओर। ऐसे में कांग्रेस को अलग पहचान बनाने के लिए स्थानीय नेतृत्व, संगठनात्मक ढांचे और ठोस मुद्दों पर फोकस करना होगा।
उनके मुताबिक वोटर अधिकार यात्रा से कांग्रेस ने जरूर एक संदेश दिया है कि वह अब चुप बैठने वाली पार्टी नहीं है। लेकिन सीटों और वोटों की राजनीति में बदलाव तभी संभव है, जब कांग्रेस इस यात्रा के बाद संगठन और रणनीति पर ईमानदारी से काम करे। वरना यह यात्रा भी सिर्फ शोर-शराबे तक सीमित रह जाएगी।