अधिक मंडी टैक्स, ज्यादा कटौती और दूरी की मार ने किसानों व व्यापारियों को मजबूर कर दिया है कि वे अपनी उपज राजस्थान में नहीं, बल्कि गुजरात की मंडियों में बेचें। नतीजा यह है कि राजस्थान का गेहूं,मक्का, कपास और मूंगफली गुजरात की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है।
नारायण लाल वडेरा
कोटड़ा(उदयपुर). राजस्थान सरकार भले ही किसानों की आय बढ़ाने और मंडी व्यवस्था को मजबूत करने के दावे करे लेकिन सीमावर्ती कोटड़ा क्षेत्र की जमीनी हकीकत इन दावों के उलट है। अधिक मंडी टैक्स, ज्यादा कटौती और दूरी की मार ने किसानों व व्यापारियों को मजबूर कर दिया है कि वे अपनी उपज राजस्थान में नहीं, बल्कि गुजरात की मंडियों में बेचें। नतीजा यह है कि राजस्थान का गेहूं,मक्का, कपास और मूंगफली गुजरात की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है।
टैक्स का फर्क, मुनाफे की दिशा बदल रहा
कोटड़ा क्षेत्र के किसानों और व्यापारियों के अनुसार राजस्थान में मंडी टैक्स 1.65 रुपए प्रति क्विंटल, गुजरात में मंडी टैक्स मात्र 50 पैसे प्रति क्विंटल है। यही बड़ा अंतर किसानों की जेब तय करता है। कम टैक्स और कम कटौती के कारण गुजरात में उपज बेचने पर सीधा फायदा होता है।
कटौती ने बढ़ाई पीड़ा
व्यापारियों का कहना है कि राजस्थान की मंडियों में प्रति क्विंटल डेढ़ किलो तक की कटौती गुजरात की मंडियों में सिर्फ 500 ग्राम कटौती होती है। इसका मतलब साफ है कि प्रति क्विंटल एक किलो अनाज की सीधी बचत होती है जो बड़े व्यापार में हजारों क्विंटल पर लाखों रुपए में बदल जाती है।
रोजाना गुजरात जा रहा लाखों किलो अनाज
कोटड़ा और आसपास के इलाकों से गेहूं सीजन में प्रतिदिन लगभग 1 लाख किलो गेहूं, कपास सीजन में प्रतिदिन करीब 3 हजार किलो कपास यह उपज ट्रकों के जरिए खेड़बह्म, ईडर और हिम्मतनगर की मंडियों में पहुंचाया जा रही है। इससे साफ है कि सीमावर्ती क्षेत्र का बड़ा कृषि व्यापार राजस्थान से बाहर खिसक चुका है।
नजदीकी और टोल की बचत भी बड़ी वजह
कोटड़ा से उदयपुर की दूरी करीब 120 किलोमीटर है जबकि गुजरात की मंडियां मात्र 50 किलोमीटर दूर है। गुजरात की ओर कोई टोल नाका भी नहीं है। उदयपुर की ओर महंगे टोल टैक्स, ज्यादा समय, कम दूरी और जल्दी भुगतान के कारणों से गुजरात किसानों और व्यापारियों को ज्यादा मुफीद लग रहा है।
उदयपुर मंडी में सभी अनाजों की नियमित खरीदी नहीं
उदयपुर मंडी में सभी अनाजों की नियमित खरीदी नहीं होती है। गेहूं के अलावा अन्य फसलों के लिए सुविधाएं सीमित हैं। नियमों की सख्ती और कटौती ने व्यापार को हतोत्साहित किया है। इस स्थिति से राजस्थान को मंडी टैक्स का नुकसान हो रहा है।