उदयपुर सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने लोकसभा में 720 जनजातियों से जुड़ा डीलिस्टिंग मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, जो लोग धर्मांतरण कर चुके हैं, उन्हें एसटी श्रेणी से बाहर किया जाए, ताकि मूल जनजातीय समाज को हक और आरक्षण से वंचित न होना पड़े।
नई दिल्ली/उदयपुर: उदयपुर के भाजपा सांसद डॉ. मन्नालाल रावत ने 60 साल से चल रहे डीलिस्टिंग के मामले को संसद में उठाया। सांसद रावत ने साल 1950 से संवैधानिक हक से वंचित मूल संस्कृति वाली अनुसूचित जनजातियों को उनका हक देने की मांग की।
बता दें कि सांसद रावत ने लोकसभा में मानसून सत्र के पहले दिन नियम-377 के तहत 720 जनजातियों से जुड़ा मुद्दा उठाते हुए कहा कि डिलिस्टिंग अनुसूचित जनजातियों की परिभाषा से संबंधित एक अत्यंत संवेदनशील विषय है। संविधान के अनुच्छेद-342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों की पहचान और अधिसूचना का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है।
इसी के अंतर्गत साल 1950 में एक अधिसूचना जारी कर अनुसूचित जनजातियों की सूची तैयार की गई थी। किंतु इस अधिसूचना में अनुसूचित जातियों की परिभाषा एवं प्रावधानों की भांति मूल संस्कृति छोड़ धर्मान्तरण करने वाले माइनोरिटी व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति में अपात्र करने का प्रावधान नहीं है। इससे मूल जनजातीय समाज को मिलने वाले संवैधानिक लाभ, छात्रवृतियां, नौकरियों में आरक्षण एवं विकास की राशि के हक छीने जा रहे हैं।
सांसद रावत ने कहा कि अनुसूचित जातियों की भांति ही यह सुनिश्चित किया जाए कि जो धर्मान्तरित हो गए हैं, उन्हें अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी से बाहर किया जाए। यह विधान संविधान की भावना, सामाजिक न्याय, विकास एवं जनजातीय अधिकारों की रक्षा के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।