महिलाओं के Òउन दिनोंÓ को लेकर युवाओं में ऐसी तमाम धारणाएं आज भी कायम है।
माहवारी के दौरान आचार छूने से खराब हो जाता है, इस दौरान खट्टी चीजें नहीं खानी चाहिए या नीम्बू का सेवन करने से कम उम्र में पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। महिलाओं के Òउन दिनोंÓ को लेकर युवाओं में ऐसी तमाम धारणाएं आज भी कायम है। कारण कि इस बारे में उन्हें किसी से तथ्यात्मक ज्ञान नहीं मिला है। वे सिर्फ वही जानते हैं, जो अपने परिवार, समाज और दोस्तों से जान और समझ पाए हैं।
उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मानव विकास एवं परिवार अध्ययन विभाग की ओर से माहवारी (पीरियड्स) संबंधी समझ को जानने के लिए 174 युवाओं पर यह अध्ययन किया गया है। जिसमें 145 युवतियां एवं 29 युवा शामिल थे। विभाग की ओर से 21 अलग-अलग प्रकार के सवालों के जरिए इस बारे में युवाओं की समझ को परखा गया। करीब दो माह में पूरे हुए इस सर्वे में सामने आया कि ऐसे युवा, जो आने वाले समय में विवाह बंधन में बंधकर कर अपने अपने परिवार प्रारंभ करेंगे, उन्हें Òउन दिनोंÓ के बारे में कितनी समझ है। क्या वे इस बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हैं या कही सुनी बातों पर विश्वास करते आ रहे हैं। सर्वे के निष्कर्ष में यह माना गया कि युवाओं की इस बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।
सर्वे में पाया गया कि पीरियड्स को लेकर लड़के ही नहीं, लड़कियां भी उन्हें परिवार या समाज से मिले ज्ञान पर ही विश्वास करती हैं। क्या माहवारी के दौरान छूने से आचार खराब हो जाता है ? इस सवाल का जवाब 23 लड़कों और 103 लड़कियों ने हां में दिया। यानि 72.42 फीसदी युवा वैज्ञानिक तथ्यों के विपरीत इसे सच मानते हैं। इसी तरह पीरियड्स के दौरान शरीर कमजोर हो जाता है कि इस सवाल का जवाब में 18 लड़कों व 127 लड़कियों ने हां में दिया। पीरियड्स में टेम्पान्स या मेंस्ट्रुअल कप्स के इस्तेमाल से कौमार्य भंग हो जाता है ? इस सवाल का जवाब 11 लड़कों और 109 लड़कियों ने हां में दिया है। क्या नीम्बू के सेवन से माहवारी छोटी आयु में ही शुरू हो जाती है ? इस सवाल का जवाब भी 26 लड़कों व 137 लड़कियों ने हां में दिया है।
माहवारी महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का खास हिस्सा है। विडंबना है कि समाज में इसे लेकर आज भी अज्ञानता व भ्रम व्याप्त है। जिनका सच्चाई से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं। लोग इस बारे में खुलकर घरों में बात करने से झिझकते हैं। ऐसा नहीं कि महामारी को लेकर यह नजरिया सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में या कम शिक्षित लोगों में देखने में मिलता है। अधिकांश पढे़-लिखे तबके में भी कई मिथक और मान्यताओं का पालन किया जाता है। आम धारणा के अनुसार माहवारी की अवधि के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है। उन्हें इस दौरान क्या करना है, क्या नहीं, इसकी पूरी सूची रहती है। जबकि प्रजनन स्वास्थ्य पर हुए कई अनुसंधानों से महसूस हुआ कि सही समय पर शिक्षा के प्रचार -प्रसार से माहवारी से सम्बंधित भ्रमों को दूर किया जाए। लोगों की सोच को भी सही दिशा दी जाए, ताकि ना केवल महिलाएं अपितु परिवार और समाज के लिए गुणवत्तापूर्ण जीवन को सुनिश्चित हो सके।
- डॉ. गायत्री तिवारी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, पारिवारिक अध्ययन विभाग, एमपीयूएटी, उदयपुर