MP News: उज्जैन के ज्योतिषाचार्य मानवसेवी कृष्णा गुरुजी ने समाज को दी नई सोच, दिखाई नई दिशा, बोले शास्त्रों में कहीं नहीं लिखा कुंडली मिलाना अनिवार्य, आधुनिक जमाने में विवाह के अंजाम, तलाक के बढ़ते मामलों पर की बात...
MP News: क्या विवाह के लिए कुंडली मिलाना ज़रूरी है? क्या सिर्फ जन्म पत्रिका के आधार पर किसी लड़की या लड़के को ठुकरा देना उचित है? इन ज्वलंत सवालों पर अपने प्रखर विचार रखते हुए ज्योतिषाचार्य मानवसेवी कृष्णा गुरुजी ने समाज को एक नई सोच और दिशा दी है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कहीं किसी भी बड़े शास्त्र में यह नहीं लिखा है कि विवाह से पहले कुंडली मिलाना अनिवार्य है। यह केवल ज्योतिष का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वर्तमान में कुंडली मिलाकर शादी करना बच्चों को पसंद नहीं आ रहा, क्योंकि जमाने के साथ काफी कुछ बदल गया है। पहले के जमाने में लोग शादी के बाद ही एक-दूसरे का चेहरा देखते थे, लेकिन अब चेहरा पहले, परिवार और बाकी बातें बाद में होती हैं, तो फिर कुंडली मिलाओ या न मिलाओ... कोई फर्क नहीं पड़ता।
ष्णा गुरुजी बताते हैं कि प्राचीन समय में जब संचार और संपर्क के साधन सीमित थे, तब रिश्ते तय करने में जन्म पत्रिका एकमात्र माध्यम होती थी। गांवों से दूर दूसरे गांव में रिश्ता तय करना हो, तो परिवार एक-दूसरे को देख नहीं पाते थे, ऐसे में पत्रिका ही प्रमाण बनती थी, लेकिन आज के कलयुगी और आधुनिक समाज में यह परंपरा अंधविश्वास का रूप ले चुकी है। लोग इसे आउट ऑफ फैशन समझने लगे हैं।
1. वर्तमान दौर में लड़कियां विवाह के बाद उपनाम (सरनेम) बदलने को तैयार नहीं होतीं।
2. समर्पण की बजाय प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
3. लड़कियों की माताएं विवाह के बाद भी उनकी शादीशुदा जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगती हैं।
4. लड़की के माता-पिता का बेटी के ससुराल में रहना, उसे पूरी तरह बहू बनने नहीं देता।
5. पति-पत्नी साथ रहते हुए भी, ऐसे रहते हैं जैसे रेल की पटरियां, शरीर साथ हैं पर मन और समझदारी में बहुत दूरी है।
कृष्णा गुरुजी की अनूठी पहल है कि वे हर साल वेलेंटाइन डे को दंपती दिवस के रूप में मनाते हैं। जो वेलेंटाइन डे पर देश विदेश में भी मनाई जाती है। वो इस दिन ऐसे दंपतियों का सम्मान करते हैं, जो सालों से एक साथ रह रहे हैं, ताकि आज के युवाओं को ये संदेश दे सकें। जो युवा आज गुलाब देकर प्रेम जताते हैं, वे जब पति-पत्नी बनें, तो इन दंपतियों से प्रेरणा लें।
ऐसा नहीं कि इन दंपतियों के जीवन में सुख-दुख नहीं आए, पर इन्होंने अपने रिश्ते और दाम्पत्य जीवन को हमेशा प्राथमिकता दी। कृष्णा गुरुजी का कहना है कि दंपति दिवस, कलयुग में बढ़ते तलाक को रोकने में एक प्रकार से बहुत कारगर साबित हुआ है। मेरे द्वारा बढ़ते तलाक के जोड़ो का आकलन किया गया 90% विवाह पत्रिका मिलान के बाद ही होते है पर फिर भी दाम्पत्य जीवन में अलगाव क्यों? दक्षिण में आपसी रिश्तों में विवाह हो जाता है कहा जाती है नाड़ी गोत्र।
लड़का क्या करता है? आमदनी कितनी है?
परिवार कितना बड़ा है? अकेले रहता है या संयुक्त परिवार में?
95% लोग पहले इन्हीं आधारों पर मिलान कर लेते हैं। उसके बाद ही कुंडली लेकर ज्योतिष के पास जाते हैं। पुराने समय में कहा जाता था: 'डोली तेरी मायके से उठेगी, अर्थी तेरी ससुराल से।’ जिस घर में बेटी ब्याही जाती, उस घर का पानी तक लड़की के माता-पिता नहीं पीते थे। अब उस दौर के नियम कहां कोई पालन करता है। अब परिवारों में बच्चे अपने माता-पिता से यह पूछते हैं कि आप हमें अपने पांच ऐसे रिश्तेदारों के नाम बता दीजिए, जिन्होंने कुंडली मिलाकर शादियां की हों और आज उनकी लाइफ में किसी प्रकार का टेंशन न हो, या उनके रिश्ते बिना किसी कड़वाहट के चल रहे हों।
1. पति या पत्नी की गलती अलग-अलग मत गिनिए।
2. विवाह के बाद पति-पत्नी दो शरीर एक मन हो जाते हैं, जिसे दोस्त या सच्चा हमसफर कहा जाता है।
3. तेरी गलती या मेरी गलती.... जैसा कुछ भी मत सोचिए।
4. दाम्पत्य जीवन में कभी प्रतिस्पर्धा का भाव मत लाइए।
5. दोनों परिवारों को बराबर सम्मान दीजिए।
6. यदि लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद करते हैं, उनके विचार मिलते हैं, तो सिर्फ पत्रिका न मिलने के कारण विवाह मत रोकिए।
7. एक-दूसरे के स्वभाव, गुण-दोष और अभावों को स्वीकार कर चलना ही दाम्पत्य जीवन है।