उज्जैन

दुनिया के एकमात्र दक्षिणमुखी ‘शिव’, जहां सिर झुकाने से मरने के बाद नहीं मिलती सजा, सीधे स्वर्ग भेजते हैं यमराज

हर धर्म कहता है कि जो जीवन में जो गलत किया मरने का बाद यमराज उसकी सजा देते हैं, लेकिन शिव के इस रूप के दर्शन करने से यमराज खुश होते हैं...

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May 06, 2024

हर धर्म में मृत्यु के बाद जीवन में की गई गलतियों, गुनाहों की सजा का कहर झेलने की बात की जाती है। इसी तरह सनातन धर्म में भी माना गया है कि मौत के बाद यमराज आपके हर गलत काम-काज का हिसाब-किताब करते हैं और हर गुनाह की यातना भी।

हर कोई चाहता है कि उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हो। यमराज हर गलती को माफ करें। यहां हम आपको बता रहे हैं दुनिया के ऐसे मंदिर के बारे में जहां सिर झुकाने से न केवल मरने के बाद व्यक्ति यमराज की यातनाओं से बच सकता है, बल्कि मरने के बाद उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

ये है दुनिया का एकमात्र दक्षिणमुखी शिवमंदिर

हम बात कर रहे हैं एमपी की ऐतिहासिक नगरी उज्जैन स्थित महाकालेश्वर (Mahakaleshwar) या महाकाल (Mahakal) मंदिर की। जी हां महाकालेश्वर शिव मंदिर (Mahakaleshwar Temple) दुनिया का इकलौता ऐसा शिव मंदिर है, जहां शिवलिंग दक्षिणमुखी हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से दर्शन करने से यमराज आपसे खुश हो जाते हैं और मरने के बाद आपको यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती।

दरअसल धर्म शास्त्र में दक्षिण दिशा का स्वामी स्वयं यमराज को माना जाता है। इसीलिए इस मान्यता को बल मिलता है। वहीं माना ये भी जाता है कि यहां सिर झुकाने वालों को मरने के बाद सीधा स्वर्ग की प्राप्ति होती है। बता दें कि महाकाल मंदिर को देश के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है, जहां दुनिया भर से श्रद्धालु सिर झुकाने पहुंचते हैं।

यहां पढ़ें महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Temple)के बारे में रोचक फैक्ट्स

  • माना जाता है कि ये स्वयंभू शिवलिंग है, इसलिए ये स्वयं ही शक्ति प्राप्त करता है।
  • इसे अन्य शिवलिंगों और मूर्तियों की तरह शक्ति प्राप्त करने के लिए मंत्र शक्ति की आवश्यकता नहीं है।
  • ये एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जिसका मुख दक्षिण की ओर है। जबकि अन्य शिवलिंग का मुख पूर्व दिशा में है।
  • ऐसा इसलिए क्योंकि मृत्यु की दिशा दक्षिण मानी जाती है। वहीं शिवलिंग का मुख दक्षिण की ओर होना ये प्रतीक माना गया है कि यमराज की मानी जाने वाली ये दिशा भले ही यमराज की हो, लेकिन शिव मृत्यु के स्वामी हैं।
  • यही कारण है कि लोग अकाल मृत्यु को रोकने के लिए, लंबी उम्र का आनंद लेने के लिए महाकालेश्वर की पूजा करते हैं।
  • भस्म आरती (राख से अर्पण) यहां का एक प्रसिद्ध अनुष्ठान है। जैसे राख शुद्ध, अद्वैत, अविनाशी और अपरिवर्तनीय है, वैसे ही भगवान भी शुद्ध, अद्वैत, अविनाशी और अपरिवर्तनीय हैं।
  • महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण मराठा, भूमिजा और चालुक्य स्थापत्य शैली में किया गया है।
  • इसके पांच स्तर हैं, जिनमें से एक भूमिगत है।
  • यहां भगवान शिव की पत्नी, देवी पार्वती उत्तर में, उनके दोनों पुत्र गणेश पश्चिम में और कार्तिकेय पूर्व में और उनकी सवारी, नंदी दक्षिण में विराजी हैं।
  • महाकालेश्वर लिंग के ऊपर दूसरी मंजिल पर ओंकारेश्वर लिंग है।
  • मंदिर की तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की एक छवि स्थापित है
  • इसमें भगवान शिव और पार्वती दस फन वाले सांप पर बैठे हैं और अन्य मूर्तियों से घिरे हुए हैं।
  • इसमें जटिल और सुंदर नक्काशी वाला एक लंबा शिखर है।
Updated on:
06 May 2024 01:03 pm
Published on:
06 May 2024 12:58 pm
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