Mahakal Controversy: ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि, कुछ लोग कह रहे हैं, शाही शब्द ठीक नहीं है। मेरा मानना है, मंदिर में उर्दू या फारसी कैसे प्रवेश कर गई.....
Mahakal Controversy: उज्जैन महाकाल की भादौ की दूसरी सवारी के शाही नाम पर संतों में शास्त्रार्थ शुरू हो गया। सीएम डॉ. मोहन यादव के नाम राजसी सवारी करने के आग्रह पर अखाड़ा परिषद ने संकेत दिए कि प्रयाग कुंभ में शाही शब्द से दूरी रखेंगे। राजसिक स्नान नाम देंगे।
अखाड़ा परिषद और महंतों के विचारों से अलग शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- यह शाही सवारी नहीं, साहि सवारि है जिसका अर्थ नाग और गंगा समेत निकलने वाली महाकाल की यात्रा है।
ज्योतिर्मठ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि, कुछ लोग कह रहे हैं, शाही शब्द ठीक नहीं है। मेरा मानना है, मंदिर में उर्दू या फारसी कैसे प्रवेश कर गई। जिस भाषा का शाही शब्द है, उसी का सवारी। शाही सवारी दोनों शब्द हटाकर नया नामकरण हो। पर अध्ययन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह किसी मुस्लिम का दिया नाम नहीं है।
शाही सवारी का सही शब्द व उच्चारण साहि सवारि है, जिससे आशय स अहि = साहि, यहां स का अर्थ सहित या समेत से है, जबकि अहि नाग या सर्प को कहा जाता है यानी ऐसी यात्रा जिसमें बाबा महाकाल नाग या सर्प के समेत निकलते हैं।
इसी प्रकार स वारि = सवारि यानी स से सहित और वारि यानी गंगा, बाबा महाकाल प्रियतमा गंगा के साथ निकलते हैं। यानी ऐसी यात्रा, जिसमें महाकाल नाग व सिर से बहने वाली गंगा के साथ निकलते हैं, जिसे साहि सवारि कहते हैं। शब्द बदलने की जरूरत नहीं है, सही उच्चारण की जरूरत है।
पं. आनंदशंकर व्यास ने कहा, भादौ की दूसरी सवारी को आमजन अंतिम सवारी कहते। अगले साल फिर सवारी निकलती, इसलिए अंतिम को शाही सवारी नाम दिया। शाही यवन शब्द है, इसे बदलने में कोई हर्ज नहीं। राजसी ठाठ-बाट से महाकाल की सवारी का वर्णन हो तो ज्यादा अच्छा है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा, शाही सवारी को राजसी वैभव और ठाठ-बाट से ही लिया है। शाही मुगलों की भाषा का है, जिसे हटाना ही श्रेयस्कर होगा। शंकराचार्य की व्याख्या गलत है। 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर राजसी या दूसरे नाम पर विचार करेंगे।