भव्य राम मंदिर बनने के बाद देश में धार्मिक पर्यटन का मुख्य केंद्र बने अयोध्या की फिजां बदल चुकी है। साधन, सुविधाएं, रोजगार, समृद्धि, विकास से अयोध्या त्रेताकालीन वैभव की ओर जाती दिख रही है। लेकिन लोगों के मन टटोलने पर लगता है कि उन्हें शहर की आत्मा की चिंता है।
अयोध्या। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दो साल पूरे होने पर प्रतिष्ठा द्वादशी और अंग्रेजी नववर्ष पर रामनगरी राम भक्तों से खचाखच भरी है। हर तरफ भगवा झंडे लहराते और जय श्रीराम के घोष लगाते भक्तों के रेले नजर आते हैं तो मुख्य मंदिर व हनुमान गढ़ी में दर्शन के लिए लंबी कतारें लगी हैं। पूरा माहौल राममय है। प्रतिष्ठा द्वादशी पर बुधवार को होने वाले मुख्य आयोजन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल होंगे। रक्षा मंत्री राम मंदिर परिसर के अन्नपूर्णा मंदिर में ध्वजारोहण करेंगे।
स्थापना दिवस के कार्यक्रम दो जनवरी तक चलेंगे। भव्य राम मंदिर बनने के बाद देश में धार्मिक पर्यटन का मुख्य केंद्र बने अयोध्या की फिजां बदल चुकी है। साधन, सुविधाएं, रोजगार, समृद्धि, विकास से अयोध्या त्रेताकालीन वैभव की ओर जाती दिख रही है। पूरे शहर का दौरा करने पर वैभवशाली अयोध्या से अयोध्यावासी प्रफुल्लित नजर आते हैं, बातचीत करने पर यह खुशी झलकती है लेकिन लोगों के मन टटोलने पर लगता है कि उन्हें शहर की आत्मा की चिंता है। यहां के साधू-संत और आम अयोध्यावासी यह पीड़ा जरूर जाहिर करते हैं कि शहर की सांस्कृतिक आत्मा बनी रहे। बातचीत में अयोध्या के ग्लोबल सिटी बनने के साथ सोल सिटी (आत्मिक शहर) की चुनौती सामने आती है।
आचार्य मिथलेशनंदिनी शरण का कहना है कि अयोध्या का आर्थिक कायाकल्प हुआ है, रोजगार बढ़ने से पलायन रुका है। लोगों का जीवन स्तर सुधरा है। आचार्य ने शास्त्रों और वास्तु का हवाला देते हुए कहा कि राहु और चंद्रमा का फर्क है। वास्तु और ज्यामिति में थोड़ा सा भी बदलाव 'चंद्रमा' (शांति/शीतलता) को 'राहु' (भ्रम/अशांति) बना देता है। अयोध्या के साथ यही हो रहा है। इसे शांत, आध्यात्मिक केंद्र बनाने के बजाय एक भीड़भाड़ वाला कमर्शियल हब बनाया जा रहा है। मुख्य अयोध्या को केवल पैदल चलने योग्य और ध्यान-साधना का केंद्र रखा जाना चाहिए।
शहर की चमचमाती सड़कों के पीछे स्थानीय लोगों के मन में स्थानीयता की चिंता है। राजू कहते हैं कि अयोध्या के बड़े प्रोजेक्ट्स में 'लोकल' गायब है। बाहरी निवेशक और बड़ी कंपनियां हावी हैं, जबकि स्थानीय व्यक्ति खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है।
अयोध्या में रामपथ के नजदीक दुकान पर जलेबी बना रहे पप्पू शुक्ला शहर के विकास और बढ़ते रोजगार से खुश हैं। वह कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि वह इंफ्रास्ट्रक्चर के हार्डवेयर के साथ-साथ अयोध्या के 'सॉफ्टवेयर' यानी उसकी संस्कृति, सेवा परंपरा और स्थानीय भागीदारी पर भी ध्यान दे, तभी रामराज्य की असली परिकल्पना साकार होगी।