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शरणार्थी से अफगानिस्तान के विदेश मंत्री कैसे बन गए आमिर खान मुत्ताकी? जानें तालिबान से जुड़ने की कहानी

आमिर खान मुत्ताकी का जन्म 1970 में अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में हुआ। सोवियत आक्रमण के दौरान उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, जहां उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। 1994 में वे तालिबान से जुड़े। 2021 में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद उन्हें विदेश मंत्री नियुक्त किया गया। पढ़िए वैभव तिवारी की रिपोर्ट 

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Oct 12, 2025
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी (फोटो- IANS)

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी इन दिनों काफी चर्चा में हैं। भारत की यात्रा के दौरान उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी हैं। उनकी यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने और व्यापारिक कड़ी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हो रही है।

आमिर खान मुत्ताकी ने अपने भारत दौरे के दौरान दारुल उलूम देवबंद मदरसा और ताजमहल की यात्रा की। देवबंद में उन्होंने हदीस का सबक पढ़ा और कहा कि भारत आने का उद्देश्य दोनों देशों के बीच राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना है।

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कौन हैं आमिर खान मुत्ताकी?

मुत्ताकी का जन्म 1970 में अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में हुआ। सोवियत आक्रमण के दौरान उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, जहां उन्होंने शरणार्थी के रूप में धार्मिक और पारंपरिक शिक्षा प्राप्त की। 1994 में जब तालिबान आंदोलन उभरा तो मुत्ताकी उससे जुड़ गए। अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया।

मुत्ताकी का राजनीतिक सफर

मुत्ताकी का राजनीतिक सफर सैन्य कमांडर, प्रशासनिक और कूटनीतिक रोल का एक मिश्रण रहा है । 1990 के दशक में, वह कंधार रेडियो स्टेशन के निदेशक बने और बाद में तालिबान की उच्च परिषद में शामिल हुए।

(1996-2001) इस दौरान उन्होंने शिक्षा मंत्री और सांस्कृतिक और सूचना मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने अफगानिस्तान के स्कूलों को कट्टरपंथी मदरसों में बदलने में भूमिका निभाई।

कठोर प्रतिबंधों और विवादों के कारण चर्चा में

तालिबान 2.0 शासन के तहत, मुत्ताकी परोक्ष रूप से अफगानिस्तानी महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर लगाए गए कठोर प्रतिबंधों से जुड़े रहे हैं।

मुत्ताकी उन तालिबान नेताओं में शामिल हैं जिन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंध समिति द्वारा यात्रा प्रतिबंध लगाए गए हैं। उनकी भारत यात्रा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अस्थायी छूट हासिल करने के बाद संभव हुई।

अमरीका की नीतियों के मुखर विरोधी

मुत्ताकी लगातार अफगानिस्तान की संप्रभुता के विरुद्ध किसी भी विदेशी सैन्य उपस्थिति का विरोध करते रहे हैं, जिसने अमेरिका को बड़ा झटका दिया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अफगानिस्तान के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण बगराम एयरबेस को वापस लेने की मांग पर, मुत्ताकी ने कड़ा रुख अपनाया।

रूस, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का समर्थन

बगराम एयरबेस पर अमरीकी नियंत्रण की मांग का उन्होंने सार्वजनिक रूप से विरोध किया, और इस मुद्दे पर रूस, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का समर्थन प्राप्त किया।

भारत ने भी इस विरोध का समर्थन करते हुए संकेत दिया कि वह इस क्षेत्र में किसी भी सैन्य ढांचे की तैनाती को अस्वीकार्य मानता है।

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