
भारत के विदेश मंत्री जयशंकर अफगान विदेश मंत्री मुत्तकी के साथ। (फोटो: एएनआई)
India Afghanistan Relations: भारत व अफगानिस्तान के बीच पुराने दोस्ती (India Afghanistan Relations) का रंग फिर से चढ़ रहा है, लेकिन सवाल वही पुराना है – क्या यह 'प्यार' तालिबान को औपचारिक मान्यता का रास्ता साफ कर रहा है ? शुक्रवार को नई दिल्ली में एक ऐतिहासिक मुलाकात हुई, जहां विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S. Jaishankar) ने अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी (Jaishankar Muttaqi Diplomacy) को न सिर्फ गर्मजोशी से गले लगाया, बल्कि काबुल में भारत के 'तकनीकी मिशन' को पूर्ण दूतावास का दर्जा देने की घोषणा भी कर दी। भारत ने उसे सद्भावना के नाम पर पांच एम्बुलेंस सौंप दीं – जो कुल 20 एम्बुलेंसों का हिस्सा हैं।
जयशंकर ने कहा, "यह कदम अफगान लोगों के भविष्य के लिए हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।" लेकिन क्या यह सिर्फ मानवीय मदद है, या तालिबान की वैश्विक वैधता की दिशा में भारत का सॉफ्ट कदम? अगर आप साउथ एशिया की जियोपॉलिटिक्स में रुचि रखते हैं, तो यह खबर भारत की 'स्मार्ट डिप्लोमेसी' का नया चैप्टर खोलती है।यह मुलाकात हैदराबाद हाउस में हुई, जहां जयशंकर ने मुत्ताकी का स्वागत करते हुए अफगानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन दोहराया।
उन्होंने छह नई विकास परियोजनाओं का ऐलान किया – अस्पतालों के लिए एमआरआई-सीटी स्कैन मशीनें, टीकाकरण, कैंसर दवाएं और नशा मुक्ति सामग्री। जयशंकर ने X पर पोस्ट किया, "20 एम्बुलेंस और चिकित्सा उपकरण अफगान भाइयों के लिए हमारा दीर्घकालिक प्यार दिखाते हैं।" मुत्ताकी ने जवाब में कहा, "भारत हमारा करीबी दोस्त है, और हम कभी किसी की जमीन को दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे।"
यह यात्रा 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद काबुल से भारत का पहला हाई-लेवल दौरा है। मुत्तकी को यूएन सैंक्शंस के बावजूद स्पेशल वेवर मिला, जो दिखाता है कि दरवाजे धीरे-धीरे खुल रहे हैं। लेकिन तालिबान के एक सीनियर लीडर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "अब समय आ गया है कि भारत इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान को मान्यता दे।" क्या भारत सुन रहा है?
भारत का अफगानिस्तान के प्रति 'प्यार' नया नहीं है। दशकों से हमने स्वास्थ्य, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर में करोड़ों रुपये झोंके हैं – कोविड वैक्सीन से लेकर गेहूं तक। 2021 के बाद दूतावास बंद होने के बावजूद, भारत ने कंसलेट्स के जरिए मदद जारी रखी। अब काबुल में एम्बेसी का अपग्रेड – क्या यह मान्यता का संकेत है? नहीं, ऐसा लगता नहीं। भारत की स्टैंड क्लियर है: बिना इनक्लूसिव गवर्नमेंट, महिलाओं-बच्चों के अधिकारों और माइनॉरिटी प्रोटेक्शन के कोई रिकग्निशन नहीं।
रूस ही एकमात्र देश है जिसने तालिबान को मान्यता दी है। भारत का यह कदम प्रैगमैटिक लगता है – क्षेत्रीय स्टेबिलिटी, काउंटर-टेररिज्म और पाक-चीन की बढ़ती पकड़ को चेक करने के लिए। जयशंकर ने कहा, "हम आतंकवाद से लड़ने के लिए साथ हैं।" लेकिन तालिबान की ओर से मान्यता की मांग तेज हो रही है। क्या यह 'प्यार' रिश्ते को अगले लेवल पर ले जाएगा, या सिर्फ ह्यूमैनिटेरियन ब्रिज बनेगा?
इस 'प्यार' के पीछे स्ट्रैटेजिक एंगल भी छिपा है।अफगानिस्तान में चीन की बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट्स और पाक की आईएसआई की छाया भारत के लिए खतरा है। दूतावास अपग्रेड से भारत की ऑन-ग्राउंड मौजूदगी मजबूत होगी, बिना पॉलिटिकल एंडोर्समेंट के। मुत्तकी की यात्रा मॉस्को मीटिंग के बाद हुई, जहां भारत, पाक, चीन और ईरान ने अमेरिका के बग्राम एयरबेस प्लान का विरोध किया। यह दिखाता है कि अफगानिस्तान अब रीजनल पावर गेम का सेंटर है।
इधर भारत ने अप्रैल 2025 में अफगानियों के लिए नया वीजा मॉड्यूल शुरू किया, जिससे मेडिकल, बिजनेस और स्टूडेंट वीजा बढ़े। लेकिन मान्यता? अभी सपना ही लगता है। विशेषज्ञ कहते हैं, "भारत स्मार्ट तरीके से एंगेज कर रहा है – मदद दो, लेकिन शर्तें न छोड़ो।"
कुल मिलाकर, भारत का यह 'ढेर सारा प्यार' अफगान लोगों तक पहुंच रहा है, लेकिन तालिबान को वैधता का तोहफा नहीं। दूतावास और एम्बुलेंस जैसे कदम रिश्ते को रिवाइव कर रहे हैं, पर इनक्लूसिव अफगानिस्तान की मांग कायम है। क्या आने वाले महीनों में और 'गिफ्ट्स' आएंगे? या मान्यता का फैसला यूएन और रीजनल प्रेशर पर निर्भर? यह देखना रोमांचक होगा। भारत की डिप्लोमेसी फिर साबित कर रही है – प्यार बांटो, लेकिन स्मार्ट रहो! (इनपुट:एएनआई)
Updated on:
10 Oct 2025 05:10 pm
Published on:
10 Oct 2025 05:08 pm
बड़ी खबरें
View Allविदेश
ट्रेंडिंग
