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बांग्लादेश: तीन महीने में 342 बलात्कार,87% पीड़ित लड़कियाँ,अल्पसंख्यकों को क्यों बनाया जा रहा निशाना

Sexual violence minority Bangladesh: बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों—विशेषकर लड़कियों और महिलाओं—के विरुद्ध यौन हिंसा अपनी भयावहता महामारी जैसा रूप ले चुकी है।

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Aug 22, 2025
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक महिलाओं से बलात्कार की घटनाएं बढ़ गई हैं।( फोटो: IANS.)

Sexual violence minority Bangladesh: बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार (Bangladesh interim government) बनने के बाद अल्पसंख्यक समुदायों जैसे हिंदू, ईसाई और बौद्ध आदि की बेटियों और महिलाओं पर यौन हिंसा (Sexual violence minority Bangladesh) बहुत अधिक बढ़ गई है कि HRCBM ने इसे ‘महामारी’ से कम नहीं बताया है। ढाका स्थित मानवाधिकार संस्था Ain O Salish Kendra (AsK) के अनुसार, 2025 की पहली तिमाही में महज़ तीन महीनों के दौरान दर्ज 342 बलात्कार मामलों में 87% पीड़ित किशोरियाँ(minority women) थीं। उनमें से 40 शिशु यानि नवजात से 6 वर्ष तक (child rape cases) की थीं। इससे यह जाहिर होता है कि स्थिति कितनी भयावह है। HRCBM के अनुसार, वास्तविक संख्या उन मामलों से कहीं अधिक है, जो दर्ज किए जाते हैं-क्योंकि सामाजिक शर्म, बदले का डर और कानून व्यवस्था में विश्वास की कमी के चलते, अधिकतर मामले दब जाते हैं। अल्पसंख्यकों की स्थिति (sexual violence) और भी जटिल है, क्योंकि उन्हें न्याय तंत्र में धार्मिक पूर्वाग्रह और निष्पक्ष व्यवहार की कमी का सामना भी करना पड़ता है।

भयानक घटनाएँ और संदेहास्पद आरोप

कई मामलों में महिलाओं और लड़कियों के सिर काट कर शव ज़मीन पर छोड़े गए,जिससे अपराधियों की बेरहमी और अपराध का स्तर उजागर होता है। HRCBM ने आरोप लगाया कि “अपराधियों का जुल्म हालात की भयावहता दर्शाता है।”

एक नेता का संघर्ष

Bangladesh Sammilito Sanatani Jagaran Jot के प्रवक्ता हिन्दू नेता चिन्मय कृष्ण दास को नवंबर से जेल में बंद रखा गया है। उन पर संगीन हत्या जैसे झूठे आरोप लगाए गए हैं। उनके जमानत याचिका की उच्च न्यायालय (अपील डिवीजन) में महीनों से सुनवाई नहीं हुई। HRCBM का कहना है कि “क्या उनका एकमात्र अपराध अल्पसंख्यकों के हक़ में बोलना था?”

सार्वजनिक हित याचिका – PIL

HRCBM ने उच्च न्यायालय में PIL दायर की है, जो मांग करती है कि एक उच्च स्तरीय न्यायिक जांच तुरंत शुरू की जाए, ताकि अल्पसंख्यकों—विशेषकर लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की संरचनात्मक और लक्षित प्रकृति का पता लगाया जा सके। यह याचिका दोषियों को दंडित करने और अल्पसंख्यकों को सुरक्षित करने के लिए कानून व्यवस्था में सुधार की भी ज़िद करती है।

रिएक्शन और सामाजिक साइड एंगल

यह रिपोर्ट हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि सुरक्षा और न्याय के नाम पर अल्पसंख्यकों की क्या दशा हो रही है। पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग इस ज़ुल्म के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन और लेखन कर रहे हैं, लेकिन अभी तक संवैधानिक और प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस बदलाव नहीं हुआ है।

निहित अधिकारों की माँग

HRCBM ने विशेष संरक्षा व्यवस्था, पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया और अल्पसंख्यक बेटियों के लिए शिक्षा, सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की माँग भी की है। यह सिर्फ डेटा नहीं, बल्कि सैकड़ों—या हज़ारों—लड़कियों की अनकही पीड़ा की कहानी है, जिन्हें राज्य की बेरुखी और सामाजिक भय ने बेआवाज़ बना दिया है।

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