Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन से पहले श्रवण कुमार की पूजा करने की परंपरा का गहरा पौराणिक महत्व है। यह पूजा सेवा, त्याग और कर्तव्य भाव को दर्शाती है। तो आइए जानते हैं श्रवण पूजा की विधि, उसका इतिहास, महत्व और रक्षाबंधन से इसका संबंध।
Raksha Bandhan 2025: हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का त्योहार प्रेम, सुरक्षा और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र यानी राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। यह पर्व पूरे भारत में बहुत ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
इस वर्ष रक्षाबंधन 9 अगस्त को मनाया जाएगा, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि राखी बांधने से पहले श्रवण कुमार की पूजा क्यों की जाती है? दरअसल, इसके पीछे एक बेहद भावुक और प्रेरणादायक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता के परम भक्त थे। वह उन्हें कांवर में बैठाकर तीर्थ यात्रा करवा रहे थे। एक बार जब वह वन में रुके, तो उनके माता-पिता को प्यास लगी। श्रवण कुमार पानी लेने पास के जल स्रोत की ओर गए।
उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ शिकार पर निकले हुए थे। अंधेरे और जंगल की घनी चुप्पी के बीच दशरथ ने किसी के पानी भरने की आवाज सुनी और यह समझ कर कि कोई जंगली जानवर है, उन्होंने बिना देखे ही तीर चला दिया। दुर्भाग्यवश, वह तीर श्रवण कुमार को लग गया और उनकी वहीं मृत्यु हो गई।
जब दशरथ को अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने गहरे दुख के साथ श्रवण कुमार के माता-पिता को सारी बात बताई। यह सुनकर वे शोक में डूब गए और दशरथ को श्राप दिया कि जैसे उन्होंने अपने पुत्र को खोया है, वैसे ही एक दिन वह भी अपने पुत्र राम से बिछड़ने का दुख झेलेंगे।
इस घटना से व्यथित होकर राजा दशरथ ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन को श्रवण कुमार की श्रद्धांजलि के रूप में मनाने का संकल्प लिया। उन्होंने प्रचार किया कि इस दिन श्रवण कुमार की पूजा की जाए, ताकि हर कोई माता-पिता की सेवा और भक्ति को महत्व दे।यही कारण है कि रक्षाबंधन से पहले श्रवण कुमार की पूजा की परंपरा है। इससे जीवन में सेवा, समर्पण और परिवार के प्रति कर्तव्य का बोध होता है। साथ ही यह पूजा हमें यह भी सिखाती है कि अनजाने में हुई गलती के लिए प्रायश्चित कितना जरूरी होता है।