Vasant Panchami: यदि आप 2 फरवरी को वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा करने जा रहे हैं तो यहां जानें, सरस्वती मंत्र, सरस्वती स्तोत्र, शुभ मुहूर्त और सरल पूजा विधि (Saraswati mantra)
Vasant Panchami Puja Vidhi: वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा की तिथि और मुहूर्त को लेकर इस साल कंफ्यूजन की स्थिति बन गई है। कुछ लोग 2 फरवरी को सरस्वती पूजा कर रहे हैं तो प्रयागराज, वाराणसी, उज्जैन आदि में 3 फरवरी 2025 को सरस्वती पूजा होगी।
बहरहाल, अजमेर की ज्योतिषी नीतिका शर्मा से आइये जानते हैं 3 फरवरी को सरस्वती पूजा की विधि क्या हो, बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा क्यों करते हैं। साथ ही सरस्वती पूजा विधि क्या है, मंत्र, प्राकट्य कथा क्या है और स्तोत्र क्या हो ...
ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सरस्वती पूजा और विद्यारंभ आदि का कार्य होता है। जयपुर समेत राजस्थान के कई इलाकों में इस साल बसंत पंचमी 2 फरवरी को मनाई गई, जबकि प्रयागराज वाराणसी उज्जैन समेत कई क्षेत्रों में 3 फरवरी को वसंत पंचमी मनाई जा रही है । नीतिका के अनुसार इस दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है।
प्रकृति के इस उत्सव को महाकवि कालीदास ने ''सर्वप्रिये चारुतर वसंते'' कहकर अलंकृत किया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ''ऋतूनां कुसुमाकराः'' अर्थात मैं ऋतुओं में वसंत हूं कहकर वसंत को अपना स्वरूप बताया। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था।
इसके साथ ही इस दिन ही मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए यह दिन छात्रों, कला, संगीत आदि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए बेहद खास होता है। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का भी विशेष महत्व होता है। बसंत पंचमी का दिन विद्या आरंभ या किसी भी शुभ कार्य के लिए बेहद उत्तम माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार इस साल माघ शुक्ल पंचमी तिथि 2 फरवरी 2025 को सुबह 9:14 बजे से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 3 फरवरी को सुबह 6:52 बजे होगा। 3 फरवरी को कम समय के लिए ही वसंत पंचमी है, इसलिए 2 फरवरी को ही वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा करना ठीक है।
इस दिन सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7:09 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक है। इस बीच किसी भी समय देवी सरस्वती की पूजा की जा सकती है।
हालांकि प्रयागराज, वाराणसी आदि में 3 फरवरी को वसंत पंचमी मनाई जाएगी। प्रयागराज महाकुंभ में बसंत पंचमी का शाही स्नान भी 3 फरवरी को ही होना है। इस दिन भी कई शुभ योग बन रहे हैं.
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार 2 फरवरी को कई शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र उदित रहेगा, जिसके साथ शिव और सिद्ध योग का संयोग रहेगा। इस तिथि पर सूर्य मकर राशि में रहेंगे। इस दौरान अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:13 से 12:56 बजे तक रहेगा। अमृतकाल रात 20:24 से 21:53 बजे तक है।
पंडित कमलेश त्रिपाठी के अनुसार 3 फरवरी को जो लोग बसंत पंचमी मनाएंगे, उन्हें भी कई शुभ योग का लाभ होगा. इस दिन रात 11.04 बजे तक रेवती नक्षत्र का संयोग रहेगा, जबकि 4 फरवरी को सुबह 3.03 बजे तक साध्य योग बन रहा है.
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार वसंत पंचमी पर्व अबूझ मुहूर्त में गिना जाता है, यानी इस दिन शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती है। इस वसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त में विद्यारंभ, गृह प्रवेश, विवाह और नई वस्तु की खरीदारी के अच्छे फल मिलते हैं।
मान्यता है कि इस दिन आराधना करने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती हैं और ज्ञान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव-माता पार्वती के विवाह की लग्न लिखी गई थी। विद्यार्थी और कला साहित्य से जुड़े हर व्यक्ति को इस दिन मां सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा कभी विफल नहीं जाती। मां सरस्वती की पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा के लिए सामग्री में आपको मां शारदा की तस्वीर, गणेश जी की मूर्ति और चौकी और पीला वस्त्र पहले ही जुटा लेनी चाहिए। इसके अलावा पीले रंग की साड़ी, माला, पीले रंग का गुलाल, रोली, एक कलश, सुपारी, पान का पत्ता, अगरबत्ती, आम के पत्ते और धूप व गाय का घी भी शामिल करें। वहीं कपूर, दीपक, हल्दी, तुलसी पत्ता, रक्षा सूत्र, भोग के लिए मालपुआ, खीर, बेसन के लड्डू और चंदन, अक्षत, दूर्वा, गंगाजल रखना न भूलें।
ज्योतिषाचार्य नीतिका शर्मा के अनुसार वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा की यह विधि अपनाना चाहिए।
1.सबसे पहले शुभ मुहूर्त में स्नान ध्यान करें और पूजा स्थल को स्वच्छ बनाएं।
2. फिर मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
3. अब रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें।
4. अब पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को अर्पित करें।
5. मां सरस्वती की वंदना (नीचे लिखी) का पाठ करें।
6. विद्यार्थी चाहें तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
या कुंदेंदुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रांवृता।
या वीणा वर दण्डमण्डित करा, या श्वेत पद्मासना।
या ब्रहमाऽच्युत शंकर: प्रभृतिर्भि: देवै: सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती, नि:शेषजाड्यापहा।।
7. सरस्वती वंदना से मां का ध्यान करने के बाद ओम् ऐं सरस्वत्यै नम: मंत्र का जाप करें।
मान्यता के अनुसार सृष्टि अपनी प्रारंभिक अवस्था में मूक, शांत और नीरस थी। चारों तरफ मौन देखकर भगवान ब्रह्मा जी अपने सृष्टि सृजन से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का और इससे अद्भुत शक्ति के रूप में मां सरस्वती प्रकट हुईं। मां सरस्वती के एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था।
मां सरस्वती ने वीणा पर मधुर स्वर छेड़ा जिससे संसार को ध्वनि और वाणी मिली। इसलिए इस देवी का नाम सरस्वती पड़ा, साथ ही माघ शुक्ल पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा देव लोक और मृत्यु लोक में होने लगी।