
17 जून को कुंभ राशि में वक्री होंगे शनि, शुभ फल के लिए करने होंगे ये उपाय
140 दिन में शनि देव पूरे करेंगे सब काम
ग्रह नक्षत्रम् ज्योतिष शोध संस्थान प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार शनिदेव का अंक आठ है। अंक ज्योतिष के अनुसार 17 तारीख का मूलांक भी 8 है। इसके कारण शनि देव लोगों का भाग्य परिवर्तन करेंगे। शनि अपने वक्री होने के दिन से सभी लोगों के जीवन में परिवर्तन लेकर आएंगे। ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार शनि के वक्री होने के कारण इस समय जिन लोगों के काम रूके हुए हैं, उनके काम शनि की वक्री अवस्था में यानी आने वाले 140 दिन के भीतर पूरे हो जाएंगे। ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार शनि की वक्री अवस्था में शनि का उपाय करने से जीवन संघर्ष खत्म हो जाएगा। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति को सफलता भी प्राप्त होगी। वहीं जिन लोगों की कुंडली में शनि वक्री हैं, उन लोगों को शनि के वक्री काल में विशेष लाभ प्राप्त होने वाला है।
लग्न पर नजर रखना जरूरी
वहीं भोपाल के ज्योतिषाचार्य पं. अरविंद तिवारी के अनुसार शनि या अन्य ग्रह के प्रभाव को जातक की जन्म कुंडली से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। भिन्न-भिन्न लग्न के लिए वक्री शनि का अलग-अलग फल मिलता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी व्यक्तियों के लिए शनि वक्री होने पर अशुभ फल प्रदान करें। इसका फल अच्छा भी हो सकता है।
जातक के लिए वक्री शनि का फल तब ही खराब होता है जब दशा में शनि का प्रभाव खराब हो और व्यक्ति विशेष की कुण्डली में भी शनि बुरे भावों का स्वामी होकर स्थित हो, अन्यथा शनि के वक्री होने का कोई खास बुरा प्रभाव नहीं होता है। किसी भी फलित पर एकदम विश्वास करने की बजाय एक बार कुंडली को किसी योग्य जानकार को दिखाकर विचार-विमर्श कर लेना जरूरी है।
जानिए लग्न के अनुसार वक्री शनि का फल
1. प. तिवारी के अनुसार मेष लग्न से शनि दशम तथा एकादश भाव के स्वामी होते हैं। इसलिए शनि मेष राशि के जातकों के लिए कार्यक्षेत्र तथा लाभ भाव के स्वामी हो जाते हैं, शनि के वक्री होने से आपको अपने कार्य क्षेत्र में पहले से अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं। लाभ प्राप्ति के लिए एक से अधिक बार परिश्रम करना पड़ सकता है, लेकिन सफलता अवश्य मिलेगी।
2. वृष लग्न से शनि नवम तथा दशम भाव का स्वामी हो जाते हैं। नवम स्थान से पिता और गुरुजनों तथा दशम भाव से कार्यक्षेत्र का विचार किया जाता है। शनि के वक्री होने से शिक्षा और कार्यक्षेत्र में अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है। भाग्य साथ देने में थोड़ा अधिक समय लग सकता है, लेकिन सफलता मिल सकती है।
3. मिथुन लग्न से शनि अष्टम तथा नवम भाव का स्वामी होता है। शनि के वक्री होने से भाग्य साथ देने में कंजूसी कर सकता है। अष्टमेश होने से अचानक होने वाली घटनाएं हो सकती हैं। सुख को बनाए रखने के लिए आपको अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं।
4. कर्क लग्न से शनि सप्तम तथा आठवें भाव का स्वामी हो जाता है। शनि के वक्री होने से आपके प्रयास दोगुने हो सकते हैं। काम की सफलता के लिए बार-बार छोटी यात्राएं करनी पड़ सकती हैं, लेकिन कार्य में सफलता मिल सकती है।
5. सिंह लग्न से शनि छठे भाव तथा सप्तम भाव का स्वामी होते हैं। इसके कारण स्थान परिवर्तन के योग बनते हैं। जीवनसाथी से विचारों में भिन्नता संभावित रहती है। धन का खर्च अधिक हो सकता है। आपको किसी कार्य को करने के लिए ऋण लेना पड़ सकता है।
6. कन्या लग्न के लिए शनि पंचम भाव तथा छठे भाव का स्वामी होते हैं। शनि वक्री होने से बनते-बनते कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। छाती अथवा पेट संबंधी विकार हो सकते हैं।
7. तुला राशि से शनि चतुर्थ तथा पंचम भाव के स्वामी ग्रह होते हैं। शनि के वक्री होने से आपको घर का माहौल अच्छा बनाए रखने के लिए घर के वातावरण को संतुलित बनाकर रखना पड़ सकता है। माता के स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास अधिक करने पड़ सकते हैं।
8. वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीय और चतुर्थ भाव के स्वामी होते हैं। शनि के वक्री होने से मित्रों तथा सहयोगियों के सुख में कमी आ सकती है। आपको गले तथा छाती से संबंधित समस्या हो सकती है।
9. धनु लग्न के लिए शनि द्वितीय और तृतीय भावों के स्वामी होते हैं। इसके चलते शनि के वक्री होने पर व्यर्थ की यात्राएं करनी पड़ सकती हैं। विचारों में भिन्नता होने से मतभेद होने की संभावना बनती है।
10. मकर लग्न के लिए शनि लग्न और द्वितीय भाव के स्वामी बनते हैं। इससे शनि के वक्री होने पर वाणी पर नियंत्रण रखने की जरूरत पड़ती है। कुटुम्ब में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। धन संचय के लिए अधिक प्रयास करने पड़ सकते हैं। बेवजह मानसिक परेशानी हो सकती है।
11. कुम्भ राशि के जातकों के लिए शनि द्वादश और लग्न भाव के स्वामी होते हैं। शनि के वक्री होने से इनको मानसिक, आर्थिक तथा पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके चलते बनते हुए कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं। आपके खर्चें बढ़ सकते हैं। कार्यक्षेत्र में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
12. मीन लग्न के जातकों के लिए शनि एकादश तथा द्वादश भाव का स्वामी है। शनि के वक्री होने से मीन राशि वालों के खर्चें बढ़ सकते हैं। दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व की कमी रह सकती है। लाभ की प्राप्ति के लिए प्रयास दोगुने करने पड़ सकते हैं।
वक्री शनि के उपाय
यदि आपकी कुंडली में शनि उचित स्थान या भाव में नहीं है और वक्री होने की स्थिति में इसके दुष्प्रभाव संभावित हैं तो निम्न उपाय कर इन्हें कम या पूरी तरह शांत किया जा सकता है।
1. यदि कुंडली में शनि शत्रु भाव में हों या उनकी दृष्टि शुभ नहीं हो तो किसी पवित्र नदी के किनारे जाकर छाया यानी छाता आदि दान करें।
2. एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमें अपना चेहरा देखें और फिर उस कटोरे को किसी पीपल के नीचे या जलाशय के किनारे छोड़कर वापस आ जाएं।
3. हर शनिवार उड़द और काली तिली से मिश्रित जल पश्चिमाभिमुख होकर पीपल का अर्पित करें।
4. शनि की शांति के लिए भगवान शिव का अभिषेक करें। भगवान शिव का नियमित पूजन करें।
5. जरूरतमंदों को कंबल, वस्त्र और तेल आदि का दान करें।
6. घर पर या मंदिर में सुंदरकांड के कम से कम 11 पाठ कराएं।
7. रामभक्त हनुमानजी की उपासना करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
8. किसी शनि मंदिर में जाकर शनि देव का तेल से अभिषेक और षोडशोपचार पूजा करें।
9. शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर और चोला (वस्त्र) अर्पित करें।
10. गरीबों की सेवा करें। जनहित के कार्यों में भाग लेने के साथ जरूरतमंदों की मदद करें।
11. प्रत्येक शनिवार पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
12. प्रत्येक शनिवार दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें या शनि नील स्तोत्र का पाठ करें।
13. ओम प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: या ओम शं शनैश्चराय नम: मंत्रों का प्रतिदिन एक माला जाप करें। इससे लाभ अवश्य होता है।
14. महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान करें। ब्रह्मचर्य और नियमों का पालन करें। बुरी संगत से बचें।
Updated on:
19 Jun 2023 09:45 pm
Published on:
09 Jun 2023 08:20 pm
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