
The Royal family of India and The Scindia's Deepawali
यूं तो भारत में हर ओर दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं देश में एक ऐसा शाही परिवार भी है जहां दीपावली मात्र पांच दिनों का पर्व न होकर करीब एक महीने तक चलने वाले जश्न के रूप में मनाई जाती थी। दरअसल देश के दिल में स्थित ग्वालियर शहर का एक पुराना इतिहास है।
इसके साथ ही यहां के त्योहार भी रंंगीले हैं और अपने आप में बेहद खास भी। जिसे यहां के शासकों के परिश्रय ने और भी अनूठा रूप दिया। ग्वालियर की इस विरासत को और भी खास बनाता है यहां का शाही परिवार। ग्वालियर में दीवाली का त्योहार महज दो चार दिनों ही नहीं, बल्कि ये तो करीब एक महीने तक जश्न के रूप में मनाया जाता रहा है।
दरअसल आजादी से पहले तक सिंधियाओं के शासन के वक्त दशहरे से दिवाली तक यह शहर दमकता था। दशहरे पर शहरभर में जूलूस निकलता था, तो दिवाली में राजा सभी को बुलाकर त्योहार की मुबारकबाद दिया करते थे।
कुछ खास होते हैं सिंधिया राजघराने के त्योहार
ग्वालियर देश और दुनिया में सिर्फ अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए ही नहीं जाना जाता है। बल्कि यहां के कल्चर और त्योहार भी देश में अहम स्थान रखते हैं। इनमें से एक था दशहरा सेलिब्रेशन। जिसको कभी देश में मैसूर, कुल्लू मनाली के समकक्ष ही माना जाता था। सिंधिया राजपरिवार से जुड़ा ये समारोह पूरे शहर में दर्शन का केंद्र होता था।
महाराजा की एक झलक : देखने उमड़ते थे हजारो लोग...
इस दिन लोग सड़कों पर अपने प्यारे महाराजा को देखने के लिए उमड़ते थे। जिसमें तत्कालीन महाराजा चांदी की बग्गी में सवार होकर निकलते थे। शाही पोशाक में उनके साथ राज परिवार के सदस्य और जागीरदार व सरदार साथ रहते थे। दशहरे का ये जूलूस जय विलास पैलेस से शुरू होता था और महाराज बाड़े तक पहुंचता था। इस दौरान राजा प्रजा का अभिवादन करते चलते थे।
1961 जीवाजी राव सिंधिया के समय तक यह पंरपरा यूं ही बनी रही। लेकिन, अब वैसी शान और शौकत तो सड़कों पर नहीं दिखती, लेकिन मांढरे की माता मंदिर पर सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी शमी के पेड़ को काटकर त्योहार को मनाते हैं। इस दौरान शहर के गणमान्य लोगों सहित उनके राज्य से जुड़े रहे सरदारों के परिजन समारोह में शामिल होते हैं।
सभी सरदार मिलते थे दिवाली पर
दिवाली के मौके पर सिंधिया शासक जय विलास पैलेस में गेट टुगेदर रखते थे। जहां उनके करीबियों सहित व्यापारी वर्ग के प्रतिष्ठित लोग शिरकत करते थे और सभी त्योहार की खुशियां बांटते थे।
किलों में लक्ष्मी का वास
सिंधिया महल में ऐसे दो किले हैं,जिनकी पूजा हर वर्ष दिवाली पर की जाती है। इसके लिए बाकायदा दशहरा से तैयारी होती है और इन दोनों ही किलों की रंगाई-पुताई होती है। इनमें एक किला है रानी महल परिसर में और दूसरा है जयविलास पैलेस के मुख्य द्वार के नजदीक। बताया जाता है कि इन मिट्टी के किलों के पूजा का सबसे खास महत्व मराठाओं में है। ऐसी मान्यता है कि यह किलों में लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए दिवाली पर सबसे पहले इन किलों का पूजन किया जाता है। इन मिट्टी के किलों को धन, धान्य का प्रतीक माना जाता है। इसलिए इसकी पूजा हर वर्ष सिंधिया परिवार के सदस्य करते हैं।
बुजूर्गों के अनुसार उस वक्त शहर में खुशी का माहौल होता था। पैलेस को विशेष तरह से सजाया जाता था। दिए जलाए जाते थे। उन दिनों सड़कों की रौनक भी देखते ही बनती थी। शहर के कई बुजूर्ग अब ये भी कहते हैं कि आज उत्साह तो है, मगर चमक नहीं दिखती।
Updated on:
03 Nov 2020 02:18 am
Published on:
03 Nov 2020 12:54 am
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