
कहानी की किरदार रूपा यादव
बिलान्दरपुर (चौमूं) ञ्च पत्रिका. कक्षा 3 में पढ़ रही 8 साल की बालिका रूपा का विवाह करवा दिया, लेकिन उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। ससुराल वालों ने उसे पढ़ाया। पति और जीजा ने पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए दोनों ने खेती करने के साथ टैम्पो चलाया। चाचा की मौत के बाद उसने डॉक्टर बनने की ठानी। दो साल कोटा में रहकर पढ़ाई और एमबीबीएस में प्रवेश लिया। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि जयपुर जिले के शाहपुरा तहसील के एक छोटे गांव करीरी की बेटी रूपा यादव की हकीकत की कहानी है, जिसने नीट-2017 में 603 अंक प्राप्त कर नीट में 2283वीं रैंक हासिल की। वह वर्तमान में बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस थर्ड ईयर की छात्रा है।
दसवीं में 84 प्रतिशत तो....
रूपा ने बताया कि उसका जन्म करीरी गांव में 5 जुलाई 1996 को हुआ। गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा 3 में थी। तब उसकी बड़ी बहन रूकमा के साथ उसकी भी शादी कर दी गई। उसके पति शंकरलाल की उम्र 12 साल थी। शंकर 7वीं में पढ़ता था। गांव की सरकारी स्कूल 8वीं तक होने के बाद गांव की प्राइवेट स्कूल में ही 10वीं तक पढ़ाई की। उसी समय उसका गौना कर दिया। दसवीं में उसके 84 प्रतिशत अंक आए तो ससुरालवालों ने उसे आगे पढ़ाने का निर्णय किया। पति शंकरलाल यादव व जीजा ने उसे आगे की पढ़ाई के लिए एक निजी स्कूल में दाखिला दिलाया।
बनना चाहती थी डॉक्टर
रूपा ने बताया कि 10वीं उत्तीर्ण की थी। इसी दौरान उसके चाचा भीवाराम यादव की हृदयघात से मौत हो गई। उन्हें पूरी तरह से उपचार नहीं मिल पाया। इसके बाद मैंने बॉयलोजी लेकर डॉक्टर बनने का संकल्प लिया। पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण इंस्पायर अवार्ड लेने के लिए बीएससी में एडमिशन ले लिया। इसी वर्ष बीएएसी प्रथम वर्ष के साथ एआईपीएमटी की परीक्षा दी तो 415 अंक लाकर 23000 रैंक हासिल की। फिर उसने दूसरे साल परीक्षा और २२८३वीं रैंक हासिल की।
निर्धन परिवार की प्रतिभा
रूपा ने बताया कि पीहर में पिता मालीराम यादव किसान थे तो मां रमसी देवी निरक्षर थी। पांच भाई-बहनों में मैं सबसे छोटी थी। पूरा परिवार खेती पर निर्भर था। ससुराल पक्ष के चौमंू क्षेत्र के निवाणा गांव के हैं, जहंा ससुर किसान तो सासू गृहिणी थी। बीए करने के बाद पति शंकरलाल खेती करते हैं। उसने बताया कि जब पहले साल सलेक्शन नहीं हुआ तो गांव वालों की तरफ से कानाफूसी होने लगी। गांव में लोगों का कहना था कि क्यों पढ़ा रहे हो, बहू हैं, आगे पढ़कर क्या करेगी, आगे जाकर भी रोटी ही बनाना है, जैसी बातें होने लगी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
Published on:
13 Oct 2020 12:19 am
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