
11वीं-12वीं सदी में बना नारायणपुर का यह शिव मंदिर (Photo source- Patrika)
CG News: बलौदाबाजार जिले की कसडोल तहसील पर्यटन, धार्मिक आस्था और पुरातात्विक दृष्टि से काफी समृद्ध है। यहां बारनवापारा अभयारण्य, सिंघनगढ़ का किला, बलार जलाशय, तुरतुरिया जैसे प्राकृतिक स्थल पहले से ही पर्यटकों का ध्यान खींचते रहे हैं। अब इसी क्षेत्र का एक और ऐतिहासिक रत्न ध्यानाकर्षण की चाह में है।
यह नारायणपुर गांव में 11वीं-12वीं सदी में बना शिवजी का प्राचीन मंदिर है। आज यहां मंदिर के चारों ओर शराब की बोतलें, प्लास्टिक डिस्पोजल के साथ असामाजिक तत्वों का जमावड़ा है। यह मंदिर कसडोल-सिरपुर रोड पर बगार गांव से लगभग 3-4 किमी अंदर है। मंदिर महानदी के तट पर है। इसका निर्माण कार्य पंचरथ शैली में हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
साथ ही एक बैरागी मठ और मंडप भी मौजूद है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा स्थापित प्रस्तर लेख में इसकी वास्तुकला और निर्माण काल का उल्लेख किया गया है। मंदिर की खासियत इसकी दीवारों पर सूक्ष्म कलाकृति है। विष्णु के वराह, नृसिंह, बुद्ध, कल्कि जैसे अवतारों की मूर्ति खुदी हैं। संगीतकारों, अप्सराओं और काम क्रीड़ा करती प्रतिमाओं को भी बहुत सुंदर ढंग से दर्शाया गया है।
बाहरी हिस्से पर भी इन्हीं की नक्काशी है। पास ही एक और मंदिर है जो 9वीं सदी का है। भगवान सूर्य को समर्पित है। इसमें द्वारपालों की मूर्तियां और सिरदल पर सूर्य की उकेरी गई प्रतिमा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। देखरेख की कमी से इसकी भव्यता अब खोती जा रही है। मुख्य मार्ग से दूर होने और जानकारी के अभाव के कारण पर्यटक यहां कम ही पहुंचते हैं।
स्थानीय लोगों को भी इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता का अंदाजा नहीं है। वन विभाग द्वारा मंदिर परिसर के पास एक गार्डन विकसित किया गया है, जिसमें सघन पौधरोपण के साथ अन्य सुविधाएं दी गई हैं। हालांकि, यह स्थल अब असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका है। जगह-जगह शराब की बोतलें, गंदगी और अश्लील हरकतें मंदिर की गरिमा को ठेस पहुंचा रही हैं।
CG News: 2020-21 में वन विभाग ने 3.36 करोड़ की लागत से महानदी तट पर तटबंध और पचरी निर्माण का कार्य कराया था। वहां भी शराबियों और असामाजिक तत्वों द्वारा गंदगी फैलाकर सौंदर्य को बिगाड़ा जा रहा है। मंदिर परिसर में पूर्व में बिखरी हुई कई महत्वपूर्ण मूर्तियों को पुरातत्व विभाग ने सलाखों वाले एक सुरक्षित भवन में रखा है। लेकिन यह भवन भी ठीक तरह से प्रदर्शनी स्थल की तरह तैयार नहीं है।
इस कारण बहुत से दर्शकों को मूर्तियों की ऐतिहासिकता का अनुभव नहीं हो पाता। यह स्थल भोरमदेव और खजुराहो की स्थापत्य शैली का जीवित प्रमाण है। इसे सही देखरेख, प्रचार और संरक्षण की सख्त आवश्यकता है। यहां पर्यटन सूचना बोर्ड, गाइड सुविधा, शौचालय और बैठने की व्यवस्था, सुरक्षा गार्ड, सर्विलांस कैमरा और नियमित सफाई अभियान जरूरी हैं। इसके लिए प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की मांग भी की जा रही है।
Published on:
23 Jun 2025 11:58 am
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