
Tiger in CG
Tiger in CG: 30 साल बाद लौटा बाघ बुधवार को बारनवापारा को अलविदा कहकर गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व चला गया। बार के जंगलों में ये बाघ पहली बार मार्च के महीने में नजर आया था। कहां से आया, इस बारे में अब तक कुछ ठीक-ठीक पता नहीं चला, लेकिन 8 महीने के दौरान उसे लकर यहां के लोग काफी उत्साहित रहे। यहां उसके खाने-पीने के भी पर्याप्त इंतजाम थे। वन अमले ने उसे यहां बसाने की योजना भी बनाई थी, लेकिन साथी बाघिन न मिलने से अब उसे हाल ही में बने देश के 56वें टाइगर रिजर्व भेज दिया गया है। पढ़िए सिलसिलेवार कहानी…
कहानी मार्च 2024 की है, जब सिरपुर की सड़कों को पार करते बाघ ने जंगल का रास्ता लिया। उस दिन उसका वीडियो किसी ने बनाया और तभी से वह नजर में आ गया। वह एक "प्रवासी बाघ" की तरह ही छत्तीसगढ़ की सीमा में भटक रहा था, मगर किसी ने उसकी यात्रा की वजह जानने की कोशिश नहीं की। सबने सोचा कि शिकार की तलाश में जंगलों में इंसान की दखल के चलते दूसरे राज्यों के जंगलों से बारनवापारा आया होगा।
यह खुशी की बात है कि वन विभाग द्वारा रेस्क्यू किए गए बाघ को आज गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में सुरक्षित छोड़ दिया गया। छत्तीसगढ़ राज्य में बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए ही भारत सरकार की ओर से ‘गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व‘ के रूप में नया टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। यह देश का 56वां टाइगर रिजर्व है।
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की सलाह पर छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, कोरिया, सूरजपुर और बलरामपुर जिलों में गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को अधिसूचित किया। कुल 2829.38 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस बाघ अभयारण्य में 2049.2 वर्ग किमी का कोर/क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट शामिल है। इसमें गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। आंध्रप्रदेश के नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिजर्व और असम के मानस टाइगर रिजर्व के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है।
बारनवापारा के हरे-भरे जंगलों में खाना तो बहुत था, हिरण, सांभर और कभी-कभी मवेशी भी, लेकिन भटका हुआ बाघ अकेला था। कोई समूह नहीं..। कोई साथी नहीं। इसी तलाश में कई प्रदेशों की सीमा पार करते मीलों दूर बारनवापारा आ पहुंचा था। इस बीच जानकारी मिली कि वन विभाग उसके लिए एक बाघिन लाने की योजना बना रहा है। वाइल्डलाइफ के सुधीर अग्रवाल, एपीसीसीएफ प्रेम कुमार, और सीसीएफ (वाइल्डलाइफ) सतोविषा समाजदार ने प्रवासी बाघ को बारनवापारा में बसाने की योजना बनाई। फिर उन्होंने वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. राकेश वर्मा और कानन पेंडारी, जू के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. पीके चंदन की देखरेख में उसे छोड़ दिया।
नौ महीने बीते पर भटके बाघ के लिए कोई साथी न आया। उम्मीदों के साथ वह रोज जंगल की खाक छानता। 25 नवंबर की रात प्रवासी बाघ ने बारनवापारा को अलविदा कहा और साथी की तलाश में बलौदाबाजार के लवन क्षेत्र पहुंच गया। इंसानी बसाहट के करीब। भटकते हुए 26 नवंबर की सुबह कसडोल के कोट गांव पहुंचा, तो इंसानों की भीड़ ने घेर लिया। वन अमला आया। ट्रैंकुलाइज किया। साथी तो नहीं मिला, लेकिन वह पिंजरे में पहुंच गया। फिलहाल बाघ गुरु घासीदास नेशनल पार्क जा रहा है। वहां डॉ. अजीत पांडेय और टीम देखभाल करेगी। बाघ के गले में रेडियो कॉलर भी बांधा है, ताकि उस पर नजर रखी जा सके।
Updated on:
28 Nov 2024 12:03 pm
Published on:
28 Nov 2024 12:02 pm
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