
लोगों ने एक बार इन्हें चुना, पूरे कार्यकाल इनके पतियों को सुना
छबड़ा. देश की संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का कानून पास हो गया है। इससे पहले नगर पालिका, जिला और ग्राम पंचायतों में भी महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। इसके बावजूद चुनी गई महिलाएं सशक्त नहीं हो पाई। इन महिलाओं के अधिकारों पर उनके परिजनों का ही एकाधिकार है। जनता ने भले ही महिला जनप्रतिनिधियों को चुना हो, लेकिन इन महिला जनप्रतिनिधियों का कामकाज इनके पति या परिजन ही संभालते हैं। वार्ड पार्षद व सरपंच के पति प्रतिनिधि बनकर नगरपालिका व ग्राम पंचायत में प्रवेश पा जाते हैं। पार्षद व सरपंच पति पंचायत व पालिका की बैठकों में पिछले दरवाजे से प्रवेश पाने के लिए इसलिए बेचैन रहते हैं ताकि निर्णयों में दखल दे सकें। ऐसा करके वे सीधे तौर पर अपनी पत्नी के अधिकारों पर कब्जा कर लेते हैं। इनका हस्तक्षेप इस कदर होता है कि ये अफसरों तक को निर्देश देते हैं।
जहां महिला चुनी, वहां पुरुष बना प्रतिनिधि
जिस सीट पर महिला प्रतिनिधि चुनी गई हैं, वहां 90 प्रतिशत जगह पति या अन्य परिजन प्रतिनिधि बन गए लेकिन जिन सीटों पर पुरुष प्रतिनिधि चुने गए वहां एक भी सीट पर पुरुष के स्थान पर पत्नी ने प्रतिनिधित्व नहीं किया हैं। जाहिर है महिला के अधिकारों पर तो अतिक्रमण किया गया, लेकिन पुरुष ने अपने अधिकारों पर आंच नहीं आने दी।
क्षेत्र की 27 पंचायतों
में 14 पर तो महिलाएं
छबड़ा क्षेत्र की बाहरी ग्राम पंचायत में सरपंच शोभा भार्गव, भीलवाड़ानीचा में रानीबाई मीणा, भूलोन में अंजलि शर्मा, भुवाखेड़ी में प्रियंका मीणा, दिलोद में सीमा चौधरी, हान्याहेड़ी में सुगना बाई, जैपला में भावना ङ्क्षसह, झरखेड़ी में पाना बाई, कडैयाहाट में दोली बाई, खोपर में मंजूबाई नागर, मूण्डक्या में ङ्क्षपकी कुमावत, मूण्डला में इकलेश मीणा, तीतरखेड़ी में रेखा बाई, तेलनी में चांदनी बाई सरपंच निर्वाचित हुई हैं, परंतु इन महिला सरपंचों को अपने अधिकारो के बारे में कोई जानकारी नही है।
पालिका में भी यही हाल
कस्बे के वार्ड 2 से पार्षद आराधना शर्मा, 5 से मोनिका तिवारी, 7 से चारू पारीक, 11 से हंसकंवर, 12 से रजनी गेरा, 16 से ममता सोनी, 21 से ममता शर्मा, 26 से संजीदा आसिफ, 27 से जाहिदा बैगम, 28 से निशा तेजस्वी, 32 से चमेली बाई, 34 से सलमा बी पार्षद हैं। इन्हें पार्षद के अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं। इन्हे तो इनके पति व पुत्र द्वारा मात्र बैठकों के समय उपस्थित किया जाता है। इनके अधिकारों का हनन कर इनके स्थान पर इनके पति या पुत्र पार्षदगिरी कर रहे हैं। इस कार्य में संबंधित विभाग के अधिकारी भी इनका पूर्ण सहयोग करते हैं।
ऐसे में कानूनी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान
निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों के स्थान पर पति, संबंधी रिश्तेदार या अन्य द्वारा कार्य संपादित करने, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भाग लेने व हस्तक्षेप करने पर कार्रवाई की जा सकती हैं। पंचायतराज संस्था मे ऐसा पाए जाने पर संबंधित महिला सदस्य पदाधिकारी के विरूद्ध राजस्थान पंचायतराज अधिनियम 1994 की धारा 38 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के विभागीय आदेश के अनुसार यदि महिला जनप्रतिनिधि के स्थान पर उसका पति, पुत्र या रिश्तेदार कार्य संपादित करता है। संबंधित अधिकारी व कर्मचारी सहयोग कर रहा है तो सहयोग करने वाले पर भी कार्रवाई का प्रावधान है।
कईयों को तो कुछ भी नहीं पता होता
इनके अधिकारों पर इनके पति या इनके पुत्र अतिक्रमण कर सरपंचगिरी कर रहे हैं। इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि ग्राम पंचायत की कार्रवाई व पत्रावलियों में हस्ताक्षर भी सरपंच पति या पुत्र ही करते हैं। जब कभी इन महिला प्रतिनिधियों से जनता सवाल पूछती है तो महिला जनप्रतिनिधि भौंचक रह जाती हैं और अपने पतियों की ओर देखने लगती हैं। ऐसा नही है कि इनके अधिकारों के हनन की जानकारी विभागीय अधिकारियों को नही है, लेकिन वे भी पति को सर्वश्रेष्ठ मानने में नही हिचकते हैं। और जनप्रतिनिधि के पति को ही मुखिया कहकर संबोधित करते हैं।
Published on:
05 Mar 2024 09:25 pm
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