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बरेली। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन त्रिमुहूर्त व्यापनी भद्रा रहित काल में Raksha Bandhan Festival मनाया जाता है। इस बार रक्षाबन्धन का पर्व 26 अगस्त दिन रविवार को पड़ रहा है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि शास्त्रीय मान्यता अनुसार भद्रा में राखी बांधना निषेध होता है, क्योंकि श्रावणी राजा को क्षति करती है। परन्तु शास्त्र के अनुसार भद्रा का निवास तीनों लोकों में होता है, जिस समय भद्रा जहां निवास करती है फल भी वहीं का देती है। इस बार सूर्य उदय से पहले ही भद्रा प्रातः काल 04:22 मिनट पर समाप्त हो जायेगी। अतः सूर्योदय से लेकर सायं 05:26 बजे के मध्य भद्रा नहीं होने से पूरे दिन त्योहार मनाया जा सकेगा।
राखी बांधने का श्रेष्ठ मुहूर्त
प्रातः 07:34 बजे से अपरान्ह 12:21 बजे तक चर लाभ अमृत का चौघड़िया मुहूर्त तदोपरान्त अपरान्ह 01:57 मिनट से 03:32 मिनट तक शुभ के चौघड़िया में अति श्रेष्ठ रहेगा।
भाई को राखी बांधने के साथ घर के मुख्य द्वार पर भी बांधें राखी
इस दिन प्रातः काल स्नान आदि के पश्चात् सूर्य देव को जल चढ़ाकर, शिव जी की आराधना कर शिवलिंग पर जल चढ़ायें। लाल व केसरिया धागे को गंगाजल, चंदन, हल्दी व केसर से पवित्र कर गायत्री मंत्र का जाप करते हुये अपने घर के मुख्य द्वार पर बांधे। इसके बाद बहन-भाइयों को राखी बांधे। घर के मुख्य द्वार पर बंधा यह धागा घर को हर बुरी नज़र से बचाता है एवं घर के वातावरण पंचमहाभूत-जल, वायु, पृथ्वी, आकाश व अग्नि को संतुलित रखता है।
Raksha Bandhan का महत्त्व
रक्षाबन्धन का पर्व रक्षा और स्नेह का प्रतीक होता है, जो व्यक्ति रक्षा सूत्र बंधवाता है, वह यह प्रण लेता है कि बांधने वाले की वह सदैव रक्षा करेगा। लेकिन भविष्य पुराण के अनुसार रक्षा बन्धन का त्योहार बृहस्पति के निर्देश में इंद्राणी द्वारा तैयार किये गये रक्षा सूत्र को ब्राह्मणों द्वारा इन्द्र की कलाई में बांधने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बारह वर्ष तक चले देवासुर संग्राम में इन्द्र की भीषण पराजय के बाद इन्द्र को इन्द्र लोक छोड़कर जाना पड़ा, तब देवगुरू बृहस्पति ने इन्द्र को श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को रक्षा विधान करने का परामर्श दिया। इस पर इन्द्राणी ने एक रक्षा सूत्र तैयार किया और उसे ब्राह्मणों द्वारा इन्द्र की कलाई पर बंधवा दिया। इस रक्षा सूत्र के कारण इन्द्र की संग्राम में अनन्तः विजय हुई।
रक्षाबन्धन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - रक्षा और बन्धन अर्थात् ऐसा बन्धन जो रक्षा के उद्देश्य से किया जाये। द्वापर युग में भी द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में अपनी साड़ी का पल्लू बांधा था। इसे रक्षा सूत्र मानकर भगवान श्री कृष्ण ने कौरवों की सभा में द्रोपदी की लाज बचाकर उसकी रक्षा की थी। इस पर्व पर वृक्षारोपण भी किया जाता है जिसका विशेष फल प्राप्त होता है। वृक्ष परोपकार के प्रतीक है, जो बिना मांगे फल, लकड़ी, छाया और औषधि प्रदान करने के साथ जीवनदायी प्राणवायु देते हैं। वृक्षों से वर्षा होती है और प्रदूषण नियंत्रित होता है। वृक्षारोपण जैसा पुण्य कार्य एवं वृक्षपूजन इस पर्व की विशेषता है। इन प्रेरणाओं के साथ श्रावणी पर्व मनाना अति श्रेष्ठ रहता है।
व्रत-पूजा-विधान
इस दिन व्रती को चाहिए कि सविधि स्नान करके देवता, पितर और ऋषियों का तर्पण करें। दोपहर को सूती वस्त्र लेकर उसमें सरसों, केसर, चन्दन, अक्षत एवं दूर्वा रखकर बांधे, फिर कलश स्थापन कर उस पर रक्षा सूत्र रखकर उसका यथाविधि पूजन करें। उसके पश्चात् किसी ब्राह्मण से रक्षा सूत्र को दाहिने हाथ में बंधवाना चाहिए। रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नाभि रक्षे मा चल मा चल।।
Updated on:
24 Aug 2018 06:15 pm
Published on:
24 Aug 2018 11:18 am
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