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बड़वानी

छोटा बड़दा गांव की शासकीय स्कूल के हाल बेहाल

मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो रहे ग्रामीण परिवेश के बच्चे, गांव छोटा बड़दा के सरकारी स्कूलों के हाल बेहाल, स्कूल में नहीं है पानी और बिजली की सुविधा

बड़वानीNov 23, 2018 / 10:17 am

मनीष अरोड़ा

Government school of Barda village

Government school of Barda village

बड़वानी से ऑनलाइन खबर : विशाल यादव
बड़वानी/अंजड़. जिले में बैठे आला अफसरों की अनदेखी के चलते सुदूर डूब प्रभावित क्षेत्रों में संचालित सरकारी स्कूलों का बुरा हाल है। नर्मदा नदी किनारे डूब प्रभावित क्षेत्रों की स्कूलों को माह अगस्त में आनन-फानन में पुनर्वास स्थलों पर ले आया गया, लेकिन जो बच्चों के मौलिक अधिकार है। उनकी आज तक अनदेखी की जा रही है। स्थिति ऐसी है कि स्कूलों में न तो पानी की व्यवस्था है, नहीं बिजली और न पंखों की व्यवस्था हैं। इतना कुछ होता तो भी ठीक था, लेकिन जिन उद्देश्यों को लेकर ग्रामीण अंचलों के पिछड़ा, सामान्य आदिवासी मजदूर किसान अपने बच्चों को स्कूलों में भेजते है। जब वे ही पूरा नहीं हो रहा तो सरकार की व्यवस्था पर सवालिया निशान लगना लाजमी है। यहां तक पहुंचने के लिए न तो ठीक से यातायात के साधन है न उचित सुविधाओं की व्यवस्था है। गांव वालों का आरोप है कि जिले के आलाधिकारी विकास के नाम पर तमाम दावे करते है। इनकी हकीकत इन गांवों और पुनर्वास स्थलों की स्कूलों में आकर आसानी से देखी जा सकती है।
स्कूल में बच्चे सुविधाओं से वंचित
बड़वानी जिला मुख्यालय से करीब 19 किमी दूर ग्राम पंचायत छोटा बड़दा की प्रायमरी स्कूल जो ठीकरी विकासखंड से करीब 40 किमी दूर है। छोटा बड़दा ग्रामीणों ने बताया कि शासन की ओर से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बातें तो की जाती है, लेकिन वह खुद इन बातों पर अमल नहीं कर रही है। महादेव राठौड़ बड़दा ने बताया कि दो लड़कियां बड़दा से अंजड़ पढऩे जाती है। स्कूल में पीने का पानी नहीं है। एक बच्चे को बड़दा से अंजड़ लाने में वेन का खर्च 500 रुपए महिने का लगता है। शौकत खान ने बताया कि 3 बच्चे बड़दा से अंजड़ पढऩे जाते है। हम दोनों माता-पिता मजदूरी करते है। गांव में पहले 10वीं तक की स्कूल लगती थी, जो अब बड़दा पुनर्वास स्थल पर चली गई। मंसूर खान ने बताया कि मेरी चार लड़कियां है, जो अंजड़ में बड़दा पुनर्वास में पढऩे जाती है। स्कूल में बच्चियों को पीने का पानी पास के एक ढाबे से लाना पड़ता है। ओमप्रकाश केवट ने बताया कि 2 लड़कियां अंजड़ पुनर्वास की स्कूल में पढऩे जाती है। मुकेश यादव ने बताया कि मेरी ऐक ही लड़की है, जो की चौथी कक्षा में पड़ती है। मजदूरी करके पड़ा रहे है। इसी प्रकार 100 से 125 बच्चे अंजड़ बड़दा पुनर्वास और प्रायवेट स्कूलों में पढऩे जाते है। जबकि करीब गांव के ही 200 से ज्यादा बच्चे खर्च अधिक होने से पढऩे नहीं जा रहे है। वहीं गांव में एक भी आंगनवाड़ी केंद्र नहीं है।
भविष्य का भविष्य सुरक्षित नहीं
यहां के लोग आज भी पिछले जमाने में जीवनयापन करने के लिए विवश हैं। यहां गांव में कभी शिक्षा दीक्षा के लिए शासकीय स्कूल संचालित किए जा रहे थे, लेकिन अब यहां से हटाकर उन्हें पुनर्वास की जगहों पर ले जाकर उसमें जिस प्रकार अव्यवस्था हावी है। उससे यहां पढऩे आने वाले बच्चों का भविष्य सुरक्षित नजर नहीं आ रहा है। ग्राम से आने वाली बालिकाओं और बालकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है, फिर भी शासन के पद पर बैठे कर्मचारियों के आंख और कान दोनों बंद पड़े है और कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
ग्रामीणों ने कलेक्टर से लेकर सीएम तक की है शिकायत
गांव तक पहुंचने के लिए सड़क बनी है, लेकिन बीच में एक रपट (छोटी पुलिया) अजड़-छोटा बड़दा मार्ग पर बनी हुई है। इसे ग्रामीण आम भाषा में बख्तल कहते है। इस Óबख्तलÓ की रपट पर उनाव का पानी आते ही आवागमन का मुख्य मार्ग और कृषि की उपजाऊ जमीन एवं बोई हुई करीब 400 एकड़ की फसल जो की किसानों की करीब 1 करोड़ रुपए की फसल को जलमग्न कर देती है। इसकी शिकायत ग्रामीणों ने बड़वानी कलेक्टर ऑफिस से लेकर भोपाल मुख्यमंत्री तक कर दी है, लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकला है। न तो कोई जवाबदार अफसर कभी भी निरीक्षण करने यहां आया और न शिकायत पर सुनवाई हुई है। इस स्कूल में पढऩे वाली बच्चीयों ने अपनी पीड़ा बताने के लिए एक वीडियो भी बनाया है। इसमें वह बड़वानी के कलेक्टर से पीने का पानी मांगने का अनुरोध कर रही है।
वर्जन…
मेरे यहां 3 प्रायमरी की 3 स्कूलें है। बालिका 72, बालक 60, ईजीएस में 25 बच्चों की संख्या है। पीने के पानी की काफी समस्या है। हमारे द्वारा जनशिक्षकों को स्थिति से जब से स्कूलें लग रही है तब ही से अवगत करवा दिया गया है। साथ ही पीएचई और एनवीडीए सहित सभी वरिष्ठ कार्यालयों को जिसकी सूचना भी कई बार की जा चुकी है।
-अमृतलाल पाटीदार, प्रभारी सहायक प्रधानपाठक
मैं खुद बच्चीयों को साथ में लेकर गांव से लेकर वैन गाड़ी से आती हूं। पानी नहीं होने की वजह से बच्चों का खाना भी स्कूल में नहीं बन पाता है। कभी कभार आसपास के पुनर्वास रहवासियों से पानी मंगाते है। शासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
-ममता जाट, शिक्षक पुनर्वास स्कूल
शिक्षक सुगंधी स्कूल में पीने के पानी की कोई भी व्यवस्था नहीं है। प्रायमरी स्कूल होने की वजह से चपरासी नहीं मिला है। बच्चीयां खुद झाडु लगाती है। हम भी कभी-कभी मदद करते है।
-गजेंद्र सुगंधी, सहायक अध्यापक

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