
बैतूल। सरकार ने भले ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का नाम बदलकर वीबीजी राम जी योजना कर दिया हो, लेकिन जमीनी हकीकत में मजदूरों की आर्थिक स्थिति में कोई ठोस सुधार नजर नहीं आ रहा है। बैतूल जिले में मनरेगा के तहत तीन लाख से अधिक मजदूर पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से महज 14 हजार 565 मजदूर ही वर्तमान में काम कर रहे हैं। यह आंकड़ा न केवल योजना की कमजोर क्रियान्वयन व्यवस्था को उजागर करता है, बल्कि ग्रामीण रोजगार की बदहाल तस्वीर भी सामने लाता है।
जानकारों के अनुसार, मजदूरों के मनरेगा से दूर होने की सबसे बड़ी वजह भुगतान प्रक्रिया में भारी लेटलतीफी है। मजदूरी का भुगतान समय पर न मिलने से मजदूरों का भरोसा इस योजना से लगातार उठता जा रहा है। हालात यह हैं कि मजदूरों को अपनी मेहनत की मजदूरी के लिए दो से तीन महीने तक इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनके सामने रोजमर्रा के खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है। परिणामस्वरूप मजदूर काम की मांग ही नहीं कर रहे हैं। विडंबना यह है कि पारदर्शिता के नाम पर कार्यस्थलों पर ऑनलाइन अटेंडेंस तो अनिवार्य कर दी गई है, लेकिन जब बात भुगतान की आती है, तो सिस्टम सुस्त पड़ जाता है। मजदूर सवाल उठा रहे हैं कि जब हाजिरी डिजिटल हो सकती है, तो भुगतान समय पर क्यों नहीं? जिला पंचायत के आंकड़ों पर नजर डालें तो जिले की 554 ग्राम पंचायतों में से केवल 410 पंचायतों में ही मनरेगा के कार्य संचालित बताए जा रहे हैं, जबकि 114 पंचायतों में एक भी काम शुरू नहीं किया गया है। जिन पंचायतों में काम चल रहा है, वहां भी मजदूरों की संख्या बेहद कम है। ब्लॉकवार स्थिति भी चिंताजनक है। आमला ब्लॉक की 68 पंचायतों में से 57 पंचायतों में सिर्फ 1339 मजदूर कार्यरत हैं। आठनेर में 2061, बैतूल ब्लॉक में 916, भैंसदेही में 1235, भीमपुर में 1856, चिचोली में 857, घोड़ाडोंगरी में 2620, मुलताई में केवल 514, प्रभातपट्टन में 931 और शाहपुर में 2236 मजदूर ही काम कर रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि जब योजना का उद्देश्य ग्रामीणों को 100 दिन का रोजगार देना है, तो तीन लाख पंजीकृत मजदूरों में से अधिकांश हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे हैं? यदि समय पर भुगतान और नियमित कार्य सुनिश्चित नहीं किए गए, तो नाम बदलने से मनरेगा की साख और मजदूरों का भरोसा दोनों ही वापस नहीं आ पाएंगे।
Updated on:
28 Dec 2025 09:08 pm
Published on:
28 Dec 2025 09:07 pm
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