मंदिर के पुजारी वशिष्ठ दुबे ने बताया कि पहले यहां राजा ईल का राज हुआ करता था। दुधियागढ़ किले के राजा की देवी चंडी माता उनकी आराध्य कुलदेवी कहलाती है। दुधियागढ़ महल से देवी तक राजा पूजा करने के लिए सुरंग के माध्यम से मंदिर आते थे। राजा ने मंदिर के पास दो आश्चर्यचकित दो गुबदों का निर्माण कराया है, जो आज भी लोगों को अचरज में डाल देती है। मंदिर के आकार के यह दोनों गुंबद एक जैसे है। इन दोनों गुंबद में आवाज लगाने पर एक में तेज और दूसरे में सामान्य आवाज आती है।
हरिदास यादव बताते हैं कि 1400 साल पहले माता स्वयं प्रकट हुई है। माता की पिंडी आस्था का केंद्र है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सालों पहले चंडी माता में भक्तों में अटूट आस्था होने से लोग माता की मूर्ति सिंगारचावडी ले जाना चाहते थे, लेकिन माता की मूर्ति जैसे ही बैलगाड़ी में रखी गाड़ी के पहिए टूट गए। बैल बेहोश होकर गिर गए। दूसरी बार फिर बैल गाड़ी लाई गई, लेकिन फिर दोबारा ऐसा हुआ तो मूर्ति को वही स्थापित कर दिया।
डैम में आ गई थी दरार
मंदिर से वैसे तो कई आश्चर्यजनक घटनाएं हुई हैं। गोधना डैम निर्माण के बाद बारिश में एकत्रित हुआ पानी माता की मूर्ति तक पहुंच गया। ऐसा होते ही डैम में दरार पड़ गई। इसके बाद प्रशासन ने डैम से पानी का लेवल कम किया, तभी से डैम सुरक्षित है।