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ठेकेदार द्वारा कार्य में लापरवाही बरतने पर मेंढा-वर्धा जल योजनों के टेंडर निरस्त

457.57 करोड़ की लागत से हो रहा था योजनाओं का काम, अब नए सिरे से जारी होंगे टेंडर। बैतूल। ग्रामीणों को नल से शुद्ध पानी देने का सपना जिस योजना से जुड़ा था, वही योजना अब सरकारी फाइलों और टेंडर प्रक्रियाओं में उलझकर रह गई है। 457.57 करोड़ रुपए की लागत वाली मेंढा और वर्धा […]

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457.57 करोड़ की लागत से हो रहा था योजनाओं का काम, अब नए सिरे से जारी होंगे टेंडर।

बैतूल। ग्रामीणों को नल से शुद्ध पानी देने का सपना जिस योजना से जुड़ा था, वही योजना अब सरकारी फाइलों और टेंडर प्रक्रियाओं में उलझकर रह गई है। 457.57 करोड़ रुपए की लागत वाली मेंढा और वर्धा जलाशय आधारित बहुप्रतीक्षित पेयजल परियोजनाएं ठेकेदार की लापरवाही और विभागीय निगरानी की कमजोरी के कारण बीच मझधार में अटक गई हैं। नतीजा यह है कि जिले के सात विकासखंडों के 332 गांवों के लोगों को अब भी पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। मध्यप्रदेश जल निगम द्वारा संचालित इन दोनों योजनाओं के टेंडर आखिरकार निरस्त कर दिए गए हैं। कार्य की जिम्मेदारी मेसर्स एलएन मालवीय इंफ्रा प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड को दी गई थी, जिसे 14 मार्च 2023 को वर्क ऑर्डर जारी हुआ था। तय समयसीमा मार्च 2026 की है, लेकिन लगभग दो वर्ष बीतने के बावजूद कार्य सिर्फ 30 से 40 प्रतिशत ही हो सका। समय पर प्रगति न होने के कारण विभाग को अनुबंध रद्द करने का कठोर फैसला लेना पड़ा।
वर्धा परियोजना: 91 गांवों की उम्मीदें अधर में
वर्धा जलाशय परियोजना के तहत आमला, मुलताई और प्रभात पट्टन विकासखंड के 91 गांवों में पेयजल आपूर्ति प्रस्तावित थी। 134.59 करोड़ रुपएकी इस योजना से बड़ी आबादी को राहत मिलनी थी, लेकिन निर्माण की सुस्त रफ्तार ने ग्रामीणों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
मेंढा परियोजना: 241 गांव अब भी सूखे नलों के भरोसे
मेंढा जलाशय परियोजना में बैतूल, आमला, आठनेर और भैंसदेही विधानसभा क्षेत्र के 241 गांव शामिल थे। 323.98 करोड़ रुपए की लागत वाली इस योजना से जिले की सबसे बड़ी ग्रामीण आबादी जुड़ी थी। काम अधूरा रहने से इन गांवों में आज भी टैंकर, कुएं और अस्थायी इंतजाम ही सहारा बने हुए हैं।
नया टेंडर, पुरानी परेशानी
जल निगम अधिकारियों का कहना है कि रिटेंडर की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन नए ठेकेदार के जरिए काम शुरू होने और योजना के पूर्ण होने में कम से कम डेढ़ वर्ष और लगेंगे। ऐसे में सवाल यह है कि जब समय रहते निगरानी होती, तो क्या करोड़ों की योजना और ग्रामीणों का समय दोनों बचाए नहीं जा सकते थे?
जवाबदेही पर उठे सवाल
टेंडर निरस्तीकरण को विभाग सख्ती का उदाहरण बता रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह सख्ती तब तक बेअसर है, जब तक नल से पानी नहीं टपकता। जनहित से जुड़ी इस योजना में देरी ने प्रशासनिक जवाबदेही और योजना क्रियान्वयन की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इनका कहना है—
-समय सीमा के अनुसार कार्य नहीं होने पर टेंडर और अनुबंध निरस्त किए गए हैं। रिटेंडरिंग की प्रक्रिया जारी है। प्रयास रहेगा कि परियोजना को जल्द पूरा कर सभी गांवों तक पेयजल पहुंचाया जाए।

  • अविनाश दिवाकर, महाप्रबंधक जल निगम।