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भरतपुर

गुर्जर समाज की शादी में बजाया डीजे तो लगेगा जुर्माना…!

-देवनारायण ट्रस्ट ने समाज सुधार की भूमिका निभाने को लिए निर्णय

भरतपुरApr 29, 2024 / 08:11 pm

Meghshyam Parashar

जिले के उच्चैन में देवनारायण ट्रस्ट ने समाज सुधार की भूमिका निभाने के लिए बड़े निर्णय लिए गए हैं। अब गुर्जर समाज की शादियों में डीजे नहीं बजेगा। साथ ही बैंड बाजों को सामाजिक मान्यता दी जाएगी। इसमें ट्रस्ट का तर्क है कि प्राचीन समय से ही बैंडबाजों को सामाजिक मान्यता दी गई है, लेकिन आधुनिकता के दौर में सामाजिक मान्यता को भुलाया जा रहा है।
देवनारायण मंदिर परिसर में देवनारायण ट्रस्ट के अध्यक्ष निहालसिंह गुर्जर की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें ट्रस्ट के सचिव टीकेन्द्र छाबड़ी ने गत बैठक का समीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए एजेंडा के अनुसार बिन्दु विचार प्रस्तुत किए। जहां बैठक में सर्व सहमति से शादी समारोह में डीजे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया। साथ ही बैंड बाजों को सामाजिक मान्यता देना, दूर दराज क्षेत्र के रिश्तेदारियों में शादी कार्ड व अन्य मांगलिक अवसरों पर निमंत्रण पत्र आदान प्रदान वाट्सअप के जरिए स्वीकार करने, मृत्यु हो जाने पर 12 दिनों तक चलने वाले शोक संवेदना के दौर में भोजन व्यवस्था के स्थान पर जलपान रखने, लडक़े की शादी के अवसर पर समाज के आराध्यदेव देवनारायण मंदिर 2100 रुपए की सम्मानजनक दान राशि भेंट करने, समाज के सामथ्र्यवान कृषक परिवारों की ओर से स्वैच्छा से सरसों की तूरी के बेचान का 25 प्रतिशत लाभांश देवनारायण मंदिर को दान देने के साथ छह बालिकाओं को न्यूनतम स्नातक की शिक्षा दिलाने के प्रस्तावों पर निर्णय लिया गया। बैठक में अधिवक्ता गिरधरसिंह छाबड़ी ने प्रस्ताव रखा कि देवनारायण ट्रस्ट कार्यकारिणी के पदाधिकारी को 11 हजार रुपए प्रति के हिसाब से मंदिर निर्माण को दान राशि दें। इस पर सभी की सहमति बनी और मौके पर महावीर पटेल, सुगड़सिंह, अंगद फौजी, कप्तानसिंह, राजेश, श्याम नम्बरदार, विशराम, महाराजसिंह, केशवसिंह, हंसराम गुर्जर, बल्लो खरका, अजबसिंह, हन्नो, अतरसिंह, पिन्टूसिंह, श्रीभानसिंह, बलराम आदि मौजूद थे।
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जिले में अन्य समाज भी उठा चुके कदम
समाज में बुराइयों को खत्म करने की दिशा में अकेले गुर्जर समाज के संगठन ने ही यह कदम नहीं उठाया है। इससे पहले भी अन्य समाज सामाजिक कुरीतियों के निवारण के लिए निर्णय ले चुके हैं। जाट समाज की ओर से मृत्युभोज जैसी बुराई को बंद करने के लिए वर्षों तक मुहिम चलाई गई। सिक्ख समाज की ओर से शादियों में भोजन बिगाडऩे पर रोक लगाई गई। इसके अलावा अन्य समाजों की ओर से भी कोई न कोई समाज सुधार की पहल की गई है।

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