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पलायन का दर्द छिपा पालनहार बनी काजल, हालात के मारे पिता का सम्बल बनी लाडली

प्रमोद कुमार वर्मा/धर्मेन्द्र चौधरी भरतपुर/अघापुर. घरेलू विवाद में बिकी जमीन और बाढ़ के हालात ने एक परिवार को पलायन को मजबूर कर दिया।

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Rajesh Kumar Khandelwal

Jul 27, 2017

प्रमोद कुमार वर्मा/धर्मेन्द्र चौधरी
भरतपुर/अघापुर. घरेलू विवाद में बिकी जमीन और बाढ़ के हालात ने एक परिवार को पलायन को मजबूर कर दिया।

कुम्हेर के गांव ताखा से भरतपुर में पलायित इस परिवार के भरण-पोषण की बागडोर आज 'काजलÓ संभाल रही है, जो स्कूल से आने के बाद सड़क किनारे रखे लकड़ी के खोखे पर बैठकर साइकिल और बाइक में पंचर लगाकर परिवार का गुजारा कर रही है।

स्थिति बिगड़ी तो छोड़ा गांव

बालिका के जन्म से पहले उसके पिता के पास गांव में जमीन थी, जिसे वर्ष 1996 में विवाद के कारण बालिका के बाबा ने बेच दिया। उसी समय बाढ़ ने इस गांव को जलमग्न कर दिया था। उसके बाद परिवार को गांव छोडऩा पड़ा।

पिता करता है मजदूरी

बालिका के पिता राजवीर ने भरतपुर आकर किराए पर कमरा लिया और मजदूरी की, जिससे जीवन-यापन हो सके। समय निकला तो बालिका काजल ने जन्म लिया। तब अकेली संतान की परवरिश का भी भार बढ़ गया।

उधारी से लगाया खोखा

बेटी को पढ़ाने लिखाने और परिवार को पालने का जज्बा लिए पिता ने हिम्मत नहीं हारी। इसके लिए उधार पैसे लेकर सारस चौराहे से आगे आगरा रोड पर एक खोखा लगाकर पंचर जोडऩे का कार्य शुरू किया। फिर, बेटी का स्कूल में दाखिला कराया।

दसवीं में पढ़ती बालिका

समय बदला तो बालिका में समझ आई कि अब पढ़ाई के साथ पिता के काम में मदद करनी है। उसने दो साल से नियमित पंचर लगाने का जिम्मा उठा रखा है। आज दसवीं कक्षा में पढ़ रही काजल पहले स्कूल, फिर स्कूल से आने के बाद अपनी किताबें साथ लेकर पंचर लगाने का कार्य करती है।

हालात का मारा पिता उसके स्कूल से आने तक स्वयं पंचर लगाता है। स्कूल के अवकाश के दिन बालिका पूरे दिन पंचर लगाती है और उसका पिता मजदूरी पर निकल जाता है। अन्य दिनों पिता-पुत्री आधे-आधे समय खोखे पर बैठकर दो जून की रोटी की व्यवस्था करते हैं।