- तीन साल की मेहनत लाई रंग
भरतपुर . कबाड़ा बीनना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया था। कबाड़े की गंदगी के बीच खिलखिलाता बचपन खुशियों से भी दूर हो रहा था, लेकिन स्वास्थ्य मंदिर की पहल ने अब इनकी अंधेरी दुनिया में उजियारा फैलाया है। स्वास्थ्य मंदिर की ओर से कच्ची बस्ती के बच्चों के लिए चल रहे 'खिलता बचपन संवरता जीवन प्रकल्प से इनकी जिंदगी संवरने लगी है। अब इन बच्चों ने कबाड़े को छोड़ कलम से नाता जोड़ लिया है।
लगातार तीन वर्ष की मेहनत के परिणाम भी सुखद सामने आ रहे हैं। जब यह प्रकल्प शुरू किया था तब सर्वे में 170 बच्चे ऐसे मिले, जो कभी स्कूल नहीं गए थे। अब बस्ती में ऐसा कोई घर नहीं है, जिसमें से कोई बच्चा स्कूल नहीं जाता हो। बच्चों के माता-पिता भी अब गमले बनाने, फूल पत्ती बनाने एवं अगरबत्ती बनाने जैसे काम कर रहे हैं। वह भी कबाड़ा बीनने सहित अन्य बुराईयों से दूर हो रहे हैं। प्रकल्प के प्रयासों से अब कच्ची में शिक्षा का उजियारा फैल रहा है। आने वाले वर्षों में इसके और अच्छे परिणाम आने की संभावना है।
प्राथमिक ज्ञान के बाद पहुंचाते हैं स्कूल
खिलता बचपन, संवरता जीवन प्रकल्प से जुड़ी शिक्षक आंचल शर्मा बताती हैं कि कच्ची बस्ती के बच्चे नियमित रूप से स्वास्थ्य मंदिर में पढऩे आ रहे हैं। ऐसे बच्चों को नियमित रूप से यहां शिक्षा दी जाती है। इसके बाद इनकी समझ बढऩे पर सरकारी एवं निजी स्कूलों में दाखिला करा दिया जाता है। निजी स्कूलों में खर्चा के लिए संस्था में आने वाले भामाशाह ऐसे कुछ बच्चों को गोद लेकर मदद करते हैं। आंचल ने बताया कि कोई भी बच्चा पढ़ाई से छूटे नहीं। इसके लिए लगातार बस्ती का सर्वे किया जाता है। इसके लिए उन्हें होमवर्क दिया जाता है और घर पर जाकर इसे चेक किया जाता है। उन्होंने बताया कि प्रकल्प से जुडऩे के बाद बच्चों ने कचरा बीनना छोड़ दिया है। यहां रहने वाले परिवार भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। ज्यादातर परिवारों ने कचरा बीनने का काम छोड़ दिया है। अब ऐसे परिवार आजीविका के लिए अन्य काम कर रहे हैं, जिनमें इनके बच्चे भी मदद कराते हैं।
माता-पिता को भी पढ़ा रहे बच्चे
बच्चे प्रकल्प से जुड़े तो उनकी जुबां पर अब पढ़ाई की बातें हैं। स्वास्थ्य मंदिर में सीखने के बाद वह घर पर अपने माता-पिता को भी शिक्षा से जुडऩे का आह्वान कर रहे हैं। इसके लिए वह खुद अपने माता-पिता को पढ़ा रहे हैं, जिससे वह निरक्षर नहीं कहलाएं। पढ़ाई के साथ यहां बच्चों के लिए योगा की क्लास भी लगाई जाती हैं, ताकि बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकें।