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तात्या टोपे की शरणस्थली अधरशिला, अब बना पर्यटन स्थल, आज भरेगा मेला

हजारों टन की शिला के नीचे विराजे महादेव, श्रावण में उमड़ते हैं भक्त प्राकृतिक गुफा, मोरकुंड और ऐतिहासिक महत्व से भरपूर है अधरशिला धाम

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Panchayati Raj employees protest against the government in Rajasthan

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भीलवाड़ा के पुर कस्बे से करीब दो किलोमीटर दूरी पर स्थित अधरशिला महादेव मंदिर अब श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। दूधतलाई के पश्चिमी छोर पर पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह मंदिर एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य प्रस्तुत करता है, जहां एक हजारों टन वजनी चट्टान मगरमच्छ जैसी आकृति लिए हुए ढलान पर आड़ी टिकी हुई है। इसी चट्टान के नीचे प्राचीन ओंकारेश्वर महादेव विराजमान हैं। इन्हें अधरशिला महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां हरियाली अमावस्या पर मेला भरता है।

मंदिर के दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार है और पश्चिम दिशा में एक प्राकृतिक गुफा भी मौजूद है, जो कच्चे पत्थरों से बनी है। वर्ष 1967 तक इस गुफा से दिन के समय में शेर और चीते निकलते देखे गए। प्रशासन की ओर से उस समय एक चीते को पिंजरे में पकड़ कर जंतुआलय भेजा गया था। गुफा के ऊपर एक प्राकृतिक कुंड मोरकुंड है, जहां आज भी पशु-पक्षी जल पीने आते हैं। पास में ही गाज का गोला नामक स्थान है, जिसका ऐतिहासिक महत्व है।

तात्या टोपे की शरणस्थली

1857 की आजादी की क्रांति में वीर योद्धा तात्या टोपे ने अधरशिला की पहाड़ियों को अपने ठहराव का स्थान बनाया। 9 अगस्त 1859 को बड़लियास होते हुए भीलवाड़ा पहुंचे तात्या टोपे, सांगानेर के पास अंग्रेज सेनाओं से पराजित होकर अधरशिला की तलहटी में रुके। पुजारी आयसनाथ ने उन्हें रसद सामग्री व शरण देकर सहयोग किया। ग्रामीण साधु-संत ढोल-नगाड़ों के माध्यम से बाहरी खतरे की सूचनाएं दिया करते थे। तात्या टोपे यहां से फिर नाथद्वारा होते हुए सलूम्बर की ओर कूच कर गए।

सरकार ने घोषित किया पर्यटन स्थल

पंडित अशोक व्यास ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. शिवचरण माथुर ने अधरशिला को पर्यटन स्थल घोषित कर विकास कार्य भी शुरू किए हैं। नगर निगम और नगर विकास न्यास की ओर से ठहरने, खाने-पीने, व मनोरंजन के लिए कुछ सुविधाएं विकसित की गई हैं। श्रावण मास में यहां हरियाली अमावस्या के दिन हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

अधरशिला: प्रकृति, इतिहास और भक्ति का त्रिवेणी संगम

यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि पर्यावरणीय और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत समृद्ध है। प्रकृति की गोद में बसा यह स्थल आज भी अपने भीतर कई रहस्य और गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है।